पासपोर्ट व्यवस्था
अपने देश में जिन कामों को करवाने में अच्छेअच्छों के पसीने छूट जाते हैं, पासपोर्ट बनवाना उन में से एक है पर हैरानी की बात इस परेशानी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदा बेन का जूझना भी है. अक्तूबर के पहले हफ्ते में जशोदा बेन ने अहमदाबाद के पासपोर्ट कार्यालय में अर्जी दी थी लेकिन पासपोर्ट अधिकारी जेड ए खान ने एक महीने बाद उसे यह कहते खारिज कर दिया कि चूंकि इस में शादी का प्रमाणपत्र नहीं है, इसलिए पासपोर्ट नहीं बन सकता. जशोदा बेन विदेश में रह रहे अपने रिश्तेदारों से मिलने जाना चाहती हैं. 1968 में हुई नरेंद्र मोदी और जशोदा बेन की शादी का कोई कानूनी प्रमाण नहीं है सिवा इस के कि खुद नरेंद्र मोदी ने चुनावी नामांकन में जशोदा को बतौर पत्नी दर्ज किया था. चुनाव आयोग अभी पासपोर्ट विभाग की तरह प्रमाणपत्र या शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं मांगता लेकिन जशोदा बेन इस का हवाला दे सकती हैं. अगर पति ससम्मान रखते तो जशोदा का पासपोर्ट थाल में सजा कर पीएम हाउस पहुंचा दिया जाता. बहरहाल, मानवता के नाते तो मोदी को पत्नी की मदद करनी ही चाहिए.
*
खेमेबाज बुद्धिजीवी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहीं वैचारिक और बौद्धिक हमलों से घबरा न जाएं, इसलिए उन के बचाव में अभिनेता अनुपम खेर आगे आ गए और इस बाबत उन्होंने बाकायदा 7 नवंबर को दिल्ली में मार्च फौर इंडिया का आयोजन भी कर डाला. बकौल अनुपम खेर, बढ़ती असहिष्णुता जैसे शब्द कुछ लोगों के दिमाग की उपज हैं.भाजपा सांसद किरण खेर के पति द्वारा जुटाए गए इस झुंड में 80 फीसदी कलाकार व बुद्धिजीवी ब्राह्मण समुदाय के क्यों थे, यह बात भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं. अनुपम के इस रोड शो में प्रमुख रूप से शामिल थे मालिनी अवस्थी, नरेंद्र कोहली, अच्युतानंद मिश्र, अनूप जलोटा, मनोज जोशी, नितिन देसाई, नीरज बोहरा और मधुर भंडारकर. अपनी बात कहना इन लोगों का भी हक था जिस पर जाने क्यों किसी को राजनीति नजर नहीं आई.
*
ज्योतिषी काटजू
बिहार के नतीजे कैसे होंगे, यह 31 अक्तूबर को ही सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कंडेय काटजू वजहों सहित बता चुके थे कि महागठबंधन को दोतिहाई बहुमत मिलेगा. इसी दौरान देशभर के नामी और बेनामी ज्योतिषी ग्रहनक्षत्रों की गणनाएं कर बता रहे थे कि एनडीए सत्ता में आ रही है क्योंकि लालूनीतीश की जन्मपत्रियों में राजयोग खत्म हो गया है और नरेंद्र मोदी का बरकरार है. ज्योतिषी किस तरह छलावा और ठगी करते हैं, यह तो साबित हुआ ही, साथ ही यह भी जाहिर हुआ कि कभी भी कुछ भी ऊटपटांग बोल देने के लिए कुख्यात हो चले काटजू कभीकभी कायदे की बात भी कर जाते हैं. काटजू चाहें तो अब एक चुनाव परिणाम घोषणा केंद्र खोल सकते हैं.
*
गजल नाइट्स में गुलाम
मशहूर पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली को आखिरकार भारत में गाने का मौका मिल ही गया. वे 3 दिसंबर को लखनऊ महोत्सव में प्रस्तुति देने को तैयार हो गए हैं. इस का श्रेय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ही जाता है जिन्होंने पहल करते गुलाम अली को न्योता व मौका दिया. कट्टरपंथियों और शिवसेना को हकीकत दिखानी जरूरी भी थी कि गुलाम अली का प्रोग्राम कहीं न कहीं हो, जो खराब सेहत के चलते 8 नवंबर को दिल्ली में होने वाले एक कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर पाए थे. 74 साल के हो चले गुलाम अली की आवाज का जादू भारतीयों के सिर बी आर चोपड़ा की ‘निकाह’ फिल्म के प्रदर्शन के बाद चढ़ना शुरू हुआ था जो फिर उतरा नहीं. अगर वे आए तो गजल नाइट्स में चारचांद लगना तय है.