राहुल की मंशा

‘यदि मैं ने शादी कर ली और बालबच्चे हो गए तो मैं यथास्थितिवादी हो जाऊंगा. फिर मैं भी चाहने लगूंगा कि मेरे बच्चे मेरी जगह लें, अपनी शादी को ले कर दिए राहुल गांधी के इस ताजे दार्शनिक बयान में पीड़ा भी है और संकेत भी कि क्यों वे शादी से कतराते हैं.  

यह बयान नेहरूगांधी परिवार को कोसते रहने वालों के लिए अच्छा इस लिहाज से है कि वाकई राहुल ब्रह्मचारी बने रहने की अपनी जिद पर अड़े रहे तो परिवारवाद अगर वाकई समस्या है तो वह खुद ब खुद हल हो जाएगी. और बुरा इस लिहाज से है कि उन से एक अहम मुद्दा छिन जाएगा. विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए कुंआरे रहने का फैसला अपनेआप में अनूठा है और बात जहां तक यथास्थितिवाद की है तो राहुल को कौन समझाए कि शादी से इस का इतना गहरा ताल्लुक नहीं है जितना बढ़ाचढ़ा कर वे बता रहे हैं. बहाना बेशक खूबसूरत है जिस के एक उदाहरण अटल बिहारी वाजपेयी भी हो सकते हैं.

न उम्र की सीमा हो...

नेताओं के अलावा देशभर के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, समाजशास्त्री, कानूनविद वगैरह सोचने की अपनी जिम्मेदारी बड़ी गंभीरता से निभा रहे हैं. मसला  भी नाजुक है कि सैक्स करने की उम्र 16 साल होनी चाहिए या नहीं. सरकार अपना फैसला सुना चुकी है कि होनी चाहिए. लेकिन इस मसले से जुड़े विधेयक को अभी कई औपचारिकताओं से हो कर गुजरना है. साहित्य में 16 साल की उम्र बड़ी अहम और नाजुक बेवजह नहीं मानी गई है. दरअसल, इस उम्र में पहले मन में कुछकुछ होता था लेकिन अब तन में होने लगा है. यह होना सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित होने लगा तो कानून की जरूरत महसूस होने लगी. नतीजा इतिहास गवाह है कि सैक्स करने वाले, उम्र कोई भी हो, कानून के मोहताज कभी नहीं रहे क्योंकि इस में 2 लोगों की आपसी रजामंदी और एकांत के अलावा किसी तीसरी चीज की जरूरत नहीं पड़ती. जिस चीज की आज भी सब से ज्यादा जरूरत है वह है यौन शिक्षा जिस पर लोग जानबूझ कर खामोश रहते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...