बात पिछली गरमियों की है. मैं अपने दोनों बेटों के सथ लखनऊ से इलाहाबाद जा रही थी. जब हम ट्रेन में बैठे तब पूरा कंपार्टमैंट खाली था. थोड़ी देर बाद मेरी एक सहेली अपनी दोनों बेटियों को ले कर टे्रन पर चढ़ी. साथ में उस की ननद, ननदोई और उन के दोनों बेटे भी थे.

कुछ देर बाद एक दंपती अपनी 2 बेटियों के साथ हमारे कंपार्टमैंट में आ गए. अब हमारे कंपार्टमैंट में 6 बड़े और 8 बच्चे थे. थोड़ी देर में बच्चे आपस में काफी घुलमिल गए और आपस में काफी बातचीत करते रहे. फिर सफर काटने के लिए 4-4 बच्चों की टीम बना कर अंत्याक्षरी खेलने लगे. बच्चों के इस खेल में हम बड़े भी शामिल हो गए. अंत्याक्षरी में एक से बढ़ कर एक बढि़या गीत गा कर हम सब ने इस सफर को बहुत रोचक और मनोरंजक बना दिया.

हमारे अगलबगल के कंपार्टमैंट में बैठे यात्रियों को भी हमारे खेल में मजा आने लगा. हम में से अगर कोई गीत भूल जाता तो कोई दूसरा यात्री उसे गा कर पूरा कर देता. लोकप्रिय फिल्मी गीतों को तो सभी यात्री एकसाथ गाते. इस तरह हंसतेगाते ट्रेन कब इलाहाबाद स्टेशन पर पहुंच गई हमें पता ही नहीं चला. बच्चों के खेल ने हमारे सफर को बहुत मजेदार बना दिया.

श्वेता सेठ, सीतापुर (उ.प्र.)

मैं सपरिवार बनारस से पटना ट्रेन से अपनी ननद के बेटे की शादी में शामिल होने जा रही थी. सामान काफी था. हम ने कुछ सामान बगल वाली सीट के नीचे भी रख दिया था. मेरे ही कोच में एक महिला 11 सामानों के साथ अकेले ही सफर कर रही थी. रास्ते में बक्सर स्टेशन पर वह महिला उतरी और कुली को अपना सामान अंदर से लाने के लिए कह दिया. कुली उन का सामान ले कर उतर गया. ट्रेन चल पड़ी.

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