राहुल का एलीट ज्ञान

गांवदेहात का मैलाकुचैला आदमी शहर के साफसुथरे व्यक्ति से एक स्वाभाविक ईर्ष्या क्यों रखता है? मनोवैज्ञानिक लिहाज से देखें तो सार यह निकलता है कि यह एक तरह की कुंठा है जिस से किसी को कोई नुकसान नहीं होता. राज्यों के विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश में प्रचार के दौरान कहा, चूंकि वे एक गरीब परिवार से हैं इसलिए दिल्ली में बैठी एलीट क्लास मंडली का हिस्सा नहीं बन सकते.

दीनहीन दिख कर सहानुभूति बटोरना नई बात नहीं. धर्म की वजह से हमारा देश दरिद्रों का या कह लें नौनएलीटों का है. बकौल राहुल गांधी, यह एक मानसिक अवस्था है. एलीट होना गुनाह नहीं है, न ही नौनएलीट होना हिकारत की बात है. परेशानी तो इसे मुद्दा बनाना है जिस से लोग इत्तफाक नहीं रख रहे, न ही वे यह बता रहे कि उन्हें एलीट चाहिए या नौनएलीट क्लास पीएम.

दाग अच्छा नहीं

उजली साड़ी और बेदाग छवि ममता बनर्जी के आत्मविश्वास की 2 बड़ी वजहें रही हैं. उन के राजनीतिक शत्रु हमेशा ही यह सोचते हुए परेशान रहे हैं कि भला उन की छवि हमारी छवि से अच्छी क्यों है? तकरीबन 2300 करोड़ रुपए के चर्चित सारदा चिटफंड घोटाले में तृणमूल कांग्रेस से निष्काषित सांसद कुणाल घोष ने ममता का नाम भी यह कहते घसीट लिया है कि उन्हें इस घोटाले और उस की रकम के बारे में पूरी खबर थी.

सारदा समूह के मीडिया प्रमुख कुणाल घोष के दावे पर गौर करें तो लगता है घोटालेबाज बड़े समझदार होते हैं. वे वक्त रहते सीडियां भी रिकौर्ड कर रखते हैं ताकि सनद रहे और वक्तबेवक्त वे काम आएं. फिलहाल, ममता खामोश हैं पर ज्यादा समय तक खामोशी को हथियार नहीं बना पाएंगी. सफाई या स्पष्टीकरण तो उन्हें देना ही पड़ेगा क्योंकि यह दाग राजनीति के लिहाज से अच्छा नहीं है.

झगड़े का अर्थशास्त्र

कांग्रेसी और भाजपाई आम आदमी पार्टी को मिले विदेशी चंदे पर हायहाय दिल खोल कर कर पाते, उस के पहले ही अन्ना हजारे ने चिट्ठी लिख कर अरविंद केजरीवाल से सफाई मांग कर सारा मजा किरकिरा  कर दिया कि कहीं ‘आप’ जनलोकपाल आंदोलन के दौरान इकट्ठा हुए पैसे का इस्तेमाल तो चुनाव में नहीं कर रहे.

अन्ना हजारे बड़े दिलचस्प व्यक्ति हैं चूंकि गांधीवादी हैं और कुछ दिन पहले आम लोग उन्हें गांधी कहने भी लगे थे, इसलिए कोई नेहरू पैदा करने का जोखिम वे नहीं उठा रहे. पैसों की यह पूछताछ और हिसाबकिताब दिल्ली में मतदान के बाद भी हो सकता था लेकिन ठीक पहले हुआ तो वजह गैरसियासी तो नहीं मानी जा सकती. राजनीति का ककहरा सीखपढ़ रहे अरविंद केजरीवाल को असली सबक तो अब मिलना शुरू हुआ है.

तिनके सा तहलका

तहलका को लोग भूल चुके थे पर इस का यह मतलब नहीं कि इस पत्रिका के संपादक द्वारा एक पत्रकार युवती का यौन शोषण या उत्पीड़न कोई इश्तिहार या इवैंट था. गोआ बड़ी रोमांटिक जगह है जहां रोज उलटासुलटा कुछ न कुछ होता रहता है. लोग पुरुषोचित कमजोरियों को नियंत्रित करने के लिए यहां आते हैं.

इस मामले में अब तरुण तेजपाल को गिरफ्तार कर लिया गया है और अब वे सफाई देते फिर रहे हैं. संपादक ने दार्शनिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए गलती मानी और अपने पद से 6 महीने के लिए इस्तीफा ऐसे दिया मानो किसी बादशाह ने गद्दी को लात मार दी हो. हकीकत में यौन शोषण का यह मामला बताता है कि पत्रकारिता चकाचौंध वाला बड़ा उद्योग हो चला है, खादी के कपड़े और गांधी टोपी पहने आदर्शों की बात करने वाला संपादक या पत्रकार सालों पहले जा चुका है. अब इस में स्मार्ट युवतियां तेजी से आ रही हैं, जो कुछ भी करने को तैयार रहती हैं तो अधेड़ तरुण तेजपाल का क्या कुसूर?

भारत भूषण श्रीवास्तव

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...