मेरे पति चेन्नई में नौकरी करते हैं, इसलिए हम उत्तर प्रदेश से चेन्नई आ गए. एक बार मैं ने घर से बाजार जाने के लिए आटो किया. आटो वाला शायद दूसरे राज्य के लोगों को पसंद नहीं करता था. कहने लगा, क्या तुम्हारे राज्य में नौकरी नहीं मिलती, जो हमारे राज्य में आ जाते हो?

मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं ने कहा, ‘‘अगर इतना ही अपने राज्य से लगाव है तो आटो पर बोर्ड क्यों नहीं लगाते ‘सिर्फ तमिल लोगों के लिए.’ दूसरे राज्य के लोगों को बैठा कर क्यों पैसा कमाते हो?’’ मेरी बात सुन कर वह काफी शर्मिंदा हो गया.

निशा मित्तल, चेन्नई (तमिलनाडु)

 

मेरे एक मित्र की पत्नी बहुत लापरवाह थी. मित्र एक प्रैस में काम करते थे. उन की शर्ट या पैंट की जेब में अधिकतर कोई न कोई महत्त्वपूर्ण पेपर छूट जाता था और उन की श्रीमतीजी बिना जेबें चैक किए उन्हें वाशिंग मशीन में धुलने के लिए डाल देती थीं. लिहाजा, उन के जरूरी कागजात लुगदी की शक्ल में धुल कर बाहर निकलते थे. मित्र कई बार झल्लाए, पर कोई फायदा नहीं हुआ. एक दिन उन को एक तरकीब सूझी. उन्होंने अपने पैंट की जेब में 50 रुपए का नोट जानबूझ कर रख दिया और औफिस चले आए. औफिस आ कर उन्होंने अपनी श्रीमतीजी को फोन किया और बोले, ‘‘सुनो, तुम ने कपड़े धो डाले क्या? मेरी जेब में शायद कुछ रुपए रह गए हैं. यदि नहीं धोए हों तो प्लीज देख लेना.’’

मित्र की पत्नी ने फुरती से सारे कपड़ों की जेबें देख डालीं और 50 रुपए पा कर खुश हो गई. मित्र ने एकदो बार और अपनी जेब में 25-25 रुपए छोड़े जोकि उन की धर्मपत्नी को जेबें टटोलते समय मिलते रहे. बस, इस के बाद तो उन की आदत बन गई कि कपड़े धोने से पहले जेबें जरूर टटोलनी हैं. मित्र के जरूरी कागजात भी तब से लुगदी बनने से बच गए.

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