कुछ दिन पहले एक अजीब सी घटना घटी. उसे भूलना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है. दीवाली की खरीदारी के लिए मैं बाजार में थी, एकाएक चूडि़यों का ठेला मेरे पास से गुजरा. उस ठेले पर जो नवयुवक रंगबिरंगी चूडि़यां बेच रहा था वह करोड़पति बाप का पुत्र था. मेरा माथा ठनका. मैं उसे व उस के परिवार को जानती थी. मुझ से रहा नहीं गया अत: उस से सारा माजरा पूछा. उस ने ठेला एक तरफ कर के बड़ी शांति से बताया कि मातापिता उस के प्रेमविवाह से खुश नहीं थे. गरीब लड़की से शादी करना उन के गले न उतरा. मेरी पत्नी को एक कामवाली बाई जैसा व्यवहार सहन करना पड़ रहा था, बदले में धमकी भी हजारों बार मिलतीं कि अरबों की संपत्ति हड़पने के लिए हमारा बेटा ही मिला था?
‘‘मैं ने वह संपत्ति ही ठुकरा दी. किराए का कमरा ले कर अलग रहता हूं व अपनी मेहनत की खाता हूं.’’ उस की बातें सुन कर मैं गद्गद हो गई.
मुग्धा पांडे, अजमेर (राज.)
घटना मेरे गांव की है. वहां ग्राम पंचायत चुनाव होने जा रहा था. मतदाताओं को लुभाने के लिए उम्मीदवार तरहतरह के हथकंडे अपना रहे थे. महिला मतदाताओं के लिए मिठाइयां व फल और पुरुषों के लिए उन का प्रिय पेय शराब बांटी जा रही थी.
हमारा पड़ोसी सभी उम्मीदवारों से माल खापी रहा था. एक दिन एक उम्मीदवार के आदमी उसे शराब के 4 टैट्रा पैक दे गए. शाम को अंधेरा था और बिजली भी नहीं थी. उस ने सोचा कि और दिन तो प्लास्टिक थैली में शराब देते थे, आज तो फ्रूटी दे गए. उस ने अंदर से अपने 2 पौत्रों को बुलाया और उन्हें पैक दे कर कहा, ‘‘जाओ, तुम भी पी लो और एकएक अपनी मम्मी और दादी को दे देना.’’