भारत में व्यक्ति की औसत आयु पिछले वर्षों से लगातार बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ-साथ डायबटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी अब आम हो चली हैं. ये बीमारियां लोगों को उनको उम्रदराज होने पर ज्यादा परेशान करती हैं. ऐसे में रिटायरमेंट के बाद पेंशन की पर्याप्त व्यवस्था के बाद भी कई बार बीमारियों के खर्च बुढ़ापे को कठिन बना देते हैं. ऐसी स्थिति में वरिष्ठ नागरिकों के लिए 2007 में सरकार की ओर से शुरू की गई रिवर्स मॉर्गेज स्कीम एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है.
रिवर्स मोर्गेज क्या है?
रिवर्स मॉर्गेज एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति जैसे घर आदि सरकार के हवाले कर उसकी मौजूदा कीमत के आधार पर हर महीने या तिमाही में अपनी आय की व्यवस्था कर सकते हैं.
सरल भाषा में समझें तो रिवर्स मोर्गेज सामान्यत: होम लोन से विपरित होता है. इसमें वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति को कर्जदाता के (बैंक या कोई अन्य वित्तीय संस्थान) पास गिरवी रख देता है और इसके एवज में एक नियमित आय लेता रहता है. कर्ज लेने वाले वरिष्ठ नागरिक जब तक जीवित रहते हैं, तब तक इस घर में रहते हैं. लेकिन कर्ज संपत्ति की कुल कीमत या अधिकतम 20 साल तक के लिए ही मिलता है. रिवर्स मोर्गेज उन वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायक है, जिन्हें नियमित आय की जरूरत होती है और साथ ही जिनकी प्रॉपर्टी आसानी से बिक न रही हो.
ऐसे काम करता है रिवर्स मॉर्गेज
जब घर को गिरवी रखा जाता है तब बैंक इसकी कीमत का मूल्यांकन प्रॉपर्टी की मांग, मौजूदा समय में प्रॉपर्टी की कीमत और घर की हालत को देखते हुए तय करता है. इसके बाद बैंक कर्ज लेने वाले को लोन की राशि तय करके बताता है, जिसके बाद ब्याज व कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए हर महीने भुगतान किया जाता है. इस मासिक भुगतान को रिवर्स ईएमआई भी कहा जाता है. यह कर्ज, संपत्तिधारक को एक निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है. यह पेमेंट मासिक या तिमाही आधार पर किया जा सकता है. हर पेमेंट के बाद वरिष्ठ नागरिक की उस घर में हिस्सेदारी कम होती चली जाती है. लेकिन रहने का अधिकार कर्ज लेने वाले व्यक्ति को पूरे जीवन के लिए होता है.