10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली फ्रांस यात्रा में नरेन्द्र मोदी ने दोनों सरकारों के बीच फ्लाई-अवे कंडीशन यानी तैयार हालत में फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन द्वार निर्मित 36 राफेल विमानों की खरीद समझौते की घोषणा की. प्रक्रिया के अनुसार भारत में रक्षा आपूर्ति करने वाली किसी भी विदेशी कंपनी को रक्षा समझौते का एक हिस्सा भारत में निवेश करना होता है. सितंबर 2016 में, तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने अपने फ्रांसीसी समकक्ष के साथ राफेल करार किया. अनुमान के मुताबिक यह करार 59000 करोड़ रुपए का है और डसॉल्ट को इस राशी का आधा हिस्सा भारत में निवेश करना है.

द कारवां के सितंबर अंक की मेरी कवर स्टोरी पर मैंने बताया है कि कैसे राफेल करार के चलते रक्षा क्षेत्र का जरा सा भी अनुभव न रखने वाली उद्योगपति अनिल अंबानी के रिलायंस समूह को अचानक हजारों करोड़ रुपए के एयरोस्पेस व्यवसाय हाथ लग गए. इस करार के 13 दिन पहले रिलायंस समूह ने रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के नाम से नई कंपनी रजिस्टर कराई और इस करार के 10 दिन बाद रिलायंस डिफेंस की सहायक कंपनी रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड और डसॉल्ट एविएशन ने रिलायंस की अधिकांश हिस्सेदारी में डसॉल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड की स्थापना की घोषणा की.

प्रधानमंत्री मोदी की राफेल खरीद घोषणा के बाद रक्षा क्षेत्र में रिलायंस समूह ने अवसरों को भुनाना एकाएक बढ़ा दिया. रिलायंस डिफेंस की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार इस कंपनी की 13 सहायक कंपनियां हैं. ये सभी कंपनियां रक्षा उत्पादों के निर्माण में लगी हैं. इनमें से 9 कंपनियों को तो मोदी की घोषणा के तीन हफ्तों के भीतर स्थापित किया गया है और इनकी स्थापना के एक साल के अंदर ही इनमें से 7 कंपनियों को रक्षा मंत्रालय से रक्षा निर्माण का लाइसेंस दे दिया. लेकिन इस वर्ष मार्च तक इनमें से किसी भी कंपनी ने किसी भी प्रकार रक्षा उत्पादन नहीं किया है.

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