नोटबंदी के बाद सरकार का जोर है ‘कैशलैस’ लेनदेन पर. एक सीमा से अधिक नकद कोई रख ही नहीं सकता. जाहिर है, बाजार में नकदी की किल्लत है और इस के चलते देरसबेर लोग ई वौलेट पर निर्भर होने को मजबूर हैं. पेटीएम, ई वौलेट, ई औक्सीजन, आईसीआईसीआई बैंक का आई मोबाइल, पौकेट्स, स्टेट बैंक बडी, ई पेमैंट, सिटरस वौलेट, पेयूमनी, रूपे और न जाने क्या क्या की बाजार में सक्रियता बढ़ गई है. जेब में पैसे न होने से लोग ई वौलेट का रुख कर वर्चुअल पेमैंट कर रहे हैं. इस वर्चुअल वौलेट से एक अलग किस्म का खतरा खड़ा हो गया है.

मगर यह सोच लेना कि जनता की जेब में पैसे नहीं हैं तो चोरों और जेबकतरों का बाजार मंदा चल रहा है गलत है. वह कहावत है न कि ‘चोर चोरी से जाए हेराफेरी से न जाए’. इन दिनों यह कहावत खरी उतर रही है. चोर भी डिजिटल हो गए हैं. इन की चोरी की गिनती साइबर क्राइम के तहत होती है. साइबर विशेषज्ञों की मानें तो आजकल डिजिटल चोर पूरे देश में सक्रिय हो गए हैं. इन की नजर ई वौलेट पर है. ये आप के वर्चुअल वौलेट हैक करने की फिराक में हैं. साइबर क्राइम के जानकार पुलिस अधिकारी असित घोष का कहना है कि यह काम इतनी चालाकी से हो रहा है कि आप को कानोंकान खबर नहीं होगी. जब खबर होगी तब तक आप लुट चुके होंगें.

डिजिटल चोरी

वर्चुअल चोरी या साइबर अपराध का दायरा बढ़ रहा है और साइबर पुलिस के लिए यह एक नई चुनौती के रूप में सामने आया है. असित घोष कहते हैं कि जब हम बैंक के माध्यम से लेनदेन करते हैं तो आज हर बैंक में केवाईसी यानी नो योर कस्टमर फार्म भरना पड़ता है. इस के सपोर्ट में कई दस्तावेज बैंक में जमा करने होते हैं. लेकिन ई वौलेट के मामले में ऐसा कोई फार्म भरने की बाध्यता नहीं होती. इसी का फायदा मिलता है डिजिटल चोरों को. बड़ी आसानी से ई वौलेट खोल कर वर्चुअल पैसे उड़ा लेते हैं. ऐसी चोरी की जांच में पुलिस को कई तरह की दिक्कतें आती हैं.

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