8 नवंबर, 2016 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 व 1,000 रुपए के पुराने नोटों के अमान्य मुद्रा होने की घोषणा की, तो आम लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी कि यह एक नादिरशाही फैसला है. एक ऐसा निर्णय, जो बिना किसी पूर्व तैयारी के लिए लिया गया है और जिस के दूरगामी विपरीत परिणाम देश की अर्थव्यवस्था से ले कर आम जनता की सुखसहूलियत पर होंगे. मोदी ने ऐलान किया कि 50 दिन बीतने के बाद जनता के अच्छे दिनों की शुरुआत होगी और ब्लैकमनी का सफाया हो जाएगा.

50 से ज्यादा दिन बीत गए. असर क्या हुआ है, यह पूरे देश के सामने है. 50 दिन पूरे होने पर यानी 28 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट ने मोदी के दबाव में अमान्य हो चुके 500 और 1,000 रुपए के पुराने नोटों के रखने की सीमा को ले कर एक अध्यादेश की मंजूरी दी. अध्यादेश में कहा गया कि 31 मार्च, 2017 के बाद अगर किसी के पास तय सीमा से ज्यादा पुराने नोट मिले तो उस पर जुर्माना लगाया जाएगा. इस अध्यादेश को भी जनता इस नजरिए से देख रही है कि सरकार उस पर जबरन कैशलैस व्यवहार थोप रही है, जबकि न तो वह इस का हक रखती है और न ही देश में इस के लिए पर्याप्त इंतजाम हैं. जनता को अपनी इच्छा के अनुसार हांकने पर अमादा सरकार का यह रवैया इसलिए हैरान करता है कि वह देश का शासन चलाना छोड़ ऐसे काम कर रही है जिन से लोगों की जिंदगी की समस्याएं कम होने बजाय, बढ़ रही हैं.

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