भारत को इस बार बड़े पैमाने पर गेहूं का आयात करना पड़ सकता है. इस को ले कर पूरी दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी हैं. ऐसे में आटा मिल इंडस्ट्री ने सरकार से मांग की है कि गेहूं पर लगने वाले 25 फीसदी आयात शुल्क को अप्रैल, 2016 से खत्म कर दिया जाए.

आटा मिल इंडस्ट्री को 2016-17 में गेहूं का उत्पादन कम रहने की चिंता सता रही है. सूखा पड़ने और तापमान में बढ़ोतरी के कारण इस बार भारत में गेहूं के उत्पादन में एक करोड़ टन तक की गिरावट का अनुमान है.

रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन औफ  इंडिया की तरफ  से फूड और कामर्स मिनिस्ट्री को लिखी गई चिट्ठी में कहा गया है कि गेहूं के उत्पादन में गिरावट की आशंका और नैशनल फूड्स सिक्योरिटी ऐक्ट के तहत अनुमानित 6.12 करोड़ टन गेहूं की जरूरत के मद्देनजर केंद्रीय पूल के लिए बड़ा खरीद टारगेट तय करना होगा.

इस चिट्ठी में आगे कहा गया है कि गेहूं पर इंपोर्ट ड्यूटी की न सिर्फ  समीक्षा की जानी चाहिए, बल्कि इसे हटाने के बारे में समय पर ऐलान किए जाने की जरूरत है, ताकि आटा मिल इंडस्ट्री जल्दी ही गेहूं की इंपोर्ट की प्लानिंग कर सके. उसे ग्लोबल लेवल पर कीमतों में तेजी का सामना नहीं करना पड़े.

कृष्णा आटा मिल्स के मैनेजिंग डायरेक्टर ने बताया कि अगर गेहूं पर इंपोर्ट ड्यूटी नहीं होती, तो हम इसी वित्तीय वर्ष में एडवांस में इंपोर्ट कर लेते. इंडस्ट्री के अनुमानों के मुताबिक, 2015-16 के दौरान गेहूं का प्राइवेट ट्रेड इंपोर्ट 6 लाख टन रहा. आमतौर पर प्राइवेट मिलें मध्य प्रदेश के गेहूं की वैरायटी का इस्तेमाल करती हैं. पिछले साल बेमौसम बारिश की वजह से गेहूं की क्वालिटी पर बहुत ही बुरा असर पड़ा था. इस बार गेहूं की क्वालिटी और प्रोडक्शन दोनों को ले कर चिंता है. गेहूं की ट्रेडिंग से जुड़ी एमएनसी नोबल ऐग्री के वाइस प्रेसीडैंट ने जानकारी देते हुए बताया कि फसल की मौजूदा स्थिति तो उत्पादन में गिरावट की तरफ  इशारा कर रही है और भारत को डिमांड और सप्लाई के अंतर की भरपाई के लिए कम से कम 20 लाख टन गेहूं की जरूरत पड़ सकती है.

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