देश बेरोजगारी के दौर से गुजर रहा है. बेरोजगारों की तादाद बढ़ती जा रही है. परमानेंट यानी स्थाई नौकरियां तो लगभग ना के बराबर हैं. हां, सुकून की बात यह है कि अस्थाई नौकरियां बढ़ रही हैं. एक बेरोजगार के लिए बेकार बैठे रहने से अच्छा है कि टेम्परेरी नौकरी मिल रही है तो उसी को कर लिया जाए.

आज देश में अस्थाई कर्मचारियों की भर्ती 4 साल के उच्च स्तर पर है. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी के लागू होने के चलते आर्थिक, ई-कौमर्स और फूड डिलीवरी सेगमेंट में संगठित क्षेत्र की कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है. इस से ऐसा अनुमान है कि नई अस्थाई नौकरियों की तादाद पिछले साल की 1.3 लाख से बढ़ कर 3 लाख तक हो सकती हैं.

टीमलीज़ सर्विसेज कंपनी का कहना है कि 2015 से अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति में 5 गुना इजाफा हुआ है. इस की वजह सिर्फ जीएसटी नहीं है, बल्कि लेबर फार्मलाईजेशन का भी इस में अहम योगदान है.  इस का नतीजा यह हुआ है कि अस्थाई कर्मचारी अब कौर्पोरेट इंडिया का अहम अंग बन गया.

पिछले साल 1 जुलाई से जीएसटी लागू होने से पहले असंगठित और अपंजीकृत कंपनियों के पास प्राइसिंग एडवांटेज था क्योंकि उन पर सर्विस टैक्स नहीं लगता था. लेकिन उस के बाद से यानी जीएसटी लागू होने के बाद से ग्राहकों के लिए टैक्स से जुडी स्टाफिंग फर्मों की सेवाएं लेने का चलन बढ़ा है क्योंकि जीएसटी के तहत उन्हें इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने की इजाजत मिली है. इस ने जीएसटी के पहले की तुलना में अधिकतर सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए सेवाओं को ज्यादा किफायती बना दिया है. अब वे अपंजीकृत सप्लायर्स से मुकाबला कर सकते हैं. सही मानों में कहा जाए तो अब वे अनरजिस्टर्ड कंपनियों के मुकाबले फायदे की स्थिति में हैं.

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