नोटबंदी फैसले की पूरे देश भर में आलोचना की लहर दौड़ रही है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से लेकर नोबल सम्मान से सम्मानित अर्थशासई अमर्त्य सेन समेत देश के चोटी के अर्थशास्त्रियों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चेतावनी दी जा रही है. वहीं इसके उल्ट वित्त मंत्री अरूण जेटली का दावा एक अलग ही कहानी कहता है. वित्तमंत्री की माने तो नोटबंदी से अर्थव्यवस्था या जीडीपी पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है. ऐसे में सवाल यह है कि दावे-प्रतिदावे का आखिर सच क्या है? इसकी पड़ताल करने से पहले यह देखा जाना जरूरी है कि वित्तमंत्री ने जो दावा किया है वह क्या है?
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि नोटबंदी से नुकसान नहीं, बल्कि देश को बहुत फायदा ही हुआ है. अपने दावे के पक्ष में उन्होंने कहा कि नोटबंदी का का सबसे अधिक जो प्रभाव पड़ना चाहिए था वह दिसंबर के महीने में पड़ना चाहिए था. उनका दावा है कि दिसंबर महीने में सबसे ज्यादा कर अदायगी हुई और राजस्व में बढ़ोत्तरी हुई. हर लिहाज से देश की अर्थव्यवस्था में सुधार आया है. जेटली का दावा है कि 19 दिसंबर तक प्रत्यक्ष कर 14.4 और अप्रयत्क्ष कर में 26.2, केंद्रीय उत्पाद शुल्क में 43.3 और आबकारी में 6, म्युचुअल में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.
वित्त मंत्री ने दावे की अगर विस्तार से देखा जाए तो उन्होंने कहा कि दिसंबर 2015 की तुलना में दिसंबर 2016 कर अदायगी में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई. अप्रैल से दिसबंर तक नौ महीने में आयकर, कंपनी कर जैसे प्रत्यक्ष कर की अदायगी में 12.01 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है. उत्पाद शुल्क, सेवा कर जैसे अप्रत्यक्ष कर में 25 प्रतिशत वृद्धि देखी गयी है. वित्तमंत्री का मानना है कि अगर नोटबंदी का नकारात्मक प्रभाव सबसे अधिक दिसंबर महीने में पड़ना चाहिए था. अगर ऐसा होता तो ये नतीजे देखने को नहीं मिलते. बहरहाल, वित्तमंत्री ने नोटबंदी के फैसले का समर्थन और सहयोग के लिए देशवासियों का शुक्रिया भी उन्होंने अदा किया.
पर अर्थव्यवस्था के जानकारों ने वित्तमंत्री के दावे की जो चीरफाड़ की तो पाया कि ये दावे अर्थव्यवस्था को धक्का लगने का स्पष्ट लक्षण है. इनका मानना है कि नोटबंदी के धक्के से उबरने में देश को काफी लंबा समय लगेगा. वित्तीय मामलों के जानकार और पत्रकार प्रेमांशु चौधरी का कहना है कि दिसंबर महीने में कर अदायगी में भले ही वृद्धि हुई है, लेकिन अप्रैल से अक्टूबर तक जिस दर से कर अदायगी में वृद्धि हुई है, नोटबंदी के बाद नवंबर और दिसंबर महीने में इसे बड़ा धक्का लगा है.
मसलन; जुलाई में 54 प्रतिशत, अगस्त और सितंबर दोनों महीने में 36-36 प्रतिशत और अक्टूबर में 40 प्रतिशत तक उत्पादन शुल्क में वृद्धि हुई थी. और फिर नोटबंदी के दौरान नवंबर और दिसंबर महीने में यह महज 12.4 प्रतिशत रही. वहीं अक्टूबर में अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि की दर 35.8 प्रतिशत थी. लेकिन दिसंबर में इसमें कमी आयी और यह 14 प्रतिशत के आसपास रही.
इसीके साथ प्रेमांशु चौधुरी का यह भी कहना है कि केवल राजस्व अदायगी ही अर्थव्यवस्था का आईना नहीं हो सकता. यूपीए के सबसे खराब दौर यानि 2013-14 वित्त वर्ष में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर की अदायगी में 14-15 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी थी. अब जब यूपीए के बुरे दिन में वृद्धि की दर यह थी तो 2016 दिसंबर में नोटबंदी के बाद भी अप्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर की वृद्धि भी 14 प्रतिशत हुई तो सवाल तो उठता है कि यह किस लिहाज से नोटबंदी का फैसला देश की अर्थव्यवस्था के हक में था?
इतना ही नहीं, सिटी रिसर्च की ओर से की गयी समीक्षा कहती है कि अप्रत्यक्ष कर में वृद्धि के पीछे असली वजह अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि पेट्रोल-डीजल शुल्क में वृद्धि है.
वहीं भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव कुमार सेन एक साक्षात्कार में साफ तौर पर कहा था कि नोटबंदी भारत के किसानों और गरीबों के लिए बहुत बुरा फैसला साबित होगा. जहां तक वृद्धि दर का सवाल है तो नोटबंदी के असर के कारण यह 0.3 प्रतिशत से लेकर 0.4 प्रतिशत तक नीचे जाएगा. और अधिक खुलासा करते हुए उन्होंने कहा है कि जहां वृद्धि दर के 7.6 से लेकर 7.7 प्रतिशत होने की उम्मीद थी. वहां अब यह 7.1 से लेकर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है.
उनका यह भी मानना है कि नोटबंदी के दौरान पुराने नोट में अग्रिम कर अदायगी की गयी थी. इसके बाद वृद्धि दर का दावा किसी भी तरह से टिक नहीं सकता. गौरतलब है कि पुराने नोटों में दिसंबर तक का अग्रिम कर अदा करने का सहूलियत वित्त मंत्रालय ने दी थी. स्वेच्छा से काले धन की घोषणा और इसके तहत कर अदायगी की पहली किस्त भी पुराने नोटों में स्वीकार किया गया था.
प्रेमांशु चौधरी का कहना है कि नोटबंदी के कारण आनेवाले महीनों में वृद्धि दर कम होने से राजस्व अदायगी में भी कमी आएगी. वित्तमंत्री का दावा यह भी है कि नोटबंदी से कल-कारखानों में उत्पादन प्रभावित नहीं हुआ है. जबकि ऑल इंडिया मैनुफैक्चरिंग ऑर्गनाइजेशन रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के बाद महज एक महीने में छोटे और मंझोले उद्योगों की आय में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. रोजगार में 35 प्रतिशत की कमी आयी है. बड़े कारखानों की भी स्थिति अच्छी नहीं है. इंफ्रास्ट्रक्चर और मैनयुफैक्चरिंग उद्योग का मुनाफा और इस क्षेत्र में रोजगार में 40 प्रतिशत की कमी आयी है.
प्रेमांशु चौधरी नाइट फ्रैंक इंडिया के सर्वे का हवाला देते हुए कहते हैं कि अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक गृह निर्माण और इनकी बिक्री को भी बड़ा धक्का लगा है. नोटबंदी के बाद फ्लैट की बिक्री का ग्राफ भी नीचे लूढ़का है. रि वह जमीन की खरीद का मामला हो या फ्लैट की बिक्री का, इसमें 30-40 प्रतिशत की कमी आयी है.
ऑटोमोबाइल क्षेत्र का का भी कमोवेश यही हाल है. पिछले 16 साल में इसका ग्राफ यह अब तक का सबसे नीचे गया है. प्रमुख ऑटो कंपनियों ह्युंडाई, मारूति, महिंद्रा, फोर्ड की बिक्री में गिरावट आयी है. घरेलू बाजार में ह्युंडई की बिक्री में 4.3 फीसदी, मारूति की बिक्री में 4.ृ प्रतिशत, महिंद्र की 1.5 प्रतिशत, फोर्ड इंडिया की बिक्री 6.04 प्रतिशत की गिरावट आयी है. भारी वाहनों की बिक्री की भी कमोवेश ऐसी ही तस्वीर सामने आयी है. दिसंबर महीने में अशोका लेलैंड की बिक्री 12 प्रतिशत घट चुकी है. दुपहिया की बिक्री भी ढलान पर है. घरेलू बाजार में बाइक की बिक्री में 11 प्रतिशत की कमी आयी है.
इन तमाम आंकड़ों से साफ है कि वित्तमंत्री के दावे में बहुत सारे लूपहोल हैं. जो दिखाया जा रहा है, सच्चाई उससे बिल्कुल उलट है. ऐसे में कहा जा सकता है कि वित्त मंत्री का दावा देश की जनता के आंखों में धूल झोंकने जैसा है.