2013 में सिद्धार्थ रविंद्रन को अपने फैमिली में एक मेडिकल इमर्जेंसी का सामना करना पड़ा. अगर उनके पास अपनी सेविंग्स और मेडिकल इंश्योरेंस नहीं होता तो उनके लिए इस स्थिति से निपटना आसान नहीं होता. हालांकि, उन्होंने किसी तरह से चीजों को मैनेज किया. रविंद्रन बताते हैं, 'मैंने जिस स्थिति का सामना किया वह उन लोगों के मुकाबले कहीं बेहतर थी, जिन्हें तत्काल लोन की जरूरत पड़ती है. लेकिन पेचीदा प्रक्रिया के कारण अक्सर उन्हें दिक्कत झेलनी पड़ती है. मैं ऐसी स्थिति से बाल-बाल बचा हूं.'

छोटी अवधि के लिए नकदी की किल्लत के अनुभव ने उन पर गहरा असर डाला. साथ ही, इससे उन्हें एक ऐसा वेंचर शुरू करने की प्रेरणा मिली, जो लोगों को ऐसी स्थिति से निपटने में मदद कर सके. दो साल बाद अगस्त 2015 में रविंद्रन ने कस्टमर्स को शॉर्ट टर्म क्रेडिट मुहैया कराने के लिए रुपीलेंड नाम की डिजिटल फाइनेंस कंपनी लॉन्च की. स्टार्टअप के फाउंडर और सीईओ रविंद्रन का कहना है, 'बैंक नए कस्टमर्स को लोन देने के लिए आमतौर पर 7-10 दिनों का वक्त लेते हैं.

हमने लोन डिस्बर्समेंट के लिए लगने वाले समय को घटाने के लिए Rupeelend की शुरुआत की.' स्टार्टअप नए कस्टमर्स को दो घंटे में लोन देती है. वहीं, रिटर्निंग कस्टमर को 10 मिनट में ही लोन मिल जाता है. रविंद्रन ने अपनी फैमिली और दोस्तों से पैसे लेकर 1.3 करोड़ रुपये के इनवेस्टमेंट से Rupeelend की शुरुआत की. Rupeelend कस्टमर एक्विजिशन, सेल्स, कस्टमर एक्सपीरियंस मैनेजमेंट और ऑपरेशनल एफिशिएंसी सुधारने के लिए क्लाउड बेस्ड सिस्टम का इस्तेमाल करती है.

रविंद्रन का कहना है, 'हमारा कस्टमर एक्विजिशन और सभी तरह के वेरिफिकेशन 100 फीसदी ऑनलाइन हैं. हमारे पास आर्टिफिशल इंटेलिजेंस आधारित डिसीजन मेकिंग सिस्टम्स है.' स्टार्टअप ने चार एनबीएफसी के साथ टाई-अप किया है और पिछले 12 महीनों में 3 करोड़ रुपये से ज्यादा के शॉर्ट टर्म लोन बांटे हैं. जब Rupeelend की शुरुआत हुई तो इसकी राह में कई अड़चनें आईं. रविंद्रन बताते हैं कि लोग कॉस्ट मॉडल को लेकर आशंकित थे. स्टार्टअप फिलहाल 30 दिनों के लिए 10,000-1 लाख रुपये तक के लोन देती है.

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