सरकार सड़कों की स्थिति नहीं सुधार पाती है. छोटे रास्तों को तो छोडि़ए, राजमार्गों तक पर भी गड्ढों से मुक्ति नहीं मिलती है. चौड़े बनाए गए राजमार्गों पर भी जाम लगा रहता है. जाम को खोलने के उगाही करने में जुटे पुलिसकर्मियों को फुरसत नहीं होती है.
दिल्ली से लगे राष्ट्रीय राजमार्गों को ही देखें, गाजियाबाद में ही खड़े हो जाइए तो रात को 1 बजे भी जाम मिलेगा. कारण, पुलिस वाले उगाही में लगे रहते हैं और इसी वजह से होने वाली जिरह के कारण ट्रकों की लाइन लग जाती है और मोहन नगर जैसे चौराहे को पार करने में सुबह हो जाती है.
आंकड़े कहते हैं कि पिछले 22 महीनों से लगातार ट्रकों की बिक्री घट रही है जिसे बढ़ाने के लिए सरकार ने सड़क पर ट्रक वालों को तंग करने के उपाय कम करने के बजाय ट्रक का जीवन 15 साल निर्धारित कर दिया है और डेढ़ दशक तक सड़क पर ट्रक चलाने के बाद नया ट्रक खरीदने पर मालिक को 1 लाख रुपए की मदद देने का निर्णय लिया है.
सोचिए, जो ट्रक मालिक 15 साल में मालामाल हुआ है उसे नया ट्रक खरीदने के लिए उपहार सिर्फ इसलिए दिया जा रहा है कि नए ट्रकों की बिक्री बढ़े और मोटर वाहन बनाने वाली कंपनियों को फायदा पहुंचे.
साफ है कि दुनिया के 200 देशों की सूची में भ्रष्टाचार के मामले में 95वें स्थान पर रहने वाले भारत के बाबुओं ने यह कदम बिना खाएपिए ईमानदारी से नहीं उठाया होगा. जाहिर है दूसरों को लाभ पहुंचाने की योजना बनाते समय वाहन निर्माण कंपनियों से मोटा पैसा बाबुओं की जेब तक पहुंचा है.