बजट से पहले बाजार को लगा झटका
शेयर बाजार लगातार तेजी पर है. दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद बाजार का नरम रुख बदला और इस में लगातार सुधार होता रहा. तीसरी तिमाही में विकास दर के 7.4 फीसदी तक पहुंचने और महंगाई दर के जनवरी में शून्य से नीचे जाने के कारण बाजार में तेजी का रुख रहा. उस से पहले बाजार में दिसंबर में विकास दर के कम रहने के कारण बाजार पर दबाव था जिस की वजह से बाजार में सुस्ती का माहौल रहा लेकिन अर्थव्यवस्था के मजबूती के माहौल के कारण सूचकांक में सुधार हुआ और 19 फरवरी को बाजार लगातार 8वें दिन तेजी पर रहा तथा 3 सप्ताह के शीर्ष पर पहुंचा. इन 8 सत्रों में बाजार लगातार 29 हजार अंक पर बना रहा. उसी तरह से नैशनल स्टैक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 8,800 अंक के पार चला गया और बाजार में उत्साह का माहौल बना रहा. बाजार के झूमने का सब से बड़ा कारण विकास दर के उत्साहजनक रहने और महंगाई की दर का 5 साल के निचले स्तर पर पहुंचना माना जा रहा है. इसी बीच, पैट्रोलियम मंत्रालय में जासूसी का मामला पकड़ा गया. इस से सरकार की साख प्रभावित हुई है जिस के कारण बाजार में भूचाल आ गया और सूचकांक ढह गया. हालांकि 2 सत्र के बाद फिर संभल गया और 24 फरवरी को मजबूती पर बंद हुआ.
मनरेगा को सर्वाधिक आवंटन
कमाल की बात है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा को कांगे्रस के नेतृत्व वाली केंद्र में रही सरकार की विफलता का जीताजागता स्मारक बताया था और उस के ठीक एक दिन बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उसी ‘स्मारक’ पर धनवर्षा कर दी. इस योजना के लिए, इस तरह की तमाम योजनाओं की तरह, 35 हजार करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की और कहा कि पैसा आएगा तो योजना को 5 हजार करोड़ रुपए और दिए जाएंगे. इस तरह से इस योजना को 40 हजार करोड़ रुपए से अधिक का आवंटन होगा जो अन्य सभी योजनाओं की तुलना में सर्वाधिक होगा. सरकार का मानना है कि यह गांव के गरीब को रोटी देने का सीधा और सरल तरीका है, इसलिए इसे बंद नहीं किया जाएगा. हालांकि इसे बंद करने की अटकलें लग रही थीं लेकिन मोदी ने लोकसभा में घोषणा कर दी कि यह योजना बंद नहीं होगी और इस तरह से इस योजना से जुड़ी सारी अटकलों पर विराम लग गया. यह योजना शुरू करने वाली कांगे्रस ने भी राहत की सांस ली है. उस के साथ ही गांव को मजबूत ढांचागत व्यवस्था से जोड़ने की बजट में कवायद की गई है. मनरेगा पर सरकार ने जम कर राजनीति की है और विपक्ष को कठघरे में खड़ा कर के रख दिया है.
कांगे्रस इस मुद्दे पर मोदी की राजनीति का लोहा मानने को विवश हो रही है. इसलिए सिर्फ वह इतना भर कह रही है कि मोदी की टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है और उन्हें इस पर पुनर्विचार करना चाहिए. फिलहाल मोदी का यह दांव सधी हुई सियासत का एक नमूना बन गया है जिस ने सामाजिक क्षेत्र के बजट को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है.
गार की मार टलने से निवेश का माहौल
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट प्रावधान में जनरल ऐंटी अवौइडेंस रूल्स यानी सामान्य कर परिवर्जन नियम-गार के क्रियान्वयन को मार्च 2017 तक टाल दिया है. यह कानून कर चोरी के रास्ते रोकने की सभी कमजोरियों पर निगाह रखने वाला है. गार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ले कर आई थी और उस का इरादा उद्योगों द्वारा कर चोरों के रास्ते तलाशने के सभी विकल्पों को बंद करने का प्रयास था. उस समय गार का उद्योग जगत ने भारी विरोध किया था, इसलिए संप्रग सरकार इस को लागू नहीं कर पाई. भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार से उस कानून को लागू करने की उम्मीद थी लेकिन वह यह कहते हुए उस के क्रियान्वयन को दो बात के लिए टाल गई कि इस से पूंजी निवेश का माहौल बिगड़ेगा और विदेशी निवेशक देश के ढांचागत आधार को मजबूत करने वाले निवेश से पीछे हट जाएंगे. इस का मतलब यह हुआ कि सरकार निवेशकों को कर चोरी की खुली छूट दे रही है.
वित्त मंत्री कहते हैं कि गार आम बहस का विषय है, इसलिए इसे 1 अप्रैल, 2017 से लागू किया जाएगा. तब तक सरकार ने एक तरह से निवेशकों की कर चोरी से बचने की सभी चालों को वैध करार दे दिया है, भले ही कंपनियां निवेश में कर चोरी कर के देश को चूना लगाती रहें. यह निश्चित रूप से स्वस्थ प्रशासन और मजबूत आर्थिक आधार की बुनियाद नहीं हो सकती.
रक्षा बजट पर मेक इन इंडिया का पहरा
सरकार ने रक्षा बजट में मात्र 11 फीसदी की बढ़ोतरी की है और साफ किया है कि बढ़ती रक्षा चुनौतियों के बावजूद हथियारों की अंधी दौड़ में शामिल हो कर विदेशी हथियार निर्माता कंपनियों को मजबूत बनाना उचित नहीं है. इस के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी गई है और इस के जरिए देश में ही हथियारों के निर्माण का रास्ता प्रशस्त किया गया है. इस से लड़ाकू विमानों सहित रक्षा उपकरणों के लिहाज से देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश हो रही है जो प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया के सपने को आगे ले जाने वाली कड़ी का एक हिस्सा है.सेनाओं को मजबूत बनाने के लिए हथियारों पर आत्मनिर्भरता कम करने की सरकार ने रणनीति बना ली है. इस के अतिरिक्त, सीमा पर ढांचागत सुविधा उपलब्ध कराने पर भी सरकार का विशेष ध्यान है और सड़क परिवहन तथा राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कुछ समय पहले घोषणा की थी कि सीमावर्ती क्षेत्रों, खासकर पूर्वोत्तर, में सीमा पर सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है. इस से सीमा पर सेना की आवाजाही को आसान बनाया जा सकेगा और दुश्मन से लड़ने की ताकत हासिल की जा सकेगी. लेकिन जो प्रयास हमारी सरकार आज कर रही है चीन उसे वर्षों पहले कर चुका है. लेह में तो वह भारतीय सीमा के भीतर भी सड़क खोद चुका है.
अभिप्राय यह है कि सीमा पर दुश्मन से लड़ते समय मानवीयता या नैतिकता नहीं, बल्कि आक्रामकता ही काम आ सकती है और यह तब ही संभव होगा जब दुश्मन से लोहा लेने के लिए ढांचागत व्यवस्था को सीमा पर मजबूत बनाया जा सकेगा. यदि ऐसा होता है तो मेक इन इंडिया की अवधारणा से निर्मित हथियार भी हमें मजबूती प्रदान करेंगे अथवा आयातित हथियार भी धरे के धरे रह जाएंगे.