देश की तरक्की का रास्ता शिक्षा है. अच्छे शिक्षण संस्थानों के आधार पर किसी देश की तरक्की को सुनिश्चित माना जा सकता है. भारत आर्थिक विकास की राह पर जिस रफ्तार से चल रहा है उस से दुनिया में भारत को जरूर अहमियत मिली है और दुनिया की सब से तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा भी हमें मिल रहा है. इस सम्मान को बनाए रखने की जिम्मेदारी हम सब की है. इस में बड़ी तथा अहम भूमिका हमारे शिक्षण संस्थानों की है.

वैश्विक स्तर पर आ रहे सर्वेक्षणों पर नजर डालें तो हर सर्वेक्षण में भारतीय संस्थानों की स्थिति बहुत पिछड़ी हुई है. शीर्ष 10 वैश्विक संस्थानों में हमारे किसी संस्थान के लिए जगह पाना सपना हो गया है.

हाल ही में टाइम्स हायर एजुकेशन ब्रिक्स ऐंड एमर्जिंग इकोनौमिज रैंकिंग ने दुनिया के प्रमुख शिक्षण संस्थानों का सर्वेक्षण कराया है. इस में भारत के सिर्फ 10 संस्थानों ने ही शीर्ष 100 में जगह हासिल की है. सूची में भारत का कोई भी शिक्षण संस्थान 10 शीर्ष संस्थानों में शामिल नहीं है. पंजाब विश्वविद्यालय ने थोड़ी लाज रखी और यह 20 प्रमुख संस्थानों में शामिल है. आईआईटी खड़गपुर 34वें, आईआईटी दिल्ली 37वें और आईआईटी रुड़की 37वें स्थान पर हैं. इस तरह से इन संस्थानों के साथ ही दुनिया के 100 प्रमुख संस्थानों में भारत के सिर्फ 10 संस्थानों को ही जगह मिल सकी है.

इस के ठीक विपरीत चीन है, जिसे भारत अपना प्रमुख आर्थिक प्रतिस्पर्धी नहीं मानता है, निरंतर आर्थिक विकास की सीढि़यां भारत की तुलना में तेजी से चढ़ रहा है. शिक्षा के क्षेत्र में भी यही स्थिति है. इस सर्वेक्षण में चीन के 4 संस्थान दुनिया के 10 शीर्ष शिक्षण संस्थानों में शामिल हैं. इसी तरह से उस के 23 संस्थान दुनिया के 100 शीर्ष संस्थानों में शामिल हैं.

भारतीय भले ही इस सर्वेक्षण को भेदभावपूर्ण बता रहे हैं लेकिन इस में कोई दोराय नहीं है कि हमारे यहां शिक्षा उद्योग बन गया है. शिक्षण संस्थानों को सेवाभाव या देश का भविष्य तैयार करने वाले केंद्र नहीं बल्कि पैसा कमाने की मशीन के रूप में लिया जा रहा है. शिक्षण संस्थानों को जब तक उन का वास्तविक सम्मान नहीं दिया जाएगा देश का समग्र विकास संभव नहीं है. हम आर्थिक विकास को जितना महत्त्व दे रहे हैं उसी स्तर पर शिक्षण संस्थानों और उन की गुणवत्ता को महत्त्व दिया जाना चाहिए.

 

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