भारतीय रिजर्व बैंक ने भुगतान बैंकों के संचालन को स्वीकृति प्रदान करने के साथ बैंकिंग की नई परंपरा की शुरुआत की है. भारतीय रिजर्व बैंक की नजर में भुगतान बैंक का उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है जिस के तहत लघु बचत खाते खोलना, प्रवासी श्रमिक वर्ग, निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों, लघु कारोबारों, असंगठित क्षेत्र के अन्य संस्थानों व अन्य उपयोगकर्ताओं को भुगतान, विपे्रषण सेवाएं प्रदान करना आदि है क्योंकि आज भी अधिकांश भारतीय नागरिक गांवों में निवास करते हैं.

125 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले इस देश में आज भी लगभग 24 करोड़ लोग बैंकिंग सेवाओं से नहीं जुड़ पाए हैं.  हालांकि प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत बैंकिंग सेवा से दूर लोगों को बैंकिंग से जोड़ने के लिए चलाए गए अभियान से 19 करोड़ लोगों को बैंकों से जोड़ने में सफलता मिली परंतु आज भी केवल 68 प्रतिशत लोग बैंकिंग जमा एवं 52 प्रतिशत लोग ही बैंक ऋण सेवा से जुड़ पाए हैं. गांवों की बात तो छोड़ दीजिए, शहरी इलाकों में भी आज काफी संख्या में ऐसे लोग मिल जाएंगे जो अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा अपने घरों में ही रखते हैं जो कि असुरक्षित होता है. प्रबंधन संस्था ‘प्राइस वाटर कूपर’ के अनुसार, इस समय भारत में 1,70,000 बैंक शाखाएं, 1,80,000 एटीएम, 3,57,000 बैंकिंग कौरेसपौंडैंट और तकरीबन 1.1 मिलियन पौइंट औफ सेल्स हैं जो ग्राहकों को अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और प्रौद्योगिकी में हो रहे विस्तार के कारण इन की संख्या में इजाफा हो रहा है.

आज ग्रामीण ही नहीं, बल्कि शहरी इलाकों में भी परंपरागत बैंकिंग के अभाव में गैर बैंकिंग संस्थानों ने कुकुरमुत्तों की तरह अपने पैर पसार लिए हैं और अपनी आकर्षक योजनाओं के जाल में लोगों को फंसा कर उन की जमापूंजी ले कर चंपत हो जाते हैं. हम अरबों रुपए का गोल्डन फौरेस्ट घोटाला, पर्ल, एग्रीटैक, सहारा जैसे घोटाले भूले भी नहीं थे कि पश्चिम बंगाल में सारदा चिटफंड का करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हो गया. देश की कानून व्यवस्था ऐसे संस्थानों को रोक पाने में अब तक नाकाम रही है. ऐसे संस्थान जब आम जनता के करोड़ोंअरबों रुपए ले कर चंपत हो जाते हैं तब जा कर मीडिया और प्रशासन में शोर होता है. कुछ दिनों बाद ऐसे संस्थानों का धंधा फिर से बेरोकटोक चलने लगता है.

आरबीआई की सोच का परिणाम

भारतीय रिजर्व बैंक अब तक यूनिवर्सल बैंक के तहत ग्राहकों को सभी प्रकार के बैंकिंग लेनदेन, जैसे जमाराशियां जुटाने, ऋण देने तथा निवेश करने हेतु लाइसैंस जारी करता था परंतु पहली बार भुगतान बैंकों के लिए डिफरैंशियल लाइसैंस जारी किया गया है जिन के द्वारा केवल सीमित सेवाएं ग्राहकों को प्रदान की जाएंगी. इस तरह के लाइसैंस जारी करने से पहले भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नचिकेत मोर समिति गठित की गई थी जिस ने दिसंबर 2013 में डिफरैंशियल लाइसैंस जारी करने की सिफारिश की थी.

इस के अलावा वित्तीय क्षेत्र सुधारों पर 7 वर्ष पूर्व गठित रघुराम राजन समिति की रिपोर्ट में भी यह कहा गया था कि निर्धन वर्ग तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के लिए बैंकिंग को परंपरागत ढांचे से बाहर लाने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में अन्य प्रस्तावों सहित केवल जमाराशि स्वीकार करने वाले रघु निजी बैंक स्थापित करने तथा सेवा परिचालन की लागत कम रखने हेतु प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक उपयोग करने की सिफारिश की गई थी. रिजर्व बैंक को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की पहुंच दूरदराज के गांवों तक नहीं हो पा रही थी. यदि ऐसे बैंक वहां पहुंचे भी, तो आधारभूत ढांचे के अभाव में प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पा रहे थे.

क्या है भुगतान बैंक

भुगतान बैंक एक विशेष प्रकार का बैंक है जिसे सीमित दायरे में बैंकिंग कार्य करने की अनुमति दी जाती है. ये बैंक जमाओं पर आधारित हैं जो ग्राहकों का पैसा जमा तो कर सकते हैं परंतु ग्राहकों को ऋण नहीं दे सकते. ग्राहकों के धन को सुरक्षित रखना और जब भी जरूरत पड़े उन का भुगतान करना तथा ग्रामीण जनता में वित्तीय प्रवेश को बढ़ावा देना जिस के तहत लघु बचत खाते खोलना, प्रवासी श्रमिक वर्ग, निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों, लघु कारोबारों, असंगठित क्षेत्र की अन्य संस्थानों व अन्य उपयोगकर्ताओं को भुगतान एवं विप्रेषण सेवाएं प्रदान करना ही इन बैंकों का मुख्य उद्देश्य है. प्रारंभ में ये बैंक प्रत्येक ग्राहक से अधिकतम 1 लाख रुपए की जमाराशि स्वीकार कर सकते हैं तथा इन जमाराशियों को नकदी या सरकारी प्रतिभूतियों में ही निवेश कर सकते हैं.

भुगतान बैंक एटीएम/डैबिट कार्ड तो जारी कर सकता है परंतु क्रैडिट कार्ड जारी नहीं कर सकता. ये अपने ग्राहकों को विभिन्न प्रौद्योगिक प्रणालियों के माध्यम से भुगतान और धन भेजने की सेवाएं प्रदान कर सकते हैं व म्यूचुअल फंड इकाइयों और बीमा उत्पाद जैसे जोखिम रहित सरल वित्तीय उत्पादों का वितरण कर सकते हैं. इन्हें बैंकिंग नियमावली 1987 की धारा 22 के अंतर्गत लाइसैंस जारी किए गए हैं. ये बैंक अपनी बैंकिंग सेवा, गांवों, कसबों और छोटे कामगारों तक बैंकिंग सुविधाओं को पहुंचाने का प्रयास करते हैं जिस से छोटे कारोबारी भी इन के माध्यम से आसानी से अपना पैसा जमा व अन्य लेनदेन कर सकें. इन बैंकों द्वारा इंटरनैट बैंकिंग की सुविधा भी प्रदान की जा सकेगी. भुगतान बैंक प्रीपेमैंट कार्ड के अलावा गिफ्ट कार्ड और मैट्रो कार्ड के साथ प्रौद्योगिकी आधारित लगभग सभी सेवाएं दे सकते हैं.

बैंकिंग व्यवस्था को बढ़ावा

आज भी ग्रामीण एवं शहरी इलाकों के कई छोटे व्यापारी व कम आय वाले लोग नकदी लेनदेन किया करते हैं और अपनी नकदी घर पर ही रखते हैं जिस से एक तो उन की राशि असुरक्षित होती है, दूसरी ओर उन्हें अपनी धनराशि पर कोई ब्याज नहीं मिलता. वहीं बैंकों में न सिर्फ राशि सुरक्षित होती है बल्कि वह ब्याज भी अर्जित करती है.

भुगतान बैंकों के खुलने से ग्रामीण एवं छोटे शहरी कारोबारियों में बैंकिंग के प्रति एक नई सोच विकसित होगी. इस से देश में बैंकिंग व्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. ग्रामीण जनता आज भी मानसिक व आर्थिक रूप से शहरी नागरिकों की तुलना में हीनभावना से ग्रस्त होती है और उस के पास धन होते हुए भी वह बैंकों से दूर रहती है. भुगतान बैंक ग्रामीण समृद्ध लोगों को बैंकिंग धारा से जोड़ने का प्रयास करेंगे तो वहीं निर्धनों में बैंकिंग प्रणाली के प्रति जागरूकता फैलाने का भी काम करेंगे.

भुगतान बैंक के खिलाड़ी

भारतीय रिजर्व बैंक ने रिलायंस इंडस्ट्रीज, आदित्य बिड़ला नूवो, वोडाफोन, भारतीय एयरटैल, डाक विभाग, विजय शेखर शर्मा (पेटीएम के सीईओ), चोलामंडलम डिस्ट्रीब्यूशन सर्विसेज, टैक महिंद्रा, एनएसडीएल लिमिटेड, फिनो पेटेक और दिलीप सांघवी (सन फार्मा के प्रमोटर) जैसे 11 बड़े प्रतिष्ठित संस्थानों को भुगतान बैंक का लाइसैंस दिया है. वे उन्नत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने के साथ इस संकल्पना का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए आमजन तक मूल बैंकिंग सेवा पहुंचाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे. वहीं, ये बड़े औद्योगिक घराने अपनी पेशेवर दक्षता का इस्तेमाल करते हुए बैंकिंग रहित क्षेत्रों में तेजी से बैंकिंग सेवाएं पहुंचाएंगे जो शायद अपनी व्यावसायिक मजबूरी के कारण सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक अब तक नहीं कर पाए हैं.

भुगतान बैंक का लाइसैंस देने से बैंकिंग प्रणाली में और अधिक धन आएगा तथा ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सेवाओं का विस्तार होगा और हर गांव, मौडल गांव बनता चला जाएगा, जैसा कि अन्य देशों में है. इन में से कई संस्थाएं अभी से ही विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के साथ साझेदारी में अपनी सेवाएं देना चाहती हैं ताकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का नैटवर्क का इस्तेमाल कर दूरस्थ इलाकों में बैंकिंग सेवाएं पहुंचाई जा सकें. भुगतान बैंक का लाइसैंस प्रतिष्ठित व्यक्ति एवं संस्थानों को दिया गया है एवं इस बैंक का पूंजी आधार 100 करोड़ रुपए का होगा और इन पर वित्तीय विनियामक की नजर निरंतर नजर बनी रहेगी जिस से जनता का पैसा पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. भविष्य में एनबीएफसी, कौर्पोरेट बैंकिंग प्रतिनिधि, मोबाइल टैलीफोन कंपनी, सुपर मार्केट, रियल एस्टेट की कोऔपरेटिव, सरकारी कंपनियां, अन्य वाणिज्यिक बैंक आदि को भी भुगतान बैंक का लाइसैंस मिल सकता है.

भुगतान बैंक की मुख्य विशेषताएं ये हैं:

– भुगतान बैंक का पूंजी आधार 100 करोड़ रुपए का होगा.

– भुगतान बैंक को सिर्फ भुगतान करने का अधिकार होगा. इन्हें ऋण सेवाएं देने और प्रवासी भारतीयों का खाता खोलने की अनुमति नहीं होगी.

– भुगतान बैंकों में शुरू में प्रति ग्राहक अधिकतम 1 लाख रुपए तक की राशि जमा रखने की अनुमति होगी.

– भुगतान बैंक एटीएम डैबिट कार्ड तथा अन्य पूर्व जमा वाले भुगतान कार्ड आदि जारी कर सकेंगे लेकिन ये बैंक क्रैडिट कार्ड जारी नहीं कर सकेंगे.

– ये बैंक बिना जोखिम वाले साधारण वित्तीय उत्पाद जैसे बीमा उत्पादों के वितरण आदि का काम भी कर सकते हैं.

– इन के जरिए एक जगह से दूसरी जगह पैसे का भुगतान किया जा सकेगा, ये अपने प्रतिनिधियों, एटीएम व शाखाओं से नकदी का भुगतान करने का काम करेंगे.

– इन्हें इंटरनैट के जरिए भुगतान सुविधा देने की भी छूट होगी. ये किसी वाणिज्यिक बैंक के प्रतिनिधि भुगतान बैंक बनने का भी काम कर सकते हैं लेकिन इन्हें किसी भी ग्राहक के खाते में एक लाख रुपए तक की राशि रखने की ही आजादी होगी.

सामान्य बैंकों को चुनौती

रिजर्व बैंक द्वारा भुगतान बैंक की घोषणा होते ही सब से पहले भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने इसे सामान्य बैंकों के लिए खतरा बताया. उन का कहना था कि इस से सामान्य बैंकों को चुनौती का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि भुगतान बैंक बिना किसी जोखिम के आ रहे हैं और वे ऐसी प्रणाली और आपूर्ति मौडल में प्रवेश कर रहे हैं जो चुस्तदुरुस्त है.

ईकौमर्स कंपनियों का उदाहरण देते हुए अरुंधती भट्टाचार्य ने कहा कि यदि नए बैंक बड़े उद्योगपतियों को दिए जाते हैं और वे बाजार हिस्सेदारी हासिल करने के लिए पूंजी खर्च करने का फैसला करते हैं, तो ऐसे में मौजूदा ऋणदाताओं के लिए काफी मुश्किल स्थिति पैदा हो जाएगी. भुगतान बैंकों को वेतन समझौते जैसे विरासती मुद्दों से नहीं जूझना होगा.

इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भुगतान बैंकों के पास ऐसी कोई सेवा नहीं है जो सामान्य बैंक नहीं दे सकते परंतु भुगतान बैंक वह सब नहीं कर सकते जो सामान्य बैंक कर सकते हैं. उन्होंने यह भी कहा, ‘‘भुगतान बैंक उपयोगी साबित होंगे क्योंकि वे संभावित भागीदारों को बैंकिंग प्रणाली में ला सकते हैं. मौजूदा बैंक इस से अपनी लागत कम कर सकते हैं, इस तरह से भुगतान बैंक सामान्य बैंकों के लिए फीडर की तरह काम करेंगे.’’

वहीं, आईडीएफसी बैंक और बंधन बैंक अपना पूर्ण बैंकिंग परिचालन शुरू करते हुए जमाराशियों पर बाजार से अधिक ब्याज दर दे रहे हैं जिस के चलते वे अन्य बैंकों के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं.

भुगतान बैंक व्यावसायिक संगठन के रूप में अपना कामकाज शुरू करेंगे और उन का उद्देश्य निश्चित तौर पर व्यावसायिक होगा. अन्य निजी संस्थाओं की तरह इन बैंकों का मुख्य फोकस लाभ कमाने पर होगा. हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रारंभिक तौर पर ऐसे व्यावसायिक संस्थानों को भुगतान बैंकिंग का लाइसैंस देने के साथसाथ कई पाबंदियां भी लगा दी हैं ताकि वे आम जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं कर पाएं और उन का पैसा न सिर्फ सुरक्षित रहे बल्कि उन्हें अपनी बचत राशि पर अधिक से अधिक ब्याज भी अर्जित हो सके.

देखने की बात है कि भुगतान बैंक के लिए लाइसैंस जितने भी संस्थानों को दिए गए हैं वे या तो बड़े व्यापारिक घराने हैं या फिर बडे़ व्यापारिक घराने के प्रवर्तक हैं जो अपनी ऊंची राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाते हुए नीतिनिर्धारकों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं और यह अंदेशा भी है कि भविष्य में इन बैंकों पर लगाई गई पाबंदियों में ढील दी जा सकती है.

पूरे यकीन के साथ अभी यह नहीं कहा जा सकता कि भुगतान बैंकों का स्वरूप भविष्य में भी यही रहेगा या फिर वह कुछ वर्षों तक सेवा देने के बाद वे अपना पूंजी आधार बढ़ाने की मांग करते हुए पूर्ण सेवा वाले बैंक खोलने की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं जिस के परिणामस्वरूप अन्य बैंक विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए एक कठिन चुनौती खड़ी हो सकती है.

आरबीआई के फैसले पर सवाल

भारतीय रिजर्व बैंक ने जिन उद्देश्यों से बड़े एवं प्रतिष्ठित औद्योगिकी घरानों को भुगतान बैंक का लाइसैंस दिया है उस से कुछ सवाल तो जरूर खड़े होते हैं. एक ओर भुगतान बैंकों को मुख्य वित्तीय समावेशन के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य करना है परंतु दूसरी ओर इन्हें ऋण एवं क्रैडिट कार्ड के अलावा समस्त प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं देने की अनुमति दे दी गई है.

वहीं, इन का कारोबार का दायरा भी निर्धारित नहीं किया गया है कि ऐसे बैंक सिर्फ ग्रामीण इलाकों में ही अपना कारोबार करेंगे और शहरी क्षेत्रों से दूर रहेेंगे. इन का कारोबार दायरा व्यापक होने के कारण शुरुआत में तो इन का जोर ग्रामीण क्षेत्रों में जरूर रहेगा परंतु धीरेधीरे इन का जोर शहरी युवाओं को लुभाने का रहेगा जो प्रौद्योगिकी आधारित सेवाओं को प्राथमिकता देते हैं.

यहां यह प्रश्न उठता है कि देश की ग्रामीण जनता एवं ऐसे लोग जो ज्यादा पढ़ेलिखे एवं नई तकनीकों से परिचित नहीं हैं तथा कई मामलों में एटीएम का संचालन भी ठीक तरीके से नहीं कर पाते और आएदिन धोखेबाजों द्वारा एटीएम का प्रयोग सिखाने के नाम पर उन के एटीएम से पैसे निकालने की घटना घटती है.

ऐसे में ग्रामीण अनपढ़ जनता एकाएक इतनी सारी प्रौद्योगिक आधारित जमा, भुगतान एवं निवेश संबंधित सुविधाओं को इस्तेमाल करने के लिए कैसे तैयार हो जाएगी. अगर वह तैयार हो भी गई तो छोटेमोटे लेनदेन से क्या इन कंपनियों का व्यापारिक हित सध पाएगा? क्या वे अपनी स्थापना के उद्देश्य को पूरा कर पाएंगे? क्या फिर वे नीतिनिर्धारकों को प्रभावित कर पूर्ण बैंकिंग सेवा प्रदान करने का लाइसैंस प्राप्त करेंगे? और फिर अपनी ऊंची एवं राजनीतिक पहुंच का फायदा उठा कर बैंकिंग उद्योग के लिए एक चुनौती नहीं खड़ी करेंगे, ये सवाल हैं जिन के जवाब भविष्य में ही मिलेंगे.                 

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...