प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को किसी भी विकासशील देश के ढांचागत विकास की धुरी माना जाता है. विकासशील ही नहीं विकसित, देशों को भी अपने सतत विकास के लिए ढांचागत सुधार की सुविधा को जारी रखना आवश्यक है और इस प्रक्रिया के सुचारु संचालन के लिए विदेशी निवेश यानी एफडीआई का प्रवाह आवश्यक है. एफडीआई उसी देश में ज्यादा होता है जहां निवेशकों को लगता है कि देश की आर्थिक नीति अनुकूल है और उन्हें इस निवेश से फायदा होगा. ताजा सूचना के अनुसार, भारत विदेशी निवेशकों का विश्वास अर्जित करने वाले प्रमुख देशों की सूची से फिसल कर 7वें स्थान पर चला गया है. वैश्विक सलाहकार संस्था एटी कीर्नी ने करीब 300 निवेशक कंपनियों में एक सर्वेक्षण कराया है जिस में कहा गया है कि भारत के प्रति निवेशकों का सम्मान घटा है.

वर्ष 2005, 2007 तथा 2012 में भारत दूसरे स्थान पर था और 2010 में हम इस क्रम में तीसरे स्थान पर रहे लेकिन इस बार भारत 7वें स्थान पर आ गया है. जून के पहले पखवाड़े में जारी इस सूची के अनुसार, 2001 के बाद भारत की रैंकिंग इस क्षेत्र में सब से निचले पायदान पर है. इस बार अमेरिका पहले स्थान पर है जबकि पिछले वर्ष चीन को पहला स्थान हासिल था. भारत के आर्थिक विकास के लिए एफडीआई का प्रवाह निरंतर बना रहना आवश्यक है और निवेशकों का विश्वास तब ही अर्जित किया जा सकता है जब राजनीतिक स्थिरता, सरकार की आर्थिक नीतियां आक्रामक और विकासपरक हों.

जानकारों का कहना है कि एफडीआई विकास की प्रक्रिया में तेजी लाता है, इसलिए विदेशी निवेशकों का भरोसा जीतना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.

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