देश में आम आदमी लगातार जाली मुद्रा का शिकार हो रहा है. गरीब की तो जाल में फंस कर जैसे कमर ही टूट रही है. एक मजदूर के खूनपसीने की कमाई 500 रुपए का जाली नोट क्षणभर में पानी में मिला दे रहा है.
नकली नोट कहां से आ रहे हैं, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है. सवाल यह है कि इन नोटों के प्रसार को रोकने में दिक्कत कहां हो रही है? बाजार में नकली नोटों की इतनी अधिक संख्या है कि शायद ही कोई हाथ बचा हो जिस को नकली नोटों ने नहीं छला हो. सरकार जानती है कि बड़ी तादाद में इस तरह के नोट फैले हैं. रिजर्व बैंक ने तो एक डाटा जारी कर बताया है कि बाजार में सब से अधिक नकली नोट 500 और 100 रुपए के हैं.
सरकारी आंकड़े के अनुसार, 2011-12 में 5,21,155 नकली नोटों का बाजार में प्रसार हुआ जबकि 2012-13 में यह संख्या मामूली गिर कर 4,98,252 रही. यह आंकड़ा बैंकों में नकली नोट पकड़ने वाली मशीनों से पकड़े गए नकली नोटों के आधार पर तैयार किया गया. हैरत यह है कि एटीएम मशीनों में नकली नोट निकल रहे हैं. निश्चित रूप से यह मिलीभगत का ही परिणाम है.
रिजर्व बैंक का यह भी कहना है कि हजार रुपए के नोट कम नकली निकल रहे हैं क्योंकि इन का प्रचलन 100 या 500 के नोटों की तुलना में कम है.
आम आदमी को तब पता चलता है जब वह बैंक में नोट ले कर जाता है और इस क्रम में वह ठगा सा रह जाता है. इस स्थिति में बैंकों को कम से कम यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एटीएम से कोई नकली नोट नहीं निकले और यदि किसी एटीएम से नकली नोट निकलते हैं तो बैंक को एटीएम में नोट रखने वाली संस्था के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए.
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