बीते सप्ताह सोशल मीडिया कंपनी Facebook को एक साथ 3 जोर के झटके लगे. पहला झटका तब लगा जब ब्रिटेन की एक संसदीय समिति की ओर से जारी आंतरिक दस्तावेजों से इस बात के स्पष्ट प्रमाण मिले कि फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं के डेटा का इस्तेमाल प्रतिस्पर्धात्मक हथियार के रूप में किया है. यानी फेसबुक ने अपने प्रौफिट के लिए चुनिंदा कंपनियों को अपने यूजर्स के निजी डाक्युमेंट्स एक्सेस करने का अधिकार दे रखा है.

दूसरा झटका उसकी खुद की गिरती साख को लेकर है. दरअसल कंपनी की स्टौक कीमत गिरने के बाद इसके कर्मी नौकरियां छोड़ रहे हैं. यह बात हवा में नहीं बल्कि आकंड़ों के साथ कही जा रही है क्योंकि वौल स्ट्रीट जर्नल में पब्लिश्ड रिपोर्ट का दावा है कि फेसबुक के करीब 48 प्रतिशत कर्मचारी फेसबुक के भविष्य के लिए शंकित हैं.

तीसरा बड़ा झटका यह है कि साल 2017 में बेस्ट वर्किंग प्लेस की रेटिंग में अव्वल नंबर पर रह चुका फेसबुक अब 7 वें नंबर पर खिसक गया है. रोजगार वेबसाइट ग्लासडोर की एनुअल रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका में 100 सर्वश्रेष्ठ वर्क प्लेस की लिस्ट में फेसबुक अब सातवें स्थान पर पहुंच गया है जबकि एप्पल 84वें स्थान से छलांग लगाकर 71वें स्थान पर पहुंच गया है.

बाजार के सिद्धांतों से छेड़छाड़

बात पहले झटके की. करीब 200 पन्नों के दस्तावेज में सामने आया है कि फेसबुक ने एयरबिएनबि, लिफ्ट और नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों को मोटे कीमतों पर यूजर्स डेटा बेचा और इन कम्पनियों ने उस निजी डाटा का इस्तेमाल ग्राहकों को प्रभावित करने और अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए किया. इन डाक्यूमेंटस में 2012 से 2015 के बीच की फेसबुक की वो कारगुजारी सामने आती है जब वह मार्केट में टौप पोजीशन पर था. इस दौरान उसने न सिर्फ अपनी मर्जी से चुनिन्दा कर्मियों को डाटा बेचा बल्कि बाजार के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ जाकर प्रतिस्पर्धी कम्पनियों की राह में रुकावट भी पैदा की. ईमेल में यह बात भी उजागर हुई है कि कंपनी में इस बात को लेकर जिरह चल रही थी कि जो ऐप डिवेलपर उन्हें ऐड देते हैं उनको डेटा का ज्यादा ऐक्सस दिया जाए या नहीं. जबकि दूसरे मामलों में फेसबुक ने उन कंपनियों का ऐक्सेस बंद करने पर भी चर्चा की जो उनके प्रतिद्वंदी थे.

डूबते जहाज से किनारा

कहावत है कि जहाज में जब छेद होता है तो इसकी भनक सबसे पहले चूहों को होती है और वो ही सबसे पहले जहाज से किनारा कर लेते हैं. इस समय फेसबुक भी किसी डूबते जहाज से कम नहीं लग रहा है. लिहाजा इसके कर्मचारी भी धीरे धीरे दबे पांव कहीं और नौकरी तलाश करने में जुट गए हैं. हालांकि सिलिकौन वैली में फेसबुक का नाम बतौर ब्रांड ऐसा है कि वहां एक बार ज्वाइन करने के बाद कोई नौकरी नहीं छोड़ना चाहता है. लेकिन हालिया रुझान इस पुराने मिथक को तोड़ते दिखाई रहे हैं.

फेसबुक के करीब छह एम्पलाइज इस बात का खुलासा सीएनबीसी से कर चुके हैं कि उन्हें फेसबुक में अभी काम कर रहे लोगों से नई नौकरी तलाशने के लिए कौल आ रही हैं और इनकी संख्या दिनबदिन ज्यादा हो रही है. हालांकि सभी एम्पलाइज खुलकर साने नहीं आये हैं लेकिन फेसबुक के पूर्व निदेशक की वो टिप्पणी सब साफ कर रही है जिसमें वे कह रहे हैं कि इस साल फेसबुक से नौकरी छोड़ने वालों की संख्या बढ़ सकती है. दूसरी तरफ फेसबुक में आंतरिक सर्वेक्षण का हवाला देने वाली वौल स्ट्रीट जर्नल में पब्लिश रिपोर्ट भी करीब 48 प्रतिशत कर्मियों के हवाले से कहती है कि वे फेसबुक के भविष्य के लिए आशावादी नहीं हैं.

सेंधमारी ने गिराई साख

सोचने वाली बात यह है दुनिया की इतनी बड़ी फर्म अचानक से इस हाल में कैसे आ गयी कि लोग इसके डूबने की भविष्यवाणी करने पर उतारू हैं. दरअसल यह सब तब शुरू हुआ था जब ‘कैम्ब्रिज एनालिटिका’ पर लगभग 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स की निजी जानकारी चुराने के आरोप लगे थे. और इस डाटा से अमेरिकी चुनावों में ट्रंप की छवि सुधारी गयी थी.

फेसबुक के इतिहास का सबसे बड़ा डेटा लीक ही इसकी गिरती साख का सबब है. सेंधमारी के बाद इस साल स्टौक गिरने के साथ साथ अमेरिका में सर्वश्रेष्ठ कार्यस्थल होने का खिताब खोने आदि के चलते फेसबुक लगातार नकारात्मक खबरों में बना हुआ है जिसका खामियाजा उसे अपने ब्रांड की छवि खोकर चुकाना पड़ रहा है. ग्लासडोर के कम्युनिटी एक्सपर्ट स्कौट डोब्रोस्की के मुताबिक, फेसबुक में एम्प्लोयी सेटिस्फेक्शन का लेवल लगातार गिरता जा रहा है. उनके मुताबिक पहली तिमाही में फेसबुक में एम्प्लोयी सेटिस्फेक्शन की रेटिंग 4.6 थी जो चौथी तिमाही तक आते 4.3 पर पहुंच गई.

जाहिर है फेसबुक अब फेकबुक की इमेज में कैद होता जा रहा है. लगातार गिरती साख, सेटिस्फेक्शन रेटिंग, और कानूनी पचड़े इसकी रंगत उड़ाते जा रहे हैं. डर है कहीं आने वाले समय में यह भी बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर न हो जाए.

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