नोटबंदी के बाद देश में औनलाइन भुगतान के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों की जैसे लौटरी लग गई है. चीन की अली बाबा समूह की 40 प्रतिशत वाली पेटीएम कंपनी इस दौड़ में सब से अधिक मुनाफा कमाने के साथ लोकप्रिय कंपनी बनी है. कंपनी का दावा है कि उस के ग्राहकों की संख्या देश में सरकारी क्षेत्र के सब से बड़े स्टेट बैंक औफ इंडिया के ग्राहकों की संख्या से भी ज्यादा हो गई है.

नोटबंदी के बाद पेटीएम के मोबाइल ऐप के जरिए चाय की दुकानों पर चाय बिक रही है और अन्य दुकानों पर भी लोग जरूरी उपयोग की चीजें खरीद रहे हैं. पेटीएम शब्द लोगों की जबान पर चढ़ चुका है जबकि इस दौड़ में मोबिक्विक जैसी देसी कंपनियां भी हैं लेकिन वे पीछे हट गई हैं.

मोबिक्विक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विपिन प्रीत सिंह का कहना है कि विदेशी डिजिटल कंपनियों के कारोबार पर नियंत्रण के लिए उसी तरह की शर्त होनी चाहिए जैसी विदेशी बैंकों के लिए है. देश में विदेशी बैंकों के लिए निवेश पर उच्चतम सीमा निर्धारित है. मतलब, ये कंपनियां मनमाना निवेश नहीं कर सकतीं. निवेश की इसी तरह की सीमा औनलाइन भुगतान से जुड़ी विदेशी कंपनियों के लिए भी होनी चाहिए. वे आगे कहते हैं कि पेटीएम जैसी चीनी कंपनियों का पैसा सीधे चीन पहुंच रहा है. पेटीएम डिजिटल क्षेत्र में ज्यादा लोकप्रिय है और मनमाने पैसे लुटा कर मनमानी वसूली कर रही है. उस तरह से स्नैपडील की सहयोगी फ्रीचार्ज भी अच्छा निवेश कर रही है. ऐसे में मोबिक्विक जैसी भारतीय कंपनियों को मौका दिया जाना चाहिए.

उन का यह भी कहना है कि पेटीएम की तरह उन की कंपनी 100 फीसदी कैशबैक वाली व्यवस्था लागू नहीं कर सकती. निश्चितरूप से यह चिंता स्वाभाविक है लेकिन सरकार का दायित्व है कि वह अपने स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए मोबिक्विक जैसी कंपनियों को आगे बढ़ाए और उन के कारोबार को प्राथमिकता दे.

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