कैशलेस इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक कदम और बढ़ाया है. सरकार ने कहा है कि सार्वजनिक सेवाओं के लिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड तथा नेट बैंकिंग के जरिये किए जाने वाले सभी भुगतान के लिए सौदा लागत वह वहन करेगी. सरकार ने देश में कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया है.

इस समय सरकार को किए जाने वाले भुगतान पर लेन-देन की लागत या मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) ग्राहक उठाते हैं. वित्त मंत्रालय ने इस बारे में एक आधिकारिक परिपत्र जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अन्य मर्चेंटों की तरह एमडीआर लागत उठाने के लिए सरकारी विभागों को उचित कदम उठाने चाहिए. डेबिट कार्ड व क्रेडिट कार्ड या किसी डिजिटल तरीके से सरकार को भुगतान के लिए एमडीआर लागत का वहन किसी भी तरह जनता को नहीं करना चाहिए.

इसमें कहा गया है कि डेबिट, क्रेडिट कार्डों या डिजिटल तरीके से इस तरह के भुगतान पर लेनदेन के लिए इंटरमीडियरीज को किए जाने वाले भुगतान का तौर तरीका तय किया जा रहा है. इस बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश उचित समय पर जारी किए जाएंगे. सरकार द्वारा सरकारी भुगतान व संग्रहण में क्रेडिट, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के कदमों के तहत वित्त मंत्रालय ने यह पहल की है.

रिजर्व बैंक ने 2012 में डेबिट कार्ड पर 2000 रुपए तक की ट्रांजैक्‍शन वैल्‍यू पर एमडीआर की सीमा 0.75% और 2000 से ज्‍यादा की ट्रांजैक्‍शन वैल्‍यू पर 1 फीसदी की सीमा तय की थी. हालांकि, आरबीआई ने क्रेडिट कार्ड भुगतान पर एमडीआर की कोई सीमा तय नहीं की है. देश में इस समय 61.5 करोड़ डेबिट कार्ड धारक और 2.3 करोड़ क्रेडिट कार्ड धारक हैं.

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