बीमा क्षेत्र में सरकार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार को बड़ा लाभांश देने वाली सरकारी बीमा कंपनियां इधर कुछ ढीली पड़ गई हैं जिस से सरकार की चिंता बढ़ी है. इस चिंता की बड़ी वजह बीमा कंपनियों की अंधी कमाई पर रोक और आम निवेशक का ध्यान रखे बिना मोटी रकम ऐंठने की नीतियों पर चला बीमा नियामक संगठन-‘इरडा’ का डंडा है.
इरडा ने बीमा कंपनियों की मनमानी पर लगाम कसी है. खासकर यूनिट लिंक्ड इंश्योरैंस प्लान यानी यूलिप से जुड़े विवाद के बाद पता लगा कि इस क्षेत्र में अंधी कमाई हो रही है. पहले जीवन बीमा निगम का एकछत्र राज था. वह जो भी पौलिसी लाती, चल पड़ती थी. उस की मनमानी पर अंकुश निजी?क्षेत्र की कंपनियों के बीमा क्षेत्र में आने के बाद शुरू हुआ. बीमा कंपनियों की मनमानी को रोकने के लिए सरकार ने इरडा का गठन किया.
इरडा ने यूलिप विवाद के सितंबर 2010 में कुछ नए दिशानिर्देश तैयार कर लागू किए जिस का सीधा लाभ उपभोक्ता को होने लगा. बीमा कंपनियों की मनमानी इन नियमों से नियंत्रित हुई लेकिन कंपनियों का मुनाफा घटने लगा. सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियां उपभोक्ताओं पर मनमानी करने से कतराने लगीं. लाभ का धंधा माना जाने वाला बीमा व्यवसाय ठंडा पड़ गया तो वित्तमंत्री पी चिदंबरम को?स्वयं दखल देना पड़ा और उन्होंने बीमा कंपनियों, खासकर जनरल और जीवन बीमा कंपनी के विकास पर कड़ी निगाह रखनी शुरू कर दी. उन्होंने कंपनियों को हर माह प्रगति रिपोर्ट देने को भी कहा है.
बीमा क्षेत्र में वे विदेशी निवेश के पक्षधर हैं और इस के लिए वे विपक्षी दलों के साथ 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने पर भी विचार करने को तैयार हैं. जनता के हितों की बात करते ही लाभ पर कैंची चलती है तो सब की आंखें खुलने लगती हैं लेकिन जब जनता की जेब कटती है तो सभी आंखें मूंदे रहते हैं. यह स्थिति चिंतनीय है और जनहित को महत्त्व दिया जाना जरूरी है.
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