कालेज में प्रोफैसर थे. उन के अभिन्न मित्र राज वर्षों बाद उन से मिले. राज और अमित दोनों एकसाथ पढ़ेलिखे थे. अमित मुंबई में एक प्राइवेट कालेज में प्रोफैसर बन गए और राज एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल बन गए. राज को कार लेने के लिए कर्ज की जरूरत थी. उस ने बैंक से लोन लेने का निर्णय लिया. इस के लिए उसे बैंक की अनेक औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ीं, जिस में से एक था बैंक गारंटर. इस के लिए राज ने अमित का सहारा लिया. अमित इस के लिए तैयार हो गया. राज ने कार लेने के बाद कुछ वर्षों तक कार की मासिक किस्तें तो समय पर चुकाईं, फिर उस का ट्रांसफर हो गया. जिस के कारण कार की किस्तें अनियमित होने लगीं. चूंकि अमित ने गारंटी ली थी, इसलिए उसे भी बारबार बैंक के नोटिस मिलने लगे.
इसी तरह आर्यन ने अपनी साली की बैंक गारंटी होमलोन के लिए ली. संयोग से घर लेने के कुछ दिनों बाद ही उन की साली का निधन हो गया. वे नौकरीपेशा एकाकी महिला थीं. उन्होंने बैंक की केवल एक किस्त ही जमा की थी. सालभर लोन की किस्तें न भरने से बैंक ने घर की नीलामी के लिए आर्यन को नोटिस भेजा. आर्यन ने किसी तरह बैंक से समझौता कर इस समस्या का समाधान किया. इस वजह से उन को काफी परेशानी उठानी पड़ी. साथ ही, मानसिक और पारिवारिक टैंशन से भी उन का सामना होता रहा.
किसी को लोन दिलाने में सोचसमझ कर ही गारंटर बनना चाहिए. कोई भी बैंक केवल फाइनैंशियल डौक्यूमैंट्स के आधार पर लोन दे दे, यह जरूरी नहीं है. बैंक गारंटर लाने को भी कहता है. गारंटर उधार ली जाने वाली राशि की सुरक्षा की तरह होता है. वह भरोसा दिलाता है