भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे पर सरकार भले ही कुछ कहे, पर यह रिजर्व बैंक और सरकार के बीच आपसी टकराव का परिणाम है. संदेश यही जा रहा है कि सरकार स्वायत्त संस्थाओं पर हमले कर रही है.

कुछ समय से पटेल के इस्तीफे के कयास लगाए जा रहे थे. पटेल रिजर्व बैंक के कामकाज में सरकार के हस्तक्षेप से खुश नहीं थे. रिजर्व बैंक की अपनी एक अलग अहमियत है, बिना सरकार के निर्देशों के अलग भूमिका है पर सरकार अपने तरीके से बैंक को चलाना चाहती है.

पटेल के इस्तीफे की बड़ी वजह बैंकों का कर्ज लौटाने में डिफाल्टरों का दबाव माना जाता है. आरबीआई ने फरवरी में नए नियम जारी किए थे. इस के अनुसार कर्ज लौटाने में एक दिन की देरी होने पर बैंकों को कंपनी के खिलाफ रिजौल्यूशन प्रक्रिया शुरू करनी थी. बिजली और शुगर लौबी ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां उन्हें स्टे मिल गया था. पटेल दिवालिया काररवाई के पक्ष में थे जबकि सरकार ऐसा नहीं चाहती थी.

दूसरा बड़ा कारण रिजर्व फंड को ले कर है. सरकार चाहती है कि रिजर्व फंड का बड़ा हिस्सा सरकार को मिल जाए. इस के अलावा कच्चे तेल के बढ़ते दाम, रुपए की कीमत और स्टाक मार्केट में गिरावट जैसे मामलों में भी सरकार लगातार रिजर्व बैंक पर दबाव बना रही थी.

हालांकि उर्जित पटेल को एनडीए सरकार ही ले कर आई थी लेकिन उन का सरकार के साथ जल्दी ही तनाव शुरू हो गया. वह सितंबर 2016 में गवर्नर बनाए गए थे. नवंबर में प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा कर दी. गवर्नर ने नोटबंदी पर सरकार की हर बात मान ली थी. खबरें थीं कि पटेल पर्याप्त संख्या में नई करेंसी छापने के बाद नोटबंदी में पक्ष में थे. इस फैसले से अचानक 86 प्रतिशत करेंसी चलन से बाहर हो गई. उर्जित पटेल से पहले गवर्नर रहे रघुराम राजन ने नोटबंदी का विरोध किया था.

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