खाद्य पदार्थों में मिलावट करना कारोबारियों के लिए आज सामान्य बात हो चुकी है. यदि वे मिलावट नहीं करते हैं तो उन्हें लगता है कि जैसे कोई अनैतिक काम कर रहे हैं. शुद्धता का दावा करने वाली बड़ीबड़ी कंपनियों के खाद्य पदार्थों में भी मिलावट की शिकायतें आती रहती हैं.

दूध, घी, दाल, आटा, चावल आदि में मिलावट स्थानीय स्तर पर होती रहती है. प्रसिद्ध कंपनियों के उत्पाद के नाम में एक अक्षर बदल कर नकली सामान बाजार में बेधड़क बिक रहा है. सरकारी स्तर पर इसे रोकने की व्यवस्था है लेकिन जिन अधिकारियों को यह काम सौंपा गया है वे रिश्वत ले कर मामले को रफादफा कर देते हैं. जांच के लिए आए अधिकारियों का मिलावटखोर उन के पहुंचते ही स्वागतसत्कार शुरू कर देते हैं, उन्हें घूस दे कर अपना धंधा जारी रखते हैं. सरकारी मशीनरी इस मामले में कितनी सुस्त है, इस के असंख्य उदाहरण देखने को मिलते हैं. हाल ही में खाद्य उत्पाद विनियामक भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण ने खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों को उम्रकैद तथा 10 लाख रुपए के जुर्माने की सजा के प्रावधान की सिफारिश की है.

प्राधिकरण मानक कानून में संशोधन का प्रस्ताव 12 साल पहले 2006 में कर चुका था और तब उस के लिए कानून भी बनाया गया था, लेकिन मामला लटका रहा और 2011 में इस के नियमों को अधिसूचित किया गया. अब इस में कुछ और धाराएं जोड़ी गई हैं जिस के तहत घातक पदार्थ मिलने पर उम्रकैद की सजा या 10 लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. सिफारिश अच्छी है लेकिन इस का क्रियान्वयन कैसे होता है, यह ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. अब त्योहारी सीजन आने वाला है, मावा आदि में घातक पदार्थों की मिलावट की खबरें आएंगी. प्रशासन मिलावट कैसे रोकता है, यह समय बताएगा.

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