बौलीवुड में चंद समर्थ अभिनेताओं में मनोज बाजपेयी की गिनती होती है. ‘बैंडिट क्वीन’ से लेकर अब तक तमाम फिल्मों में उन्होंने अपने अभिनय का जलवा बिखेरा है. फिल्म‘सत्या’मे भीखू म्हात्रे और फिल्म ‘पिंजर’में राशिद का किरदार निभाकर उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार भी हासिल किया. इसके बावजूद उनके हिस्से भी असफल फिल्मों की लंबी सूची है. मगर जब उनसे उनकी असफल फिल्मों को लेकर सवाल किया जाता है, तो वह विफर पड़ते हैं. अपनी फिल्मों की विफलता का सारा ढीकरा पत्रकारों की समझ के साथ ही वितरकों आदि पर डालते हैं.

हाल ही में जब फिल्म ‘‘सत्यमेव जयते’के प्रमोशन के समय मनोज बाजपेयी से हमारी खास मुलाकात हुई. तब हमने उनसे एक्सक्लूसिव बात करते हुए पूछा कि सिनेमा के बदलाव के इस दौर में ‘बुधिया सिंह’और ‘मिसिंग’जैसी फिल्मों को थिएटर क्यों नहीं मिल पाते. ऐसी फिल्मों को दर्शक पसंद क्यों नहीं करता हैं?
हमारे इस सवाल को सुनकर मनोज बाजपेयी तैश में आ जाते हैं. फिर वह कहते हैं.- ‘‘किसने कहा? क्या किसी दर्शक ने आपसे कहा कि वह इस तरह की फिल्म नहीं देखना चाहता? पत्रकारों को यह समझना पडे़गा कि वह फिल्मों के पैसे पर नजर रखेंगे या उसकी गुणवत्ता पर. मैंने 25 वर्षों से निर्णय कर रखा है कि मैं गुणवत्ता वाले सिनेमा ही करूंगा. वही करता आ रहा हूं. अब आपको तय करना है कि आप किसके साथ हैं? मेरे लिए तीन दिन का बाक्स आफिस कलेक्शन यह तय नहीं करता कि फिल्म कैसी है? मेरे लिए ‘बुधिया सिंह’ बहुत बेहतरीन फिल्म है. मेरी परफार्मेंस बहुत अच्छी है. ‘मिसिंग’ मेरे करियर की बहुत कठिन परफार्मेंस वाली फिल्म है. मुझे इस फिल्म का निर्माण व अभिनय करने में मजा आया. यदि आप फिल्म की सफलता को उसकी कमाई से तौलना चाहते हैं, तो जाइए, सबसे पहले वितरकों और एक्जीबिटरों के साठगांठ को तोड़िए. उनसे निपटिए कि वह छोटी फिल्मों को सही ढंग से रिलीज करें. उसके बाद मुझसे बात करिए.’’
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