रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता:नरेन कुमार और डिंपल खरबंदा

लेखकः क्रिएटिव निर्देशक: सुभाष कपूर

निर्देशकः रवींद्र गौतम

कलाकारः हुमा कुरेशी, सोहम शाह, अमित सियाल,विनीत कुमार, दिव्येंदु भट्टाचार्य,प्रमोद पाठक,कानी कुश्रुती, अतुल तिवारी,पंकज झा, सुशील पांडे, अशिक हुसेन, अनुजा सठे, नेहा चैहाण, दानिश इकबाल,कुमार सौरभ, निर्मलकांत चैधरी व अन्य.

अवधिः एक घंटे से 32 मिनट के दस एपीसोड,कुल अवधि लगभग छह घंटे 45 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: सोनी लिव

राजनीति हर इंसान के लिए नीरस विषय हो सकता है, मगर राजनीतिक पत्रकारिता करते करते फिल्मकार बन बैठे सुभाश कपूर के लिए तो राजनीति रोचक विषय है और उन्हें राजनीति की इस कदर समझ है कि वह उसे रोचक अंदाज में आम लोगों के लिए पेश करने में भी माहिर हैं. बतौर फिल्मकार सुभाष कपूर ने ‘से सलाम इंडिया’,‘फंस गए रे ओबामा’,‘जौली एलएलबी’, ‘जौली एलएलबी 2’ और ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ जैसी सफल फिल्मों के बाद गत वर्ष बिहार की राजनीति खासकर लालू यादव का षासन काल,चारा घोटाला,राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री बनने आदि से प्रेरित होकर दस भाग की वेब सीरीज ‘‘महारानी’’ लेकर आए थे.सोनी लिव पर स्ट्रीम हुई इस वेब सीरीज को काफी पसंद किया गया था.अब वह उसी का दूसरा सीजन ‘‘महारानी 2’’ लेकर आए हैं. मगर पहला सीजन जितना जमीनी सतह से जुड़ा हुआ था,दूसरा सीजन उतना जमीनी सतह से जुड़ा नही है,बल्कि इस बार फिल्मी रंग में ज्यादा रंगा हुआ है.वैसे पहले सीजन के निर्देषन का भार करण षर्मा ने उठाया था.जबकि इस बार निर्देषन का भार रवींद्र गौतम के कंधे पर रहा.‘कसौटी जिंदगी के’ ,‘बड़े अच्छे लगते हैं’ सहित दर्जन भर से अधिक सफलतम सीरियलों का निर्देषन करने के अलावा 2014 में असफल फिल्म ‘‘इक्कीस तोपों की सलामी’’का निर्देषन कर चुके हैं.अब उन्होने ‘‘महारानी 2’’का निर्देशन किया है. मगर ‘सीजन 2’ का अंत जिस मुकाम पर हुआ है,उसे संयोग कहे या कुछ और,पर चंद दिनों पहले वही सब कुछ बिहार की राजनीति में घटित हुआ है.पहला सीजन चारा घोटाला था और दूसरे सीजन में चारा घोटाला करने वाले सत्ता केभागीदार बनते हैं.यही बिहार की राजनीति में हकीकत में हुआ है.

कहानीः

पहले सीजन में भ्रष्टाचार से घिरे राज्य के मुख्यमंत्री भीमा भारती (सोहम शाह) ने गोली लगने से घायल होने पर ने गांव- गोबर-गृहस्थी संभालने वाली दो बेटो व एक बेटी की मां, अपनी पत्नी रानी भारती (हुमा कुरैशी) को राजनीतिक वारिस बनाया था.मुख्यमंत्री बनते ही कावेरी(कनु श्रुति) की सलाह बिहार को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने की मुहीम के तहत अपने पति भीमा भारती व कुछ अन्य मंत्रियों को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने के अलावा राज्यपाल गोवर्धन (अतुल तिवारी) की भी छुट्टी करवा देती हैं.
अब दूसरे सीजन की षुरूआत एक झटके के साथ होती है.तीन सदस्यों की जांच कमेटी रानी भारती से पहला सवाल करती है- ‘क्या आप अपने पति व पूर्व मुख्यमंत्री भीम सिंह भारती की हत्या की साजिश में शामिल हैं?’उसके बाद कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पर पहला सीजन खत्म हुआ था.रानी भारती एक तरफ अपनी सत्ता को बरकरार रखने के साथ ही भ्रष्ट नेता, नौकरशाह व पुलिस अफसरों की नकेल कसने में लगी हुई है, तो वहीं उनके पति भीमा भारती व अन्य मंत्री प्रेम बाबू जेल के अंदर से ही अपनी सरकार चलाते हुए बलात्कार, गुंडागर्दी , असामाजिक तत्वो को उकसाते हुए रानी भारती की कुर्सी हिलाने में लगी हुई हैं.इतना ही नही रानी भारती के तमाम प्रयासों के बावजूद भीमा भारती को अदालत से जमानत मिल जाती है.जेल से बाहर आने पर भी रानी अपने पति को सत्ता सौंपने से इंकार कर देती है. उसके बाद एक तरफ भीमा भारती तो दूसरी तरफ 17 साल से बिहार का मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नवीन बाबू (अमित सियाल), रानी को कमजोर करने के लिए जाल बिछाना षुरू करते हैं.राज्य में कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिशों के साथ ही भीमा भारती विधायक दल की बैठक में सभी विधायको को रानी भारती के खिलाफ कर देते हैं. अब रानी भारती के सामने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने का रास्ता ही रहता है.पर एक कुटिल राजनीतिज्ञ की तरह रानी भारती राज्यपाल से मिलकर फ्लोर टेस्ट की अनुमति मांगती हैं. और सदन के अंदर वर्मा कमीषन की पिछड़ी जातियों को आरक्षण की रिपोर्ट को लागू करने का प्रसताव रख देती है,चुनाव नजदीक होने के चलते पक्ष व विपक्ष का कोई भी विधायक विरोध नही कर पाता. अब विधानसभा चुनाव में भीमा भारती अपनी नई राजनीतिक पार्टी बना कर मैदान में उतरते हैं.तो वहीं उनकी जिंदगी में जेल के दिनों से कांति सिंह आ चुकी हंै.इसी के साथ भीमा भारती और नवीन बाबू झारखंड राज्य देने के लिए समझौता करने जैसे रोचक प्रसंगों के साथ कहानी नौ एपीसोड तक पहुंचती है. इस बार चुनाव में भीमा भारती से रानी भारती पांच सौ वोटों से हार जाती हैं.उनके दल को 85,नवीन बाबू की पार्टी को 105 और भीमा भारती की पार्टी को पचपन सीटे मिलती हैं.जोड़ तोड़ का खेल षुरू होता है.नौवे एपीसोड में भीमा भारती की होली की पार्टी में तमाम नेता जुड़ते हैं. और नाटकीय अंदाज में भीमा भारती की मौत हो जाती है.दसवें एपीसोड में जांच कमीशन जांच करता हैै कि भीमा भारती की हत्या किसने की?इस बीच पुनः गोवर्धन दास राज्यपाल बनकर आ जाते हैं, जो कि रिश्ते में नवीन बाबू के मौसिया हैं. वह नवीन बाबू को मुख्यमंत्री की शपथ दिला देते हैं. रानी भारती को भीमा भारती की हत्या की साजिष रचने के आरोप में नवीन बाबू जेल भिजवा देते हैं.पर सीरीज का अंत जिस अंदाज में हुआ है, उससे इसका तीसरा सीजन आना तय है.

लेखन व निर्देशनः

सत्त में काबिज रहने व पाॅवर की भूख के चलते राजनीतिक दांव पेंच, दंगे कराने ,बलात्कार, हत्याएं, पिछड़ा जाति आरक्षण, उच्च वर्ग द्वारा पिछड़ा वर्ग क आरक्षण के खिलाफ विरोध सहित बहुत कुछ है.मगर इस बार बहुत कुछ फिल्मी कर दिया है.पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए जाने के बाद एक सरकारी स्कूल में मिड डे मील बनाने के लिए पिछड़ा वर्ग की महिला की नियुक्ति होती है,तब एक लड़का उसके हाथ का बना खाने से सभी लड़कों को रोकता है.यह पूरा दृश्य अति फिल्मी व हास्यप्रद ही है.दृश्य अपना प्रभाव नही पैदा कर पाता.राजनीतिक पत्रकारिता करते हुए वीपी सिंह के शासन काल में सुभाष कश्यप ने मंडल कमंडल के चलते युवकों द्वारा आत्मदाह की घटनाएं देखी होंगी, जिसे उन्होने अपनी इस सीरीज मंे भी रखा है, मगर इस दृश्य को भी फिल्मी अंदाज में बहुत ही बचकाने तरीके से स्कूल के बच्चे पर फिल्माया गया है.इसतना ही नही रवींद्र गौतम मूलतः सीरियल निर्देशित करते रहे हैं, तो कुछ एपीसोड के कुछ घटनाक्रम सीरियल की तरह खींचा है,जिन्हे एडीटिंग टेबल पर कसा जा सकता था,पर ऐसा नही हुआ, जो कि सीरीज को नीरस बनाता है.

वैसे राजनीति और राजनेताओं के रंग एपिसोड -दर-एपिसोड बदलते हैं.कुछ घटनाक्रम तथा संवाद दर्षकों को असली राजनीति की भी याद दिलाते हैं. ऐसे में जिनकी दिलचस्पी राजनीतिक कहानियों में है,जिन्हे असली राजनीतिक उठा- पटक पसंद है,उन्हें इसे देखने में ज्यादा आनंद आएगा.इस बार लेखक ने राजनीतिक धुरंधरों के रूप में नवीन बाबू (अमित सियाल),गौरी शंकर(विनीत कुमार) और गोवर्धन दास (अतुल तिवारी) के किरदारों रोचक ढंग से गढ़ा है. फिल्मी रंग दकर कुछ दृष्य व किरदार काफी रोचक बना दिए गए हैं.जिसके चलते पिछले सीजन में नीरसता का जो आरोप लगा था,वह इस बार नहीं लगा. मगर इस बार कहानी जमीनी हकीकत से काफी दूर है.रानी भारती जिस तरह से राजनीतिक कुटिल चालें चलती हैं,वह थोड़ा सा अखरता है.क्योंकि एक गांव की औरत में अचानक यह बदलाव कैसे आया, इस पर कुछ खास रोशनी नहीं डाली गयी है.

सीरीज के कुछ दृश्यों को लार्जर देन लाइफ पेश कर इसे और बेहतर बनाया जा सकता था, मगर लेखक व निर्देशक दोनों चूक गए हैं. सीजन दो में पिछली बार से बेहतर संगीत रचने के लिए संगीतकार रोहित शर्मा व गीतकार डाॅं. सागर की तारीफ की जानी चाहिए. होली गीत तो काफी अच्छा बना है. इसके अलावा भी इस सीरीज का हर गीत बिहार नजर आता है.

अभिनयः

पहले सीजन की बनिस्बत इस सीजन में रानी भारती के किरदार में हुमा कुरेशी का अभिनय ज्यादा प्रभावषाली है. वह हर दृश्य में काफी सहज नजर आती हैं. मगर हर बार बिहारी लहजे को संभाल नहीं पाती हैं. मुख्यमंत्री रानी भारती की सहायक के रूप में कनी कुश्रुति भी इस सीजन में निखर कर आई हैं. मगर कई दृष्यों में उनका शुद्ध हिंदी उच्चारण के साथ बात करना अखरता है. इतना ही नही कई दृश्यों में वह ब्यूरोके्रट्स की बजाय राजनतिज्ञ ही नजर आती हैं.नवीन बाबू के किरदार में अमित सियाल दर्शकों के दिलों में पहुॅच जाते हैं. सोहम शाह,विनीत कुमार और अतुल तिवारी ने अपनी भूमिकाओं को अच्छे से निभाया है.दिवाकर झा के किरदार में पंकज झा की प्रतिभा को जाया किया गया है.

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