रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः आलिया सिद्दिकी

निर्देशक: साई कबीर

कलाकारः संजय मिश्रा,नवाजुद्दीन सिद्दिकी,तिग्मांशु धुलिया,सादिया सिद्दिकी, मुकेश भट्ट व अन्य.

अवधिः एक घंटा तीस मिनट

पिछले कुछ समय से ‘गाय’ को लेकर कई तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं.गाय की तस्करी व गाय के मांस को बेचने के आरोप में मुस्लिम युवक या कई मुसलमानों की हिंदू वादी भीड़ द्वारा पीटने की घटनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं.कुछ  वर्ष पहले सिवनी,मध्यप्रदेष में ‘गौ मांस’ रखने के शक में एक मुस्लिम महिला व दो पुरूषों की पेड़ में बांधकर पिटायी की गयी थी.यहां तक कि दुधारू पशुओं के व्यापारियों को भी ‘गोमांस’व्यापारी के रूप मे चिन्हित कर उनके साथ हिंसा की वारदातें आए दिन होती रहती है.इन्ही घटनाक्रमों पर कुछ वर्ष पहले फिल्मकार सूरज कुमार ने एक डाक्यमेंट्ी फिल्म ‘होली काउ’ बनायी थी.अब 2014 में कंगना रानौट को लेकर ‘‘रिवाल्वर रानी’’ जैसी फिल्म का लेखन व निर्देषन कर चुके फिल्मकार साई कबीर ब्लैक कौमेडी वाली फीचर फिल्म ‘‘होली काउ’’ लेकर आए हैं.यह नाम अंग्रेजी में है.जिसका षाब्दिक अर्थ हुआ ‘पवित्र गाय.’फिल्मकार सई कबीर ने एक संवेदनशील और सामाजिक रूप से अति चिंताजनक विषय को अपनी इस फिल्म में उठाया है,मगर फिल्मकार इस फिल्म के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं,यह बात साफ नही हो पाती.वह कथानक के स्तर पर काफी भ्रमित नजर आते हैं.

कहानीः

कवि मिजाज के मुस्लिम इंसान सलीम अंसारी (संजय मिश्रा )  की अपनी पत्नी साफिया (सादिया सिद्दिकी )  और छोटे बेटे शाहरुख (धीरज कुमावत) के साथ बड़नगर में रहते हैं.सलीम रंग बिरंगे कपड़े पहनने वाले और बात बात में हींदी फिल्मों का उदाहरण देने वाले मस्तमौला इंसान है.स्थानीय नेता भी हैं.उन्होने रूखसार नामक गाय पाल रखी है,जिसे एक दिन अचानक रात में कोई खूॅंटा सहित चुरा ले जाता है.तब वह अपने दोस्त राम बाबू गुप्ता उर्फ रामू (मुकेश भट्ट) से मदद मांगने जाते हैं.राम बाबू के पिता कवि थे और वह भी कविताएं या गजल गुनगुनाते रहते हैं.अपने दोस्त की हर तरह से मदद करने को तैयार रहते हैं.सलीम की अगले दिन गाय के साथ गांव की पंचायत में पेशी है.उधर सलीम मुस्लिम है और गाय के गायब होने के क्या क्या अर्थ लोग लगा सकते हैं,यह समझा जा सकता है.अब सलीम को अपनी मौत का डर सताने लगता है.मरने से बचने व गाय की तलाष मंे वह अपने दोस्त रामू के साथ पूरी रात भटकते है.तरह तरह के जतन करते हैं.गाय की तलाष में सलीम व रामू हरी सिंह के खुफिया अड्डे पर पहुॅंच जाते हैं,जहां गायों को कहीं रात के अंधेरे में भेजने के लिए ट्क में लादा जा रहा है.पर वह अपने गुंडो से सलीम को धमका कर भगा देते हैं.फिर सलीम स्थानीय मुस्लिम नेता शमशुद्दीन (तिग्मांशु धुलिया )  से भी मदद मांगने जाते हैं.षमुसद्दीन का संबंध पाकिस्तान से है.उन्होंने अपने बंगले पर एक मौलवी को बैठा रखा है,जो कि बच्चों और युवकों का अल्ल्हा के लिए मर मिटकर जन्नत पाने की शिक्षा देता रहता है.षमषुद्दीन को चार लड़के तुरंत पाकिस्तान भेजना है,जिन्हे कराची में प्रशिक्षण देकर आतंकवादी बनाया जाना और फिर वह चारो युवक चार माह बाद भारत में आत्मघाती आतंकवादी हमले का हिस्सा बनेंगें.शमशुद्दीन के पास तीन युवक हैं,पर एक की कमी है,तो उन्हे मौका मिल जाता है.वह सलीम को समझाते है कि कल पेशी में उसकी मौत तय है.कोई कुछ नहीं कर सकता.पर वह उसे नेपाल के रास्ते पाकिस्तान भेज देंगें,जहां चार माह की ट्रेनिंग के बाद आत्मघाती आतंकवादी के रूप मंे भारत वापस आएगा.उसके बाद उसे जन्नत नसीब होगी.इस तरह उसे चार माह की जिंदगी भी नसीब हो जाएगी.पर सलीम मना कर देता है.वह एक गाय चुराकर उसके शरीर को सफेद रंग से रंग कर सुबह पंचायत के सामने पहुॅच जाता है.मामला रफा दफा हो जाता है, तभी शमशुद्दिन वहां पहुॅचकर कहता है कि सलीम तो आतंकवादी है, यहां छिपा हुआ था. उनके पास इस बात के सबूत के रूप में कुछ फोटो हैं. और फिर खुद ही सलीम को गोली मार देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म की पटकथा काफी गड़बड़ व कमजोर है.फिल्म काफी धीमी गति से चलती है.कहानी में बेवजह सलीम की मदद करने के नाम पर उसे गुमराह करने वाले शमशुद्द्दीन का प्रकरण जबरन ठॅूंसा हुआ लगता है. क्या फिल्मकार का इस प्रकरण को इस कहानी में जबरन ठॅूंसने के पीछे मूल मकसद आतंकवाद से मुसलमानों के जुड़ाव को रेखांकित करना है? इसके अलावा फिल्म में पुरूष सत्ता की बात की गयी है.फिल्म देखकर यही बात उभरकर आती है कि मुस्लिम समाज में आज भी औरत को पुरूष अपनी जूती से इतर नही समझता है. क्या यह वाकई सच है?इसके अलावा भी फिल्म में हरी सहित कुछ किरदार व उनकी उप कहानियां बेवजह ठूॅंस कर फिल्म को नीरस बना दिया गया है. इतना ही नही सलीम अंसारी की दूसरे दिन पंचायत में गाय के साथ  पेशी क्यों होनी है, इस पर भी फिल्म कुछ नहीं कहती. फिल्म के संवाद भी अति साधारण हैं. सिर्फ लेख कही नही बल्कि निर्देशक के तौर पर भी साई कबीर बुरी तरह से मात खा गए हैं.

जिस समाज में गाय को लेकर मुस्लिमों पर शक किया जाता है, उसी समाज में सलीम जैसा गाय से अत्यधिक प्यार करने वाला कोई सलीम भी हो सकता है? यह बात लोगों को सोचनी पड़ेगी. फिल्म में एक दृश्य है, जिसमें चुराकर लायी गयी गाय चारा नही खा रही है.तो उसके लिए सलीम मियां रात में तीन सौ रूप किलो बिकने वला कलाकंद हजार रूपए में खरीदकर लाते हैं. फिल्मकार ने अपरोक्ष रूप से यह सवाल उठाया है कि  लोग यह क्यो नही सोचते कि एक हिंदू भी गाय की तस्करी का हिस्सा हो सकते हैं.

फिल्मकार इस फिल्म के माध्यम से क्या कहना चाहते हैं,इसे लेकर वह पूरी तरह से भ्रमित नजर आते हैं.अथवा किसी डर की वजह से वह अपनी बात को स्पष्ट रूप से कह नही पाए.पर यदि वह इतने डर रहे थे तो उन्हे फिल्म ‘होली काउ’ बनानी ही नही चाहिए थी. फिल्म में दिखाया गया है कि सलीम को हिंदुओं से डर है,मगर सलीम की हत्या भी मुस्लिम नेता षमष्ुाद्दीन ही करते हैं.तो वहीं सलीम का हिंदू दोस्त उसकी मदद के लिए अपनी पूरी रात खराब कर देता है.सलीम का हिंदू दोस्त राम गुप्ता उसकी जिंदगी बचाने के लिए महामृत्युजंय मंत्र का जाप करने की भी बात करता है.तो क्या फिल्मकार सई कबीर कहना चाहते है कि मुस्लिमों के असली दुश्मन हिंदू नहीं बल्कि मुसलमान ही हैं?वैसे लेखक व निर्देशक सई कबीर ने पूरी फिल्म में कहीं भी सिर्फ हिंदू या सिर्फ मुसलमान को अच्छा नहीं दिखाया है.

फिल्म को यथार्थ लोकेशन पर फिल्माया गया है.

फिल्म में गाने बेवजह और गलत जगहों पर रखे गए हैं.क्लायमेक्स काफी स्तरहीन है.

अभिनयः

सलीम के किरदार में संजय मिश्रा का अभिनय षानदार है.वह अकेले अपने दम पर पूरी फिल्म को ेलेकर चलते हैं.राम गुप्ता के किरदार में मुकेश भट्ट का अभिनय भी जानदार है.सलीम की पत्नी साफिया के छोटे किरदार में सादिया सिद्दकी ने फिर साबित किया है कि वह छोटे से किरदार में भी अपनी अभिनय की छाप छोड़ने में माहिर है.शमशुद्दीन के किरदार में मशहूर निर्देशक तिग्मांषु धुलिया ने बता दिया कि वह उन्हे सिर्फ दूसरे कलाकारों से अच्छा काम निकलवाना ही नहीं आता,बल्कि वह स्वयं अच्छे अभिनेता हैं.पुलिस इंस्पेक्टर के दो तीन मिनट के जबरन ठॅॅंूसे गए किरदार में नवाजुद्दीन है,पर उनका अभिनय कहीं से प्रभावित नही करता.शायद वह इस फिल्म से महज इसलिए जुड़े,क्योंकि फिल्म की निर्माता उनकी पत्नी आलिया सिद्दिकी हैं.

अंत में: जिन्हे कहानी भूलकर सिर्फ कलाकारों की बेहतरीन अदाकारी देखनी है,वह इसे देख सकते हैं.

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