भारत में संस्कृति व साहित्य का वैभवशाली इतिहास है. हमारे यहां फिल्मों के लिए कहानियों या विषयों की कोई कमी नही है. इसके बावजूद भेड़चाल का शिकार बौलीवुड एक ही समय में एक ही विषय पर एक साथ कई फिल्में बनाते हुए आपस में ही प्रतिस्पर्धा करता रहता है. इसी के चलते इन दिनों एक तरफ करण जौहर सरोगसी पर फिल्म बना रहे हैं ,तो दूसरी तरफ दिनों वीजन भी सरोगसी पर ही फिल्म बना रहे हैं.

2012 तक बनी सरोगसी पर फिल्में

सूत्रों के अनुसार जब सरोगसी पद्धति से माता पिता बनना बहुत ज्यादा चलन में नहीं था,तब भी सरोगसी पर बौलीवुड में इक्का दुक्का फिल्में बनती रही हैं. सबसे पहले 1983 में लेख टंडन ने विक्टर बनर्जी, शर्मिला टैगोर व शबाना आजमी को लेकर फिल्म ‘‘दूसरी दुल्हन’’ बनायी थी. उसके बाद 2001 में अब्बास मस्तान ने सुष्मिता मुखर्जी, सलमान खान और प्रीति जिंटा को लेकर फिल्म ‘‘चोरी चोरी चुपके चुपके’’ बनायी थी. फिर 2002 में मेघना गुलजार ने तब्बू, सुष्मिता सेन, संजय सूरी और पलाश सेन को लेकर फिल्म ‘‘फिलहाल’’ बनायी थी. इन तीनो फिल्मों में से ‘दूसरी दुल्हन’ में शबाना आजमी और ‘चोरी चोरी चुपके चुपके’ में प्रीति जिंटा ने सरोगसी मदर का किरदार निभाया था,जो कि असलियत में वेश्या होती हैं. यानी कि सभ्य परिवार की औरत को ‘सरोगेटेड मदर’ के रूप में यह फिल्मकार नहीं दिखा पाए थे. इसके बाद 2010 में ओनीर ने ‘आई एम आफिया’ तथा 2012 में शुजीत सरकार ने ‘विक्की डोनर’ बनायी थी. ‘आई एम आफिया और ‘विक्की डोनर’ में सरोगसी के साथ साथ स्पर्म डोनर का भी मसला रहा. जबकि 2011 में समृद्धि पोरे ने मराठी भाषा में सरोगसी पर फिल्म ‘‘मला आई व्हायचे’’ बनाई थी, जिसमें वेश्या की बजाय मजबूरी में एक गरीब महिला के सरोगेट मदर बनने की कहानी थी. मगर यह सभी फिल्में सरकार द्वारा सरोगसी को जायज ठहराने वाले 2016 में बनाए गए कानून से पहले बनी थीं.

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