बिहार के ग्रामीण इलाके से आकर मुंबई के बौलीवुड में अपनी पताका फहराने के बीच पंकज त्रिपाठी ने लंबा संघर्ष किया है. पर अब वह काफी खुश हैं. लोग उनकी प्रतिभा का लोहा मानने लगे हैं. कुछ समय पहले उन्हे फिल्म ‘‘न्यूटन’’ के लिए ‘स्पेशल मेंशन राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. इन दिनों वह ‘स्त्री’ सहित कई फिल्मों को लेकर उत्साहित हैं.

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश.

राष्ट्रीय पुरस्कार की वजह से करियर व जिंदगी में क्या बदलाव आए?

करियर में काफी बदलाव आया है. फिल्मकारों की सोच भी मेरे प्रति बदली है. मगर इसमें सिर्फ राष्ट्रीय पुरस्कार का ही योगदान नहीं है. इसी के साथ पिछले वर्ष बाक्स आफिस पर मेरी फिल्मों ‘बरेली की बर्फी’, ‘न्यूटन’, ‘फुकरे रिटर्न’ को काफी पसंद किया गया. मुझे पसंद करने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ी है. तो इन दोनों का योगदान है. यह कमर्शियल नगरी है. जब फिल्मकारों को अहसास होता है कि इस लड़के को दर्शक पसंद कर रहे हैं, तो वह उसे अपनी फिल्म से जोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. फिर उस कलाकार को अच्छा मेहनताना भी मिलता है, उसकी शर्ते भी मान ली जाती हैं. मगर जैसे ही लगेगा कि अब इसका बाजार नहीं है, तो फिर वही ‘तुम कौन और हम कौन’ वाला मसला आ जाएगा. अब मुझे अच्छे किरदार मिल रहे हैं. अब लोग मेरी तारीखों के अनुसार एडजस्ट करने को तैयार हो जाते हैं.

आपके अनुसार आपको किन फिल्मों से पहचान मिली?

‘न्यूटन’. ‘गुड़गांव’ बाक्स आफिस पर नहीं चली, मगर इसे संजीदा फिल्म देखने के शौकीन दर्शकों ने काफी पसंद किया. इसके अलावा एक फिल्म थी-‘अंग्रेजी में कहते हैं’ इसे कुछ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार मिले. लोगों ने काफी पसंद किया. इसमें मेरा किरदार काफी छोटा था, पर लोगों की नजर में आया. ‘अंग्रेजी में कहते हैं’ में संजय मिश्रा नायक बनकर आ रहे थे, इसलिए मैंने छोटा सा किरदार भी कर लिया. उन्होंने हमारी फिल्म ‘न्यूटन’ में एक छोटा सा किरदार निभाया था. इसे सही ढंग से प्रसारित नहीं किया गया.

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