हिंदी सिनेमा के दिग्गज कलाकार विनोद खन्ना का आज जन्मदिन है. पेशावर में 6 अक्टूबर 1946 को जन्मे विनोद खन्ना का परिवार अगले ही साल 1947 भारत विभाजन के बाद मुंबई आ गया था. उनके माता पिता का नाम कमला और किशनचंद खन्ना था. विनोद खन्ना एक अभिनेता होने के साथ साथ राजनीतिज्ञ भी थे. विनोद की स्कूलिंग नासिक के एक बोर्डिंग स्कूल में हुई, वहीं उन्होंने सिद्धेहम कौलेज से कौमर्स में ग्रेजुएशन किया.

उनके फिल्मी सफर की शुरुआत साल 1968 में हुई. इस साल उनकी पहली फिल्म ‘मन का मीत’ आई. इस फिल्म में उन्होंने हीरो नहीं बल्कि विलेन की भूमिका निभाई थी. इस दौरान उन्होंने बतौर खलनायक कई फिल्मों में काम किया. इन रोल्स में विनोद खन्ना दर्शकों द्वारा काफी पसंद भी किए गए. इसके बाद साल 1971 में उनकी पहली सोलो फिल्म आई. इस फिल्म में वह हीरो बने हुए नजर आए थे. फिल्म का नाम था, ‘हम तुम’ और ‘वो’. कुछ सालों के बाद विनोद का मन शांति और धर्म की तरफ जाने लगा.

अगर बौलीवुड के हैंडसम हंक यानी विनोद खन्ना की बात करें तो वह एक ऐसे सितारे थे, जिन्‍हें कभी सुपरस्टार नहीं पुकारा गया, लेकिन उनके फिल्मों में आने के बाद कोई भी सुपरस्टार ऐसा नहीं रहा, जिसकी कामयाबी में विनोद खन्ना का योगदान न रहा हो. ‘मुकद्दर का सिकंदर’ को अमिताभ बच्चन की फिल्म के रूप में सभी याद करते हैं, लेकिन क्या आप ‘वकील साहब’ और उनकी दोस्ती के बिना ‘सिकंदर’ के दर्शकों के मन की गहराइयों में उतर जाने की कल्पना कर सकते हैं. ऐसा ही अंदाज सुपरहिट फिल्‍म ‘अमर अकबर एंथनी’ के अमर भी थे.

इस दौरान उन्होंने फिल्मों से सन्यास भी लिया. विनोद इस बीच आचार्य रजनीश यानी ओशो के अनुयायी बने. इसके बाद एक बार फिर से उन्होंने फिल्मों में कमबैक किया. उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1997 में हुई. साल 1997 और 1999 में वह दो बार पंजाब के गुरदासपुर से भाजपा सांसद चुने गए. साल 2002 में वह संस्कृति और पर्यटन के केंद्रीय मंत्री भी रह चुके थे. इस दौरान मात्र 6 महीनों में ही उन्हे विशेष भार सौंपा गया. विनोद खन्ना को अब विदेश मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया. साल 2017 में 70 साल की आयु में लंबे वक्त से बीमार रहने के चलते विनोद खन्ना का निधन हो गया.

विनोद खन्ना की मौत गौल ब्लेडर नामक बीमारी होने की वजह से हो गई. बौलीवुड़ में विनोद खन्ना ने कई फिल्में की हैं, जिसमें से दयावान फिल्म बहुत ही लोकप्रिय रही है. दयावान फिल्म में विनोद खन्ना एक विलेन या हीरो कह सकते हैं दोनों की भूमिका में थे. किसी के लिये वो दयावान थे तो वहीं पुलिस विभाग उन्हें मुजरिम कहा करता था. इस फिल्म के बाद से विनोद खन्ना को दयावान के नाम से जाना जाने लगा.

फिल्‍मों में एक विलेन के रूप में करियर शुरू करने वाले विनोद खन्ना ने अपने करियर में लगभग 150 से ज्‍यादा फिल्‍में की. 1968 में फिल्‍म ‘मन का मीत’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले विनोद खन्ना जब करियर में सुपरहिट हो चुके थे, तभी इस सितारे ने अचानक अध्‍यात्‍म का रुख कर लिया.

साल 2002 में दिये अपने एक इंटरव्यू में विनोद खन्ना ने बताया कि नाम और पैसा कमाने के बावजूद उन्हें जिंदगी में कुछ खालीपन सा लग रहा था. इसे पूरा करने के लिए वह सन्यासी बने और पूरे चार साल तक अमेरिका में आध्यात्मिक गुरु ओशो के आश्रम में बिताए.

आश्रम में विनोद खन्ना हर वो काम करते थे जो शायद एक सेलिब्रिटी रहते उन्होंने कभी करने की सोची भी न होगी. वो सुपरस्टार जो शायद फिल्मों में पहने अपने कपड़े को दोबारा शरीर से लगाता भी न होगा, वह आश्रम जाते ही किसी के लिए मैनेक्वीन तक बन गया था. इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि ओशो से उनकी कद काठी इतनी मिलती जुलती थी कि गुरु से पहले उन्हें उनके कपड़े पहनाए जाते थे.

एक सुपरस्टार के लिए वाकई बड़ी बात थी. कुछ दिन पहले जो शख्स महंगी कार, कीमती कपड़़े और आलीशान घर में रहता था, कुछ ही दिनों में वह टौयलेट साफ कर रहा था, माली का काम कर रहा था. यहां तक कि बर्तन भी साफ करता था.

विनोद खन्ना करियर के शीर्ष पर पहुंचकर रिटायरमेंट लेने वाले पहले बौलीवुड एक्टर थे. पहले डाकू के रोल से लोगों को डराया, फिर पुलिसवाला बनकर उनका दिल जीता भी. लव मेकिंग सीन दिया तो इंडस्ट्री में नया ट्रेंड सेट हो गया पर जब सब सन्यासी बनने का फैसला लिया तो किसी को यकीन नहीं हुआ.

1980 में विनोद खन्ना का मन फिर बदला. वह अपने परिवार के पास वापस लौटना चाहते थे. हालांकि ओशो की ओर से उन्हें औफर भी दिया गया कि वह चाहें तो पुणे के आश्रम की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं, लेकिन विनोद खन्ना ने इंकार कर दिया.

विनोद खन्ना कि एक तस्वीर इंटरनेट पर बहुत वायरल हुई थी जिसमे विनोद काफी कमजोर दिखाई दे रहें थे. उनके साथ उनका बेटा व पत्नी भी थे, आखिरी के दिनों में विनोद खन्ना कुछ ऐसे हो गए थे.

मुझे है सेक्स की जरूरत

“जी हां मैं एक कुंवारा हूं और जब बात औरतों की होती है तो मेरा रवैया किसी संत की तरह नहीं होता है. मुझे भी सेक्स की जरुरत होती है बाकी लोगो की तरह. औरतों के बिना हमारा वजूद नहीं है. सेक्स के बिना हम यहां नहीं रहते तो लोगों को इस बात पर आपत्ति क्यों होती है जब मैं औरतों के साथ होता हूं?” यह बात विनोद खन्ना ने 1992 में एक इंटरव्यू में कही थी. यह उस वक़्त की बात थी जब विनोद खन्ना भगवान रजनीश के आगोश से बाहर निकल चुके थे और अपना खोया हुआ स्टारडम पाने की कोशिश कर रहे थे.

बौलीवुड में खड़ा किया कौम्पिटीशन

विनोद खन्ना पूरी तरह से सुपरस्टार मैटेरियल थे और उन्होंने अपने समकालीन अभिनेताओं की रातों की नींद हराम कर दी थी. अमिताभ बच्चन के स्टारडम को सबसे ज्यादा किसी से नुकसान हुआ था तो वो विनोद खन्ना ही थे. लेकिन विनोद ने अपने करियर के शिखर पर पहुंच कर इन सभी का त्याग कर दिया था. उन्होंने यह सब कुछ अपने करियर के एक शानदार फेज में पहुंच कर क्यों ठुकरा दिया था इसकी वजह की जानकारी कम है लेकिन अगर आप उस ज़माने के पीरीओडिकल और फिल्म मैगज़ीन को पढ़ें तो इसके बारे में कुछ चीज़ें निकल कर सामने आती है.

ये भी आश्चर्य की बात है कि अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर ऋषि कपूर के बारे में आपको किताबें मिल जाएंगी लेकिन अगर आपको विनोद खन्ना के बारे में कुछ जानना है तो शायद आपके सामने एक दीवार खड़ी मिलेगी. जो इंटरव्यू उन्होंने निजी चैनल को दिया था. उसको देखने के बाद उनके जीवन के कई पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है. ये इंटरव्यू तब लिया गया था जब उन्होंने कविता दफ्तरी से दूसरी शादी रचाई थी.

दरियादिल इंसान थे विनोद खन्ना

एफटीआईआईटी से पढ़ी निर्देशिका अरुणा राजे का विनोद खन्ना से पुराना सम्बन्ध था और उनके निर्देशन में विनोद खन्ना ने दो फिल्में की थीं. अरुणा राजे ने अपनी किताब फ़्रीडम में विनोद के कुछ पहलुओं पर रोशनी डाली है जिसकी जानकारी कम लोगों को है. अपनी किताब में उन्होंने एक क़िस्से का बखान किया है जो फिल्म रिहाई की शूटिंग के दौरान हुआ था. फिल्म ख़त्म होते होते फिल्म का बजट भी लगभग ख़त्म हो चुका था. अरुणा ने अपनी फिल्म के लिए ओवरसीज के कुछ डिस्ट्रीब्यूटर्स से उधार लेने के अलावा एनएफडीसी से दस लाख रूपये भी लिए थे. नौबत यहां तक आ पहुंची कि फिल्म के पहले प्रिंट को निकलने के लिए पैसे बिल्कुल भी नहीं थे

फिल्म की डबिंग के दौरान जब विनोद को यह पता चला की माजरा क्या है तो बिना कुछ कहे वो अपनी गाड़ी के अंदर गए और कुछ समय के बाद अरुणा के हाथों में तीस हज़ार रुपये रख दिए और कहा कि जब उनके पास पैसे आ जाएं तब दे देना. उसी फिल्म की शूटिंग के दौरान अरुणा ने एक और किस्सा अपनी किताब में साझा किया है. जब रिहाई की शूटिंग अहमदाबाद के पास वडनगर में चल रही थी तब बजट के अभाव में फिल्म की पूरी यूनिट को काफी तंगी में काम करना पड़ता था. विनोद को जब यह बात समझ में आ गई तब उन्होंने पूरी टीम के साथ शूटिंग शेड्यूल उन्हीं के होटल में गुजारी जो बेहद ही सस्ता होटल था.

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