बॉलीवुड की दिग्गज अदाकारा अरुणा ईरानी आज अपना 65वां जन्मदिन मना रही हैं. अरुणा का जन्म मुंबई में 3 मई 1952 को हुआ था. अरुणा ने अपने फिल्मी करियर में 350 से ज्यादा हिन्दी फिल्मों और कई टीवी सीरियल्स में भी काम किया है.
महज 9 साल की उम्र में अरुणा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. उन्होंने साल 1961 में रिलीज हुई फिल्म 'गंगा जमुना' से हिन्दी सिनेमाजगत में कदम रखा और इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अरुणा के फिल्मी करियर ने हमें कई ऐसे गानें दिए हैं जो आज भी पसंद किए जाते हैं.
'थोड़ा रेशम लगता है', 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे', 'मैं शायर तो नहीं' जैसे बॉलीवुड फिल्मों के गीतों पर थिरकने वाली अभिनेत्री अरुणा ईरानी को बच्चा-बच्चा पहचाता है. अरुणा ने फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय से दर्शकों को लुभाया. वे अपने अभिनय के साथ-साथ अपने नृत्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं.
अरुणा ने बड़े-पर्दे के बाद छोटे पर्दे का रुख करने से कोई परहेज नहीं किया और वे आज भी टेलीविजन पर सक्रिय हैं, जो अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा हो सकती है. साल 1961 में उन्होंने दिलीप कुमार के साथ फिल्म 'गंगा जमना' से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत की. तभी ही दिलीप कुमार उनके अभिनय से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अरुणा के अभिनय को सराहा.
अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो, अरुणा अब तक 357 फिल्मों में काम कर चुकी हैं. फिल्मों में भले ही अरुणा ईरानी ने सह-कलाकार के रूप में अभिनय किया हो, लेकिन अपने अभिनय से उन्होंने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली.
आपको ये बात जाननी चाहिए कि अरुणा के पिताजी की एक थिएटर कंपनी थी. उनके दो भाई इंद्र कुमार और आदि ईरानी हैं और ये दैनो भी फिल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं. अरुणा ने बाल कलाकार, कॉमेडियन, खलनायिका, हीरोइन व चरित्र अभिनेत्री के रूप में काम किया.
साल 1961 में आई फिल्म 'गंगा जमुना' में उन्होंने चरित्र अभिनेत्री अजरा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत 'इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके' में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में भी वे शामिल हुईं. इसके बाद उन्होंने 'जहांआरा', 'फर्ज', 'उपकार' जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाए. फिर कॉमेडी किंग महमूद के साथ उनकी जोड़ी बनी, जो 'औलाद', 'हमजोली', 'नया जमाना' जैसी फिल्मों में खूब सराही गई.
साल 1971 में अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ उनकी फिल्म 'कारवां' के साथ आया. इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया. इसके बाद अरुणा को महमूद की साल 1972 में प्रदर्शित फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' में बतौर नायिका अभिनय करने का मौका मिला, इस फिल्म में नायक अमिताभ बच्चन थे. फिल्म 'बॉम्बे टू गोवा' एक बड़ी हिट साबित हुई.
अभिनेता राजकपूर की साल 1973 में आई फिल्म 'बॉबी' में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी. गुलजार की क्लासिक कॉमेडी 'अंगूर' में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वह अपने किरदार में पूरी तरह डूबी नजर आईं. इसके बाद वे लगातार एक सशक्त अभिनेत्री के तौर पर हिन्दी सिनेमा में अपना विशेष स्थान बनाती चली गईं. अपने करियर के दौरान अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं.
अरुणा ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में आने वाले कई नये अभिनेता और अभिनेत्रियों की मदद की. उन्होंने 'फर्ज' में जितेंद्र, 'बॉबी' में ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया, 'सरगम' में जयाप्रदा, 'लव स्टोरी' में कुमार गौरव और 'रॉकी' में संजय दत्त की काफी मदद की थी, लेकिन दुर्भाग्य ये रहा कि ये सभी सुपरस्टार बन गए और अरुणा सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनकर ही रहीं. हालांकि, उन्हें साल 1884 में रिलीज हुई फिल्म 'पेट प्यार और पाप' में शानदार अभिनय के लिए और साल 1993 की फिल्म 'बेटा' के लिए ‘बेस्ट सपोर्टिंग फिल्मफेयर अवॉर्ड’ मिल चुका है. साल 2012 में 57वें फिल्मफेयर में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.
अरुणा ईरानी ने नब्बे के दशक से 'बेटा' और 'राजा बाबू' जैसी फिल्मों से मां का किरदार निभाना शुरू किया. 'बेटा' में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवार्ड जीता. साल 2000 में उन्होंने धारावाहिक 'जमाना बदल गया' से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की थी. फिल्म 'यार मेरी जिंदगी' (2008) के बाद से वे टेलीविजन धारावाहिकों में अलग-अलग तरह के किरदारों में नजर आ रही हैं.
इसके बाद 'कहानी घर घर की' (2006-2007), 'झांसी की रानी' (2009-2011), 'देखा एक ख्वाब' (2011-2012), 'परिचय' (2013-2013), 'संस्कार धरोहर अपनो की' (2013-14) जैसे कई टेलीविजन धारावाहिकों में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं.
खबरों के अनुसार आज के दौर के निर्देशकों में अरुणा, करण जौहर और इम्तियाज अली के साथ काम करना चाहती हैं, क्योंकि उनके मुताबिक ये निर्देशक नए दौर के अनुरूप फिल्में तो बनाते ही हैं और भावनाओं पर भरपूर जोर देते हैं. मनोरंजन जगत में अरुणा का सिक्का कुछ कम नहीं है, उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है. बचपन से काम करती आ रहीं अरुणा ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि वे अपनी अंतिम सांस तक काम करते रहना चाहती हैं.
उनके जन्मदिन पर हम तो यही कामना करेंगे कि वह यूं ही लंबे समय तक दर्शकों का मनोरंजन करती रहें.