भोजपुरी फिल्म निर्माता और अभिनेता यश कुमार कोई बड़ा या जानामाना नाम नहीं है. लेकिन मलयालम फिल्म इंडस्ट्री यानी मालीवुड में मचे बवाल पर उन्होंने जो कहा वह न केवल फिल्म उद्योग का बल्कि हमारे समाज का भी बड़ा और कड़वा सच उजागर करता है. एक ऐसा सच जिस से हर कोई कतराता है. बकौल यश कुमार कहीं न कहीं इस के लिए लड़कियां खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि लोगों को शौर्ट टर्म कामयाबी पानी है और आते ही स्टार बन जाना है तो वे इस तरह की चीजों के साथ समझौता कर लेती हैं. हालांकि इस हल्ले को यश शर्मनाक और गंभीर मुद्दा बताते हैं लेकिन एक कड़वा सच यह भी जोड़ते हैं कि जिन के अंदर टैलेंट है वो स्ट्रगल करता है और काम हासिल कर लेता है. मगर कुछ लड़कियां कम समय में ग्लैमर पाना चाहती हैं और वे ये तरीके अपनाती हैं. इसी वजह से अच्छी लड़कियां मात खा जाती हैं. रेप वो होता है जो बिना सहमति के किया जाए.
फिल्मी दुनिया की एक और हकीकत यश यह कहते बयान करते हैं कि लड़कियां गांव से एक सपना लिए आती हैं लेकिन यहां तो सोए बिना काम नहीं मिलता. इज्जतदार घर की लड़की लौट जाएंगी या छोटेमोटे काम कर लेंगी. लेकिन अगर वो ऐक्ट्रैस बनना चाहती है तो घुटने टेक देगी कि अरे यहां तो आम है ये सब, चलो कर लेते हैं. मैं उन लोगों से कहना चाहता हूं कि किसी के लिए रास्ते बंद मत कीजिए अगर लड़की भी आप को पसंद करती है और सहज है तो एंजोय कीजिए. लेकिन लड़की मर्जी के खिलाफ कुछ करेंगे तो भरपाई करनी होगी.
इस बयान में खोट निकालना जितना मुश्किल काम है उस से आसान इसे जस्टिफाई कर देना है लेकिन इस के पहले हेमा आयोग पर एक नजर डालें कि यह है क्या और किस तरह का हल्ला मलयालम फिल्म इंडस्ट्री सहित पूरे दक्षिण का चक्कर लगा कर हौलीबुड से होता हुआ भोजपुरी तक भी जा पहुंचा है. इसे मी टू मुहिम पार्ट टू भी कहा जा सकता है.
क्या है हेमा आयोग
बात साल 2017 की है, जब मलयाली फिल्मों की एक जानीमानी एक्ट्रैस को किडनेप कर उस के साथ बलात्कार किया गया था. यह मामला अभी भी अदालत में चल रहा है. इस मामले में पीड़िता ने मलयाली फिल्मों के एक बड़े एक्टर दिलीप का भी नाम लिया था. इस पर हल्ला मचना स्वभाविक बात थी जिसे तूल दिया महिलाओं के एक संगठन ने जिस का नाम वुमेन इन सिनेमा कलैक्टिव है. कोच्चि में 18 महिलाओं ने पीड़िताओं को इंसाफ दिलाने के लिए मुहिम शुरू की तो सरकार ने हाईकोर्ट की रिटायर्ड जज हेमा की अगुवाई में 3 सदस्यीय आयोग गठित कर दिया जिसे हेमा आयोग के नाम से जाना गया. आयोग की एक सदस्य मलयाली फिल्मों की एक्ट्रैस शारदा और दूसरी सदस्य रिटायर्ड आईएएस अधिकारी केबी वलसाला थीं.
हेमा आयोग ने 2 साल में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की कई महिलाओं से बातचीत की और उस के आधार पर 235 पन्नों की एक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. लेकिन इस में से भी 55 पन्ने गायब थे. जिन महिलाओं से आयोग ने बात की उन की उम्र 30 साल से कम थी.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में सुनियोजित तरीके से महिलाओं का यौन शोषण होता है जिस में बड़े से ले कर छोटे नाम और लोग भी शामिल हैं. सरकार ने यह रिपोर्ट बीते दिनों उजागर की तो मालीबुड में तहलका मच गया. मलयालम मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन जिसे संक्षिप्त में अम्मा कहा जाता है के 17 मैम्बर्स ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.
अम्मा के अध्यक्ष मोहनलाल दक्षिण फिल्मों के लोकप्रिय अभिनेता हैं जिन्होंने रामगोपाल वर्मा की फिल्म आग और कम्पनी में भी अभिनय किया था. 355 से भी ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके मोहनलाल के नाम कई रिकौर्ड और उपलब्धियां भी हैं. दुबई के बुर्ज खलीफा में उन का एक फ्लेट भी है. नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने वाले मोहनलाल अम्मा का बचाव करते प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि हर बात के लिए अम्मा को दोषी ठहराया जाना गलत है और भी तो संगठन हैं.
यानी अगर यह शोषण है तो इसे हर कोई कर रहा है लेकिन अगर यह न्यू कमर्स को मौका और प्रोत्साहन देने के एवज में कीमत वसूलना है तो भी इस से कोई अछूता नहीं है. अभिनेत्री विद्या बालन अभिनीत डर्टी फिल्म जिन्होंने देखी और समझी है उन्हें हेमा आयोग की रिपोर्ट पर शायद ही हैरानी हुई होगी.
मधुर भंडारकर निर्देशित फिल्म पेज थ्री फिल्म भी इसी विषय पर बनी थी. खुद विद्या स्वीकार कर चुकी हैं कि वे भी इस तरह की हरकतों से दो चार हो चुकी हैं. भाजपा की नई नवेली बड़बोली सांसद कंगना रानौत भी एक इंटरव्यू में इस हकीकत पर रौशनी डाल चुकी हैं. उन्होंने तो सीधेसीधे अपने गोड फादर अभिनेता आदित्य पांचोली पर खुद के यौन शोषण का आरोप लगाया था. एक और विवादित अभिनेत्री पूनम पांडेय ने तो दिल्ली प्रेस पत्रिकाओं की फिल्म संवाददाता को बताया था कि मेरा शरीर मेरी प्रापर्टी है यह मेरी मर्जी है कि इस का जैसे चाहूं इस्तेमाल करूं.
नया क्या
हेमा आयोग की रिपोर्ट में नया कुछ भी नहीं है. इसे कुछ एक्ट्रैस के अनुभवों का एलबम कहना बेहतर होगा. मसलन इस तरह के बयान कि ‘उन्होंने मुझे एक होटल में बुलाया था उस होटल में मेरा यौन शोषण किया गया. बाद में मुझे पता चला कि ऐसी कोई फिल्म अस्तित्व में ही नहीं थी.’
यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई पत्नी पति और ससुराल वालों पर दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा के आरोप मढ़ दे. यह ठीक वैसा भी है कि कोई युवती यह कहे कि मैं 5 साल उस के साथ लिव इन में रही लेकिन वह अब शादी के अपने वादे से मुकर रहा है लिहाजा इसे मेरा बलात्कार और यौन शोषण हुआ माना जाए. आमतौर पर ऐसी शिकायतों पर कानून महिला के साथ खड़ा दिखता है और आमतौर पर ही उसे हमदर्दी भी मिलती है. लेकिन ऐसा होना अब कम हो रहा है क्योंकि अदालती फैसले तथाकथित पीड़िताओं के पक्ष में इन शब्दों के साथ जाने लगे हैं कि इसे बलात्कार या यौन शोषण करार नहीं दिया जा सकता क्योंकि इस में दोनों की रजामंदी थी शादी का झांसा देना कोई अपराधं नहीं है.
यही बात एक्ट्रैस बनने का सपना ले कर गई उस महत्वाकांक्षी बालिग लड़की पर लागू होती है जो होटल गई थी और जब फिल्म में काम नहीं मिला या बुलाने वाले ही फर्जी थे तो वह हल्ला मचाने लगी कि मेरा बलात्कार या यौन शोषण हुआ है. अगर ऐसा हुआ था तो उस ने शोर क्यों नहीं मचाया? वह भाग कर थाने क्यों नहीं गई? उस ने होटल के स्टाफ को अपने साथ हुई इस ज्यादती से अवगत कराते क्यों मदद नहीं मांगी? इन तमाम सवालों का इकलौता जवाब यही है कि वह अपनी मर्जी से गई थी और जो होना संभावित था उस के लिए तैयार हो कर गई थी. उसे कोई टैक्सी या कार में किडनेप कर नहीं ले गया था.
इस में हर्ज क्या
सच बहुत कड़वा है जो किसी आयोग की रिपोर्ट में नहीं मिलेगा कि लड़की अपनी मर्जी से गई थी और सैक्स संबंध बनाने भी सहमत थी. लेकिन जब रिटर्न मनमाफिक नहीं मिला तो इसे वह यौन शोषण और बलात्कार कहते हल्ला मचा रही है जिस से अपनी मूर्खता या स्वार्थ कुछ भी कह लें को ढक सके या फिर उस फिल्मकार से कुछ पैसा झटक सके.
इस सच को अब से कोई 6 साल पहले मशहूर कोरियोग्राफर सरोज खान ने यह कहते उधेड़ कर रख दिया था कि कास्टिंग काउच कोई नई बात नहीं है. यह बाबा आदम के जमाने से चला आ रहा है और सरकार सहित हर कोई इस का फायदा उठाना चाहता है. फिल्म इंडस्ट्री बलात्कार के बदले कम से कम रोटी तो देती है. सरकार के लोग तो वह भी नहीं देते फिर आप क्यों फिल्म इंडस्ट्री के पीछे पड़े रहते हो.
इस पर सरोज खान की खिंचाई शरू हुई तो उन के बचाव में आते दिग्गज अभिनेता और सांसद शत्रुध्न सिन्हा ने इस रिवाज को गिव एंड टेक करार देते जायज ठहराया था, तुम मुझे खुश करो मैं तुम्हे खुश करूंगा का कांसेप्ट सदियों से चला आ रहा है और इस में परेशान होने की कोई बात नहीं. जो आज भोजपुरी के यश कुमार कह रहे हैं वही शत्रुधन ने इन शब्दों के साथ कहा था कि कास्टिंग काउच व्यवस्था का हिस्सा बनना एक व्यक्तिगत पसंद है. हम अपने आसपास की मानसिकता से आखें नहीं मूंद सकते. सरोज खान के सच बोलने की निंदा नहीं करनी चाहिए बल्कि ऐसे हालात पैदा करने वालों की निंदा करनी चाहिए.
कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी ने तो यहां तक कह डाला था कि संसद भी इस प्रथा से अछूती नहीं है. इस खुलासे पर जब रेणुका भी घिरने लगीं तब भी शत्रु ने उन के बचाव में कहा था कि मनोरंजन जगत और राजनीति दोनों में यौन संबंधों की मांग की जाती है और दी जाती है और यह जीवन में आगे बढ़ने का एक पुराना और समय परीक्षनित ( time tested ) तरीका है.
दिक्कत यह नहीं है कि लड़कियां आगे बढ़ने की गरज से जिस्म को सीढ़ी बनाती हैं, दिक्कत यह है कि नाकाम रहने पर वे हल्ला मचाने लगती हैं या पुरुष को ब्लैकमेल करने लगती हैं. बात अकेले फिल्म या राजनीति तक सिमटी नहीं है बल्कि कौरपोरेट में भी आम है कि नौकरी या प्रमोशन चाहिए तो बौस का बिस्तर गर्म करो. नैतिकतावादियों को यह तरीका बुरा लगता है क्योंकि इस से महिला उन के बुने जाल और जकड़नों से आजाद होती है. जबकि इसे गलत तभी ठहराया जा सकता है जब यह वाकई जबरजस्ती किया गया हो नहीं तो बात वैसी ही है कि देख लिया तो बलात्कार नहीं तो रजामंदी है ही.
चूंकि यह नपातुला सच है इसलिए हेमा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद उठ रहा बवंडर भी प्याली के तूफान जैसे जल्द खत्म हो जाना है जैसे मीटू मुहिम फुस्स हो कर रह गई है.
पौराणिक भी है सिलसिला
न केवल आजकल के लिहाज से बल्कि पौराणिक युग के लिहाज से भी नैतिकता के तराजू पर देखें तो यह सिलसिला चला आ रहा है जिसे सरोज खान ने बाबा आदम के जमाने की संज्ञा दी थी. फर्क इतना भर है कि उन किस्सेकहानियों में पुरुष स्त्री को मोहरा बना कर अपना काम निकालता था आज भी ऐसा होता है. मोहिनी अवतार का किस्सा हर हिंदू जानता है कि समुद्र मंथन के बाद कैसे देवताओं को अमृत पान कराने की साजिश रची गई थी. इस कहानी के मुताबिक दैत्यों से अमृत पान छीनने के लिए खुद विष्णु ने एक अति सुंदर स्त्री का रूप धारण किया था. शिव को यह पता चला कि विष्णु यह चाल चलने वाले हैं तो वे उन की स्तुति करने पहुंच गए.
विष्णु ने उन्हें मोहिनी रूप दिखाया तो शिव मोहित हो कर अपनी सुधबुध खो बैठे. कभी कामदेव को भी मात देने वाले शिव कामातुर हो उठे और उन्होंने उस के पीछे दौड़ लगा दी. शिव इतने उत्तेजित हो गए थे कि उन का वीर्य पृथ्वी पर गिरने लगा और जहांजहां गिरा वहांवहां शिवलिंग स्थापित हो गए और सोने की खदानें बन गईं. अब इन शिवलिंगों के आसपास कहीं भी सोने की खदाने नहीं हैं, हां भक्तगण जरुर इफरात से पंडों को दान दक्षिणा चढ़ाते रहते हैं. मुमकिन है आजकल के प्रोड्यूसर भी एकदूसरे को नीचा दिखाने के लिए महिलाओं को मोहरा बनाते अपना उल्लू सीधा करते हों.
इंद्र अहिल्या और गौतम ऋषि की कहानी भी कुछ ऐसी है जिस के बारे में समकालीन टीकाकार और धार्मिक विशलेषक यह सवाल अधूरा छोड़ देते हैं कि वाकई में इंद्र ने अहिल्या का बलात्कार किया था या पति की गैरहाजिरी में खुद अहिल्या ने इंद्र को आमंत्रित किया था. धार्मिक उपन्यासकार नरेंद्र कोहली के उपन्यास दीक्षा में इस का वर्णन है कि गौतम ऋषि ने पत्नी पर स्वभाविक शक किया था.
कैसे एक्ट्रैस बनने की शौकीन महत्वाकांक्षी युवतियां अपनी मंशा पूरी न होने पर फिल्मकारों को फंसा देती हैं इस से कनैक्ट होती कहानी द्वापर युग में मिलती है. इस कहानी के मुताबिक एक बार इंद्र ने अपने पुत्र अर्जुन को स्वर्ग लोक में आमंत्रित किया. वहां के समारोह में बेहद खुबसूरत अप्सरा उर्वशी ने नृत्य पेश किया और नृत्य करतेकरते ही अर्जुन पर ठीक वैसे ही मोहित हो गई जैसे शिव मोहिनी पर हो गए थे. सभा खत्म होने के बाद उर्वशी अर्जुन के कमरे में जा पहुंची और उस से प्रणय निवेदन किया. जिसे अर्जुन ने अस्वीकार कर दिया. इस से गुस्साई उर्वशी ने अर्जुन को शिखंडी यानी हिजड़ा बनने का श्राप दे दिया. नतीजतन बेचारे अर्जुन को एक साल तक वृहन्नला बन कर रहना पड़ा था. अब आज के अर्जुन बेचारे जेल और अदालत के चक्कर काटने पर मजबूर रहते हैं. यह और बात है कि अधिकतर मामलों में उर्वशी आरोप साबित नहीं कर पाती.