26 साल की उम्र में बतौर निर्देशक के रूप में काम करने वाले निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक महेश भट्ट को सफलता फिल्म ‘अर्थ’ से मिली. इसके बाद उन्होंने कई सफल फिल्में दी. जिसमें सारांश, जानम, सड़क, जख्म आदि हैं. उन्होंने हमेशा नए टैलेंट को बढ़ावा दिया है. उनकी फिल्में कर्णप्रिय गानों के लिए हमेशा जानी जाती रही हैं.

जितना सफल उनका फिल्मी कैरियर था उतना सफल उनका निजी जीवन नहीं था. पहले उन्होंने किरण भट्ट (लारेन ब्राइट) से शादी की, उनसे उनके दो बच्चे पूजा भट्ट और राहुल भट्ट हैं. परवीन बौबी के साथ अफेयर के चलते उनकी शादी टूट गयी. बाद में महेश भट्ट, सोनी राजदान के प्यार में पड़ गए और उनसे शादी की और अब उनके दो बच्चे शाहीन भट्ट और आलिया भट्ट हैं.

महेश भट्ट ने जो भी फिल्में बनायीं, वे फिल्में उनके जीवन से कहीं न कहीं जुडी रहीं. वे फिल्मों में सच्चाई को दिखाने की कोशिश करते हैं. फिल्में हिट हो या फ्लाप उस पर अधिक ध्यान नहीं देते. उनकी हिट फिल्म ‘सारांश’ भी थी, जिसमें उन्होंने अनुपम खेर को पहला मौका दिया था. उनकी फिल्म ‘जलेबी रिलीज हो चुकी है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था पेश है अंश.

बांग्ला फिल्म ‘प्राक्तन’ को रीमेक बनाने की कैसे सूझी ?

मुझे वह फिल्म बहुत अच्छी लगी थी. ये माडर्न इंडिया को कनेक्ट करती है, इसमें मैंने उसके कांसेप्ट को लिया है, बाकी हमारे लेखक ने इसे अलग रूप में पेश किया है. जो अलग है. जब मैंने फिल्म ‘अर्थ’ बनायीं थी, तो बहुत लोगों ने मुझे टोका था कि फिल्म ‘सिलसिला’, ये नजदीकियां ये सब एक तरह की फिल्में हैं, जिसमें बड़े-बड़े कलाकार हैं आपकी फिल्म चलना मुश्किल है, पर मेरी फिल्म ‘अर्थ’ चली, क्योंकि मैं जो भी फिल्म बनाता हूं वह मेरे दिल से जुडी होती है. इसलिए इसमें जो सच्चाई होती है वही दर्शकों के दिल को छूती है और 35 साल बाद आज भी लोग ‘अर्थ’ के इस कांसेप्ट से जुड़े हुए हैं. मेरे हिसाब से फिल्म अर्थ के बाद ये मेरी दूसरी सफल फिल्म है.

आपके हिसाब से फिल्मों की कहानियां कितनी बदली है ?

कहानिया अधिकतर हमारे आस-पास के माहौल पर आधारित होती है और आज की औरतों की सोच विचार में काफी परिवर्तन आया है. वे अपने विचार को सबके सामने खुलकर कहने से घबराती नहीं है और ये सही है कि उनमें इतनी हिम्मत आ चुकी है. अभी पुरुषों को सम्हलकर रहने की जरुरत है. फिल्म ‘जलेबी’ मी टू कैम्पेन से प्रेरित है, जहां एक तरफ महिलाओं को देवी मानकर मंदिर में पूजा की जाती है वहीं घर पर उसके साथ अत्याचार या रेप जैसी घिनौनी हरकते की जाती है, और ये वही पुरुष हैं, जो अपने आपको साधू संत कहते हैं.

‘मी टू’ मूवमेंट अभी जोरो पर है, इसमें फिल्म इंडस्ट्री की कई कहानियां, जो अब तक दबी थी, उजागर हो रही है, इस तरह की यौन उत्पीड़न किसी भी क्षेत्र में कितना खतरनाक होता है? आप इसे कैसे लेते हैं?

मैंने इस तरह की कई संदेश के साथ फिल्में बनायीं है. पूजा भट्ट ने कई साल पहले फिल्म ‘तमन्ना’ ऐसी ही कन्या भ्रूण हत्या पर बनायीं थी. उस समय जब मैंने दिल्ली में इसे टैक्स फ्री करने के लिए भेजा तो वहां के वित्त मंत्री ने कहा था कि ये तो भारत में होता ही नहीं है, चीन में होता है. वह रोती हुई बाहर आई थी. यही तो समस्या है कि लोग घर में अपनी पत्नी और बेटी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और बाहर जाकर महिलाओं के कल्याण के लिए भाषण देते हैं. ये अंधापन है. महिलाएं आज भी बसों और ट्रेन में जब सफर करती हैं, तो ऐसे गंदे विचार वाले लोगों से रोज उन्हें अपने आपको बचाना पड़ता है. यौन उत्पीड़न की समस्या किसी रिलेशनशिप पर आधारित नहीं होता. इस समस्या को कोर्ट या कोई सुलझा नहीं सकता है. जब तक आप अपने अंदर क्रांति नहीं लायेंगे, तबतक कुछ भी होने वाला नहीं. यहां तो व्यक्ति ‘मी टू हैश टैग’ का सहारा ले रहा है, पर घरों में जो यौन उत्पीड़न होता है, उसे कोई क्या करेगा? वहां मां ही बेटी को घर की बदनामी के डर से कुछ कहने से मना कर देती है. मैं खुश हूं कि औरतों ने बोलना तो शुरू किया और ये मुबारक लम्हा है और पुरुषों को भी इसका साथ देना चाहिए. आलिया ने फिल्म ‘हाई वे’ के दौरान जब उसे उसकी स्क्रिप्ट मिली, वह रात भर उसे पढ़ती रही. उसने वह फिल्म की और बहुत सारी महिलाओं पर उसका असर पड़ा. आज भी मैं बेटी को कहीं जाने पर उसे क्या करे क्या न करें, उसकी सलाह देता रहता हूं. मेरे हिसाब से ‘मी टू मूवमेंट’ हमारे बदलते भारत की एक अभिव्यक्ति है.

असल में जहां भी किसी को पावर मिलता है, वह दूसरे को कुचलता है और ये सिर्फ पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी कई जगहों पर पुरुषों पर करती है. जब तक आप किसी को जलील नहीं करते, आपको पावरफुल होने का एहसास नहीं होता. इसे बदलने के लिए माडर्न रेवोल्यूशन चाहिए.

आप की फिल्में अधिकतर संगीत के लिए प्रसिद्ध हुआ करती हैं, अब वैसा संगीत न होने की वजह क्या है?

अब दर्शकों की पसंद बदल चुकी है, लेकिन मैं अभी भी फिल्मों में गाने पसंद करता हूं. मैं फिल्मों को सच्चे दिल से बनाने की कोशिश करता हूं.

आप स्पष्ट भाषी हैं इसका प्रभाव आपके काम पर पड़ा?

मैं हमेशा से ऐसा ही हूं, मेरे पिता मेरे साथ नहीं रहते थे. उन्होंने मेरी मां से शादी ही नहीं की थी. मुझे याद आता है कि बचपन में मेरे आस-पास के बच्चे ये कहकर जलील करते थे कि मेरे पिता कहा हैं. मैं कहता था कि वे शूटिंग पर गए हैं. इसपर भी वे मजाक उड़ाते थे कि क्या वे सालों से शूटिंग कर रहे हैं. एक बार मैंने गुस्से में आकर कह दिया था कि मेरे पिता मेरे साथ नहीं रहते. इस पर मां बहुत गुस्सा हुई और बहुत मार पड़ी थी. तब मुझे समझ में आया कि लोग आपको उसी बात से डराते हैं, जिसे आप छुपाते हैं.

इंडस्ट्री में भाई भतीजावाद पर आपकी क्या राय है?

मैंने तो कभी इसका सहारा नहीं लिया मैंने अपनी किसी भी बेटी को लौंच नहीं किया. उन्हें काम करने की आजादी दी है और आज वे सफल हैं. ये सही है कि मेरे परिवार में हम दोनों भाई मिलकर कंपनी चलाते हैं और काम अच्छा होता है, क्योंकि बचपन से हम एक दूसरे को जानते हैं. व्यवसाय में एकजुटता होना जरुरी है.

आपकी फिटनेस का राज क्या है?

मैं शुरू से ही ऐसा ही हूं. मेरा डी एन ए ऐसा है. समय से सब काम करने की कोशिश करता हूं, इसलिए फिट रहता हूं.

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