‘‘मुकद्दर का सिकंदर’’ सहित चार सौ फिल्मों के एक्शन डायरेक्टर रवि खन्ना के पोते और ‘जंजीर’,‘सुहाग’, ‘शपथ’,‘शराबी’ सहित तीन सौ से अधिक फिल्मों के एक्शन डायरेक्टर बब्बू खन्ना के बेटे करण खन्ना को लोग बतौर अभिनेता पहचानते हैं. जबकि करण खन्ना बतौर सहायक एक्शन डायरेक्टर व सहायक डांस डायरेक्टर के रूप में भी काफी काम कर चुके हैं.

सीरियल ‘महाभारत’ में एक्शन डिजायनर के रूप में काम करने के बाद करण खन्ना ने सीरियल ‘मनमर्जियां’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था. वह ‘इश्कबाज’, ‘दिव्यदृष्टि’ और ‘बहू बेगम’ जैसे सीरियलों में निगेटिब किरदार निभाकर जबरदस्त शोहरत बटोर चुके हैं. अब वह ‘दंगल’ टीवी पर प्रसारित हो रहे ‘नथ उतराई ’ की कुप्रथा पर आधारित सीरियल ‘‘नथः जेवर या जंजीर’’ में अधिराज का निगेटिव किरदार निभा रहे हैं.

प्स्तुत है करण खन्ना से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

आपके दादा व पिता एक्शन निर्देशक थे, इसलिए आपने भी बौलीवुड से जुड़ने का फैसला लिया?

– मैं बचपन से उनके साथ सेट पर जाता रहा हूं. तो मेरी परवरिश फिल्मी माहौल व फिल्मों के सेट पर ही हुई है. पढ़ाई का माहौल मेरे घर पर कभी नही रहा. हम हर दिन अपने आस पास जिस माहौल में रहते हैं, उसी से प्रेरित होते रहते हैं. मैं अपने पिता जी का काम देखकर ही प्रेरित हुआ हूं. क्योंकि दादा जी के साथ जब सेट पर जाता था, तब मेरी उम्र इतनी छोटी थी कि उस वक्त हम खेल में ही मस्त रहते थे. उस वक्त एक्शन वगैरह की बात समझ से परे थी. मेरे पिता जिस तरह से सेट पर काम करते थे, उनके अंदर जो लीडरशिप क्वालिटी थी, उससे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला.

यह मनोरंजन जगत है, पर यहां भी लीडरशिप व अनुशासन का गुण आवश्यक है. मुझे लीड करना अच्छा लगता था. मेरा स्वभाव ऐसा है कि मैं किसी के अंदर काम नहीं कर सकता. वहां से ही कहीं न कहीं मेरी शुरूआत हुई थी. मगर मेरे पिता जी नही चाहते थे कि मैं स्टंट मैन बनूं. वह मुझे बतौर अभिनेता देखना चाहते थे. वह मुझसे कहते थे कि मेरे अंदर अभिनेता बनने के गुण हैं. मेरे पिता मेरे लिए सच का आइना हैं. यदि मैं खराब काम करता हूं, तो मेरे पिता मुझे सीधे जमीन पर गिरा देते हैं और कहते हैं कि यह तूने बहुत गंदा काम किया है. मेरे पिता जी बड़ी इमानदारी के साथ मेरे काम की समीक्षा करते हैं. इस कारण मुझे बाहरी आलोचकों की जरुरत नही पड़ती. तो कहीं न कहीं मैने भी अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए अभिनय को कैरियर बनाया.

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वैसे आज भी जब बतौर अभिनेता मैं काम नहीं कर रहा होता हूं, तो अपने पिता के साथ बतौर सहायक काम करने के लिए जाता हूं. पर पिता की बात मानकर एक्शन डायरेक्टर के रूप में कैरियर नहीं बनाया. दूसरी बात सीरियल ‘महाभारत’ के सेट पर सिद्धार्थ कुमार तिवारी ने मुझे एक्शन डिजाइन करते देखकर कहा कि मुझे अभिनेता होना चाहिए और उन्होंने मुझे सबसे पहले सीरियल ‘मनमर्जियां’ में अभिनय करने का अवसर दिया. इस सीरियल के सेट पर एक सीन को अंजाम देते समय मेरे अंदर से भी अभिनेता बनने की आवाज आयी, तो दोनों का मिश्रण है कि मैं अभिनय में ही धीरे धीरे कदम आगे बढ़ा रहा हूं.

पर आपने तो नृत्य का प्रशिक्षण हासिल किया और कुछ नृत्य निर्देशन भी किया है?

-जब मैं कालेज में पढ़ रहा था,उन दिनों मेरी रूचि नृत्य में काफी थी. मेरे पिता भी मेरा डांस देखकर कहते थे कि ‘यू आर फैंटास्टिक डांसर. अभिनेता बनने के लिए तुझे फाइट व डांस सहित सब कुछ आना चाहिए. ’नृत्य सीखने के लिए मैं टेरिंस लुईस की कक्षा में जाया करता था. मेरी प्रतिभा को देखकर टेरेंस लुईस सर ने मुझे तीन वर्ष की स्कॉलरशिप दी. इस तरह मुझे तीन वर्ष तक उनके साथ मुफ्त में डांस सीखने व काम करने का अवसर मिला था. तो मेरी डांस की यात्रा वहां से शुरू हुई, जब तक मेरी कालेज की पढ़ाई चल रही थी, तब तक मैने डांस सीखा और टेंरेस लुईस सर के साथ काम किया. उसके बाद नृत्य का प्रशिक्षण लेने के लिए मैं छह माह के लिए अमरीका भी गया था. अमरीका से वापस आते ही मुझे टीवी के रियालिटी शो ‘‘जस्ट डांस’’ से जुड़ने का अवसर मिला. इसमें रितिक रोशन, फरहा खान व वैभवी मर्चेंट जज थीं. इस शो का मैं फाइनालिस्ट था.फिर मैने अभिनय के क्षेत्र में कदम रख दिया.

उसके बाद फिर काफी नृत्य निर्देशन की इच्छा नहीं हुई?

मैने अपने पिता द्वारा निर्मित दो तीन म्यूजिक वीडियो में नृत्य निर्देशन किया. हम लोग राजेश खन्ना की अंतिम फिल्म ‘रियासत’ कर रहे थे, उसमें एक छोटा सा आइटम नंबर था, मैं सेट पर था, तो फिल्म के निर्देशक के कहने पर मैने उसका नृत्य निर्देशन किया था. इसके अलावा मैने एक वेब सीरीज के लिए एक गाने में कोरियाग्राफी किया था,बाद में वह वेब सीरीज में नजर नहीं आया. मैने डांस सीखा है. कैमरे की समझ है, तो उसे करने में तकलीफ नहीं होती. मैं घर पर खाली बैठने की बनिस्बत अपने ज्ञान का उपयोग करता रहता हूं.

एक बेहतरीन डांसर और कैमरे की समझ होना अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

-सबसे पहले तो अच्छा डांसर होने पर कलाकार का पॉस्चर ही बदल जाता है. आपके अंदर एक ग्रेस आ जाता है. किसी भी किरदार को निभाते समय उसके पॉस्चर को पकड़ कर कलाकार पूरा गेम बदल सकता है. इसके लिए संवाद बोलना भी आवश्यक नही है. डांस मे महारत होने से आपका पॉस्चर, आपका अलाइनमेंट, आपका फ्लो व रिदम सटीक बन जाता है. हम संवाद अदायगी भी एक रिदम में ही करते हैं. हर चीज संगीत व रिदम पर आधारित है. मेरा मानना है कि नृत्य हर क्षेत्र में मदद करता है. मान लीजिए एक कलाकार बूढ़े इंसान का किरदार निभा रहा है. आपको पता है कि आपका यह पॉस्चर होना चाहिए.

बतौर अभिनेता सीरियल ‘‘मनमर्जिया’’ के बाद आपकी यात्रा कैसी रही?

-यूं तो ‘जस्ट डांस’ के बाद मुझे काफी आफर आए थे. पर वह कुछ वजहों से कर नहीं पाया. उस दौरान मेरे पिता जी का काम भी कुछ ज्यादा ही चल रहा था. उन दिनों मेरे पिता अंग्रेजी फिल्म ‘फारेन बी’ कर रहे थे. फिर सीरियल ‘महाभारत’ मिल गया था. सीरियल ‘महाभारत’ में मुझे स्पेशल पद दिया गया था. मैं इस सीरियल के लिए एक्शन को कागज पर डिजाइन करता था. सात आठ माह तो इसी में चले गए थे. फिर सिद्धार्थ तिवारी ने मुझे ‘मनमर्जिया’ में अभिनेता बनाया था.

‘मनमर्जिया’ के बाद मेरा अलग तरह का संघर्ष शुरू हुआ. इतना ही नहीं मुझे पैसे की तंगी का भी सामना करना पड़ा. मैने उन्नीस वर्ष की उम्र से ही कमाना शुरू कर दिया था. इसलिए पिता जी के सामने हाथ नहीं फैलाना चाहता था. पर मैं अपनी मर्जी के अनुसार खर्च नहीं कर पा रहा था. फिर मुझे सीरियल ‘इश्कबाज’ का ऑफर मिला. मुझे निगेटिव किरदार दक्ष खुराना करने के लिए कहा गया. मैने बिना कुछ सोचे ऑडीशन दे दिया.

सच कह रहा हूं मैने ‘इश्कबाज’ में निगेटिव किरदार दक्ष खुराना के लिए ऑडीशन महज पैसे के लिए दिया था. लेकिन इस सीरियल की टीम बहुत अच्छी थी. इसके निर्देशक ललित मोहन व आतिफ सर से काफी कुछ सीखने को मिला. इस सीरियल में मेरा एंट्री का सीन आतिफ सर ने फिल्माया था, जो कि आज तक का मेरा फेवरेट एंट्री सीन है. इस सीरियल से मेरे काम को सराहना मिली. सीरियल ‘इश्कबाज’ से ही मुझे बतौर अभिनेता पहचान मिली. लोग आज भी मुझे दक्ष के नाम से बुलाते हैं. मैं अभी यूट्यूब के लिए एक विज्ञापन फिल्म की शूटिंग कर रहा था. उनका पहला एडी बार बार कह रहा था कि दक्ष थोड़ा लेफ्ट में आ जाएं. जब मैंने टोका, तो उसने कहा कि करण भाई, मेरे दिमाग में तो दक्ष ही घुसा हुआ है. मैं सीरियल ‘इश्कबाज़’ की निर्माता गुल मैम का शुक्रगुजार हूं कि मुझे एक बेहतरीन टीम के साथ काम करने का मौका दिया और एक कलाकार के तौर पर मुझे विकसित होने का भी अवसर मिला. मुझे समझ में आया कि मेरी सीमाएं कितना पीछे हैं और उसे आगे ले जाना है.

‘इश्कबाज’ के बाद भी कुछ दिन का संघर्ष रहा. इसके बाद मुझे सीरियल ‘बहू बेगम’ करने का अवसर मिला. फिर मैने ‘दिव्य दृष्टि’ किया. आप यकीन नही करेंगे मेरे पास पूरे एक वर्ष तक काम नहीं था. मैं छुट्टी मनाने के लिए अपने दोस्त के घर पर दिल्ली में था. वहां पर मुझे फोन आया कि सीरियल ‘दिव्य दृष्टि’ के लिए मैं ऑडीशन दे दूं. मैं सिर्फ ऑडीशन देने के लिए पैसे खर्च कर दिल्ली से आना नहीं चाहता था. पर उसने कहा कि सीरियल की निर्माता मुक्ता मैम को सेल्फ टेस्ट चाहिए, तो मैने दिल्ली से ही सेल्फ टेस्ट वीडियो बनाकर भेजा. दूसरे दिन फोन आया कि मेरा चयन हो गया है और मैं दिल्ली से मुंबई आ गया. मैने काम किया, पर संघर्ष रहा है. मैं सोने का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुआ. लोग आरोप लगाते हैं कि यहां पर नेपोटिजम है.

आपके दादा व पिता दोनो इसी इंडस्ट्री से हैं, तो फिर आपको संघर्ष क्यों करना पड़ा?

-मेरे दादा जी बोलते थे कि ‘किस्मत से बढ़कर,मुकद्दर से ज्यादा न कभी किसी को मिला है और न कभी किसी को मिलेगा.मेरे दादा रवि खन्ना जी ने ‘मुकद्दर का सिकंदर’ में एक्षन किया था,तो वह हमेषा यही संवाद सुनाया करते थे.जबकि मेरे पिता जी कहते हैं कि ‘यदि मैने तुझे किसी के पास सिफारिष लगाकर भेजा,पर तेरी किस्मत में नहीं होगा,तो वह काम नही मिलेगा.’ऐसे में हमने इतने वर्षों में जो इज्जत कमायी है, उसे दांव पर लगाएं.इसलिए तू खुद मेहनत कर.यदि तेरी किस्मत मंे लिखा होगा,तो तेरी मेहनत से तुझे काम मिलेगा.और उस काम में तुझे ज्यादा खुषी मिलेगी.इसलिए मेेरे पिता ने मेरे लिए किसी फिल्म या सीरियल वगैरह मेें पैसा लगाने से भी मना कर दिया.जब लोग नेपोटिजम की बात करते हैं,तो मुझे लगता है कि हर जगह नेपोटिजम काम नहीं करता,आपके अंदर टैलेंट का होना जरुरी है.मैं सीरियल ‘महाभारत’ में एक्षन डिजायनर था. सिद्धार्थ सर ने देखा,तो उन्होने ‘मनमर्जिया’ में मुझे अभिनेता बना दिया.

सीरियल ‘‘नथ जेवर या जंजीर’’ से जुड़ने की वजह क्या महज यह रही कि आपको काम की जरुरत थी?

-सर, टीवी का उसूल है ‘जो दिखता है,वही बिकता है.’टीवी की पहचान ऐसी होती है कि सीरियल का प्रसारण बंद होने के पांच छह माह बाद लोग कलाकार को भूल जाते हैं. लाक डाउन व कोरोना की वजह से मेरा पूरा परिवार बहुत गंदे फेज से गुजरा था.हमारे घर पर नौकरानी सहित सब कोरोना पाॅजीटिब हो गए थे. मैं पच्चीस दिन तक घर के अंदर कैद था.उससे पहले ‘‘अम्मा के बाबू की बेबी’ की पंद्रह पंद्रह घंटे चलने वाली षूटिंग पूरी हुई थी. उस वक्त जिम भी करता था.लेकिन फिर घर पर बैठ जाना मानसिक रूप से परेषान कर देने वाली स्थिति थी.मेरे मन में बार बार आ रहा था कि मुझे घर नही बैठना है.कोरोना का डर भी कम हो चुका था.मेरा वजन बढ़ गया था.मुझे दो सीरियल मिले थे,पर एन वक्त पर मेरे हाथ से निकल गए थे.ऐसे वक्त में मुझे ‘नथः जेवर या जंजीर’ का आफर मिला.इस सीरियल के निर्माता के साथ मैं पिछला सीरियल कर चुका था.इसलिए मैने इसे स्वीकार कर लिया.लोग कहते है कि कलाकार स्टीरियो टाइप काम कर रहा हे,मगर हकीकत में कलाकार को नही पता होता है कि उसे कौन देख रहा है? मैने सोचा कि हमारी झोली मंे जो गिर रहा है,उसे लपक लेना चाहिए.

सीरियल ‘‘नथः जेवर या जंजीर’’ में आपका किरदार क्या है?

-इसमें मैं अधिराज का किरदार निभा रहा हॅंू. आप नथ उतराई के बारे में तो जानेही है.गांव के ठाकुर अवतार ने अपने परिवार की वारिस के लिए तेजो संग नथ उतराई करता है और दो बच्चे पैदा होते हैं.एक बच्चे षंभू को लेकर ठाकुर चले जाते हैं,उन्हे लगता है कि दूसरा बच्चा मरा हुआ है.जबकि वह जिंदा था और वह अधिराज है.अधिराज अपनी मां तेजो के पास ही रहता है.वह नथ उतराई का परिणाम होता है,इसलिए काफी जलील किया जाता है.उसके मन में बार बार सवाल उठता है कि उसकी मां के साथ ही ऐसा क्यों हुआ?यदि ठाकुर मुझे भी अपने साथ ले जाते तो मेरा नाम व वजूद कुछ अलग होता.अब उसकी मां पागल हो गयी है.इसलिए अधिराज को वह खुन्नस है और वह ठाकुर खानदान से बदला लेना चाहता है.इसलिए वह बदला लेने के लिए अपने जुड़वा भाई षंभू और उसके परिवार से बदला लेने आया है.वह षतरंज का खेल खेलते हुए परिवार के एक एक सदस्य की वाट लगाने वाला है.

आपने एक स्क्रिप्ट भी लिखी है.तो आपको लिखने का शौक कब से है?

-सच कहॅंू तो मुझे लिखने का षौक नही रहा.मैं सोच सकता हॅूं,वीज्युलाइज कर सकता हॅंू.पर मुझसे लिखा नही जाता.लेकिन कोरोना के चलते कमरे में बंद था.अपने माता पिता से भी वीडियो काल पर ही बात कर पाता था.मैं बगल के कमरे मंे मौजूद अपने पिता से स्क्रिप्ट पर विचार विमर्ष भी फोन पर ही कर पाता था.उस दौरान मैने फिल्म ‘कभी खुषी कभी गम’ पांच बार देखी.तो करने को कुछ था नही.तो फरसत में मैने जो कुछ दिमाग मंे था,उसी पर स्क्रिप्ट लिख डाली.

क्या आपकी यह स्क्रिप्ट किसी सत्य घटनाक्रम पर है?

-जी हाॅ!ऐसा ही है.यह एक लड़की की यात्रा है.उसका काॅफीडेंस का स्तर षून्य पर होता है और कैसे उसका काॅफीडेंस का स्तर सौ पर पहुॅचता है. पर वह जमीन से जुड़ी रहती है.उसी की कहानी है.यह कहानी लोगों के लिए संदेष भी है कि आपको जो मुकाम मिल जाता है,वह कई बार आपकी प्रतिभा पर नहीं,बल्कि ईष्वर की मेहरबानी से मिलता है.उसका आप नाजायज फायदा मत उठाओ.सोषल मीडिया की वजह से एक रात में ही स्टार बन जाने वाले लोग यह नही जानते कि लोगों के साथ किस तरह सेव्यवहार किया जाए,तो ऐसे लोगों को मेरी यह फिल्म सीख देने वाली है.हम आज कल देख रहे हंै कि सोषल मीडिया की वजह से स्टार बने कलाकार को निर्माता अनुबंधित कर लेता है,जबकि उन्हे अभिनय का ‘ए’ भी नही पता होता.यह देखकर प्रतिभाषाली कलाकार को दुख पहुॅचता है.

सोशल मीडिया के फालोवअर्स कलाकार की फिल्म या सीरियल देखते हैं,यह कैसे माना जा सकता है?

-इसकी कोई गारंटी नही है.यह बात निर्माता निर्देषक को समझनी चाहिए कि केवल सोषल मीडिया पर फालोवअर्स आने से कलाकार की प्रतिभा को अंाकना गलत है.फालोवअर्स फिल्म या सीरियल देखेगा, यह सोचना भी पूरी तरह से गलत है. मुझे लगता है कि सोषल मीडिया को बहुत ही अलग अंदाज में लिया जा रहा है. नायरा बनर्जी के साथ आपके रिष्ते की भी चर्चाएं रही हैं? -वास्तव में हम आठ वर्ष पहले मिले थे.हमने ‘जय हो’’ गाने के नृत्य निर्देषक लाॅजनिस फर्नाडिष के एक षो को किया था.यह डांस षो ‘इफ्फी’ मंे हुआ था और इसमें मैं मुख्य डांसर था.इसमें नायरा ने दक्षिण की अदाकारा के रूप में डांस करने आयी थी.तब हम अच्छे दोस्त बन गए थे.फिर बात आयी गयी हो गयी.कुछ समय बाद मेरे पिता जी एक फिल्म बनाने वाले थे,उसकी कहानी सुनने के लिए वह हमारे घर आयी थी.पर बाद में यह फिल्म नही बनी.फिर चार वर्ष बाद हमारी मुलाकात सीरियल ‘‘दिव्यदृष्टि’’ मंे हुई.तब से हम अच्छे दोस्त हैं.फिर सना के साथ भी अच्छे संबंध रहे हैं. ‘दिव्यदृष् िट’ में नायर व मेरी जोड़ी थी,तो स्वाभाविक तौर पर हम ज्यादा करीब आते गए.लेकिन रिष्ते वाली बात नही हुई.पर हमारे बीच कोई रिष्ता नही रहा.

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