जौन अब्राहम ने साल 2003 में अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘जिस्म’ से की थी और उन की इमेज एक सैक्स सिंबल की बन कर रह गई थी. फिल्म ‘दोस्ताना’ में उन्होंने एक मजाकिया किरदार निभाया था. ‘गरम मसाला’, ‘देशी बौयज’ जैसी हलकीफुलकी फिल्में भी वे करते रहे, पर अचानक साल 2012 में उन्होंने स्पर्म डोनेट पर बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ पेश की, जिस में नए हीरो आयुष्मान खुराना को लिया गया था. इस फिल्म को जबरदस्त कामयाबी मिली थी.
इस के बाद जौन अब्राहम ने श्रीलंका के जाफना इलाके में 80 के दशक में हुई सिविल वार पर एक राजनीतिक ऐक्शन फिल्म ‘मद्रास कैफे’ बनाई, जिस में उन्होंने रौ एजेंट का दमदार किरदार निभाया था. पेश हैं, जौन अब्राहम के साथ हुई लंबी बातचीत के खास अंश:
एक कलाकार के तौर पर आज आप खुद को कहां पाते हैं?
मुझे लगता है कि मैं आज की तारीख में खुद के बल पर खड़ा हो सकता हूं, इसलिए मैं खुश हूं. पर अभी भी मुझे बहुत आगे जाना है. बहुतकुछ नया करना है. अपने अंदर के कलाकार को और अच्छा बनाना है.
आप के कैरियर की शुरुआत फिल्म ‘जिस्म’ से सैक्स सिंबल के रूप में हुई थी, फिर आप ने कौमेडी, ऐक्शन और गंभीर फिल्में भी कीं. क्या यह बदलाव आसान था?
यह सच है कि मैं फिल्मों में सैक्स सिंबल के रूप में आया था. आज भी ज्यादातर लोग मुझे सैक्स सिंबल के रूप में ही देखते हैं. लेकिन दर्शकों ने मुझे फिल्म ‘जिस्म’ के बाद ‘दोस्ताना’, ‘धूम’, ‘न्यूयौर्क’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘शूट आउट एट वडाला’ जैसी फिल्मों में भी पसंद किया. जब मैं ने फिल्म ‘मद्रास कैफे’ बनाई, तो बौलीवुड के फिल्मकारों की नजर मुझ पर गई और उन्हें मेरे टैलैंट पर भरोसा हुआ.