लगभग पचास साल बाद 2013 में ‘‘आस्कर अवार्ड’’ में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्म ‘‘जिंदा भाग’’ के निर्देशक फरजाद इस बात से गौरवान्वित हैं कि उन्हे पुनीत गोयंका और शैलजा केजरीवाल की टीम ने ‘‘जील फार युनीटी’’ के लिए पाकिस्तानी फिल्मकार के रूप में फिल्म बनाने के लिए चुना. ‘‘जील फार यूनीटी’’ का मकसद भारत व पाकिस्तान के बीच शांति, अमन, चैन का सौहाद्रपूर्ण वातावरण पैदा  करना है. ‘‘जील फार यूनीटी’’ के तहत 15 मार्च को वाघा बार्डर, सरहद रेस्टारेंट और अमृतसर में आयोजित समारोहों में शिरकत करने के लिए दूसरे पांच पाकिस्तानी फिल्मकारों के साथ मीनू फरजाद की जोड़ी के फरजाद को पहली बार वाघा बार्डर के रास्ते भारत आने का मौका मिला. मीनू फरजाद ने संयुक्त रूप से ‘‘जील फार यूनीटी’’ के तहत 6 पाकिस्तानी फिल्मकारों द्वारा बनायी गयी फिल्मों में से एक फिल्म ‘‘जीवन हाथी’’ का निर्देशन किया है. जबकि फिल्म के निर्माता मीनू गौड़ के पति मजहर जैदी हैं.

यूं तो ‘‘आस्कर’’ अवार्ड के बाद भारत के गोवा, कलकत्ता, केरला व धर्मशाला के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘‘जिंदा भाग’’ न सिर्फ प्रदर्शित की गयी थी, बल्कि सराही भी गयी थी. पर तब फिल्म के साथ इसके निर्माता मजहर जैदी ही आए थे. भारत के कई फिल्म फेस्टिवल में जिस तरह से फिल्म ‘‘जिंदा भाग’’ सराही गयी थी, उसी वजह से शैलजा केजरीवाल ने ‘जील फार यूनीटी’’ के लिए फिल्म बनाने के लिए मजहर जैदी से संपर्क किया था. मजहर जैदी ने मीनू गौड़ व फरजाद से बात कर इस पहल से जुड़ने के लिए हामी भर दी थी.

अमृतसर में अटारी रेलवे स्टेशन से करीब पांच सौ मीटर दूर सरहद रेस्टारेंट में जब फरजाद से हमारी बात हुई तो उन्होने अपने दिल का गुबार निकालते हुए इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि भारतीय दर्शक पाकिसतानी फिल्में नहीं देखता, जबकि भारतीय दर्शक पाकिस्तानी टीवी सीरियलों को काफी पसंद करता है. अपने इसी गम को व्यक्त करते हुए फरजाद ने कहा-‘‘अब पाकिस्तान में भी सिनेमा बढ़ रहा है. नए नए मल्टीप्लैक्स बनाए जा रहे हैं. फिल्म का बजट भी बढ़ रहा है. भारतीय फिल्मों की ही वजह से पाकिस्तानी थिएटर की स्थिति में सुधार हुआ है. भारतीय फिल्में पाकिस्तान में रिलीज होती हैं और अच्छा बिजनेस करती हैं. 2005 में मुर्शरफ सरकार ने पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन का रास्ता साफ किया था. तब से पाकिस्तानी सिनेमा में भी बदलाव आना शुरू हुआ. अब पाकिस्तानी थिएटर मालिक चाहते हैं कि उनके थिएटर में भारतीय फिल्में प्रदर्शित हों, इससे उन्हे अच्छा बिजनेस मिलता है. लेकिन हमें भारत में सिनेमा के वितरण व प्रदर्शन की कोई जानकारी नहीं है. इस वजह से हमारी फिल्में भारत में प्रदर्शित नहीं हो पाती.

भारत में यदि हम ‘गोवा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ को नजरंदाज कर दें, तो भारत में पाकिस्तानी सिनेमा दिखाने की कोई जगह या सुविधा नहीं है. मजेदार बात यह है कि भारत में पाकिस्तानी टीवी सीरियल काफी बड़ी मात्रा में  देखे जाते हैं, तो फिर पाकिस्तानी फिल्मों से दुराव की बात मेरी समझ से परे है. ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्मों ने पाकिस्तान में बहुत अच्छी कमाई की. पाकिस्तान में तमाम भारतीय कलाकार काफी लोकप्रिय हैं. पाकिस्तान में 1990 में फिल्में बनना लगभग बंद हो गयी थी. पर अब एक बार फिर से पाकिस्तान में फिल्में बनने लगी हैं.’’

पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों के फर्क पर रोशनी डालते हुए फरजाद ने कहा-‘‘हमारे यहां फिल्मों का बजट पांच करोड़ से 25 करोड़ के बीच ही होता है. जबकि भारतीय फिल्मों का बजट सौ करोड़ से 350 करोड़ का होता है. भारतीय फिल्मों में बजट के अनुसार कलाकार लिए जाते हैं और कलाकारों के नाम के अनुरूप ही फिल्में बिजनेस करती हैं. पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. पाकिस्तान में किसी भी कलाकार को लेकर फिल्म बनायी जा सकती है. हमारे यहां टीवी पर काम कर रहे कलाकार काफी लोकप्रिय हैं. अब फवाद खान और अली जफर ने पाकिस्तानी टीवी सीरियलों में अभिनय करना बंद कर दिया है.’’

‘‘जील फार यूनीटी’’से जुड़ने की चर्चा चलने पर फरजाद ने कहा-‘‘फिल्म के निर्माता मजहर जैदी को जी टीवी व जील की तरफ से इस पहल के साथ जुड़ने का आफर मिला, जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया. वास्तव में हम सभी को यह पहल बहुत अच्छी लगी. दो देशों के बीच भाषा, संस्कृति, फिल्मों का आदान प्रदान होते रहना चाहिए. मेरी राय में ‘‘जीवन हाथी’’ के बाद ज्यादा पाकिस्तानी फिल्में भारतीय दर्शकों तक पहुंच सकेंगी.’’

जब हमने उनका ध्यान इस बात की ओर दिलाया कि भारत व पाकिस्तान के बीच कई विवादास्पद मुद्दे चर्चा में बने रहते हैं. तो फरजाद ने कहा-‘‘मुद्दे आते जाते रहेंगे. लेकिन पड़ोसी हमेशा पड़ोसी रहेंगे. कटु सत्य है कि सबसे पहले हर तरह की यातना से कलाकार को ही गुजरना पड़ता है, पर कलाकार ही लोगों को एक दूसरे के करीब लाते हैं.’’

‘‘जील फार यूनीटी’के लिए बनयी गयी फिल्म ‘‘जीवन हाथी’’ की चर्चा चलने पर फनरजाद ने कहा-‘इसमें हमने समाचार चैनल के टीआरपी का जो मसला है, उसे रेखांकित किया है. हमारी फिल्म एक ब्लैक कामेडी है. यह फिल्म मीडिया पर व्यंग करती है. जिसमें मीडिया टीआरपी रेटिंग की दौड़ में जो अमानवीय रूख अख्तियार कर लेती है, उसका जिक्र है. जो शो कर रहे होते है, उन एंकरों और जो लोग शो में आते हैं, वह कैसे मैन्यूप्यूलेशन करते हैं, उसका चित्रण है. फिल्म दोनो को साथ साथ लेकर चलती है. हमारी फिल्म एक डायमेशनल फिल्म नहीं है. फिल्म में हमने इन्हे ब्लैक एंड व्हाइट नहीं दिखाया है. बल्कि बहुत ही इंसानी तौर पर ही इन सभी का चित्रण किया है. यह सभी अच्छे लोग हैं, मगर इन सभी लोगों के अपने जो डायमेंशंस है, जो मजबूरियां हैं. जो मानवीय पहलू हैं, उनका चित्रण है. उनको लेकर हम चले हैं.’’

वह आगे कहते हैं-‘‘फिल्म में हमारे देशस की मशहूर अदाकारा हीना दिलपजीर ने निभाया है. वह गेम शो की होस्ट यानी कि संचालक हैं. मेरी सह निर्देशक हैं मीनू गौड़. हम दोनो ने एक साथ इससे पहले ‘जिंदा भाग’ बनायी थी. अब हमारी यह दूसरी फिल्म है. इसके अलावा फिल्म ‘जीवन हाथी’ में नसिरूद्दीन शाह चैनल के मालिक बने हैं. उनका किरदार बहुत ही ज्यादा एक्जरेटेड है. उसकी अपनी रूचि या उसके अपने क्या इंटरेस्ट हैं, वह नजर आएगा. यह बहुत मुश्किल किरदार निभाया है.’’

पाकिस्तान में सिनेमा पर कई तरह की सरकारी बंदिशों के सवाल पर फरजाद ने कहा कि हर देश में कलाकार को बंदिशों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने  कहा-‘‘ऐसा नही है. अब पाकिस्तान में भी अलग अलग विषयों पर फिल्में बन रही हैं. अब नारी स्वतंत्रता को लेकर भी फिल्में बन रही है. कलाकार को किसी न किसी सूरत में भारत हो या पाकिस्तान हो, बंदिश का सामना करना ही पड़ता है. यह कहना गलत होगा कि किस देश में कम या ज्यादा बंदिशें हैं. केबल और डीवीडी पर तथा इंटरनेट की वजह से भी लोग हर तरह की फिल्में व फिल्मों में हर तरह के सीन देख ही लेते हैं.’’

(शांतिस्वरूप त्रिपाठी, सरहद रेस्टारेंट, अटारी, अमृतसर से लौटकर)

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...