बौलीवुड में माना जाता है कि जो दिखता है, वही बिकता है. इसी के चलते यहां हर कलाकार खुद ही अपनी प्रशंसा करते हुए नजर आता है. लोग हमेशा सूर्खियों में रहते हैं. हर कलाकार हौव्वा खड़ा करता रहता है. मगर कुछ कलाकार प्रचार से दूर अपने काम को अंजाम देने में ही लगे रहते हैं. ऐसी ही एक अदाकारा हैं- औरोशिखा दे. कई दिग्गज फिल्म निर्देशकों और कलाकारों के साथ काम करने के बाद औरोशिखा दे इन दिनों ब्रिटेन में रह रही फिल्मकार स्वाती भिसे की अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘द वारियर क्वीन  आफ झांसी’’ को लेकर चर्चा में हैं. यह फिल्म ‘झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’ पर है, जिसमें औराशिखा दे ने झलकारी बाई का किरदार निभाया है.

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश..   

किस वजह से आपने अभिनय को कैरियर बनाने की सोची?

मैं मूलतः बंगाली हूं. बंगलोर में रहती हूं. मेरे पापा आर्मी में थे. इसलिए हम कई शहरों में रहे. मेरा जन्म आसाम में हुआ. जब मैं सातवीं कक्षा में थी, तब मेरे पापा का तबादला बंगलोर हो गया. जब मैं दसवीं कक्षा में और मेरी बड़ी बहन 12वीं कक्षा में थी, तो पापा ने रिटायरमेंट ले लिया था. उसके बाद से हम लोग बंगलोर में ही सेटल हो गए. मेरी पूरी पढ़ाई बेंगलुरु में ही हुई है. मैंने माउंट कौलेज से ग्रेजुएशन किया. उसके बाद पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से अभिनय का प्रशिक्षण हासिल किया.

AUROSHIKHA DEY

पुणे फिल्म संस्थान जाने की बात आपके दिमाग में कैसे आयी?

मैं हमेशा से डांसर बनना चाहती थी. मुझे डांस करने का बहुत शौक है. मैंने तीसरी कक्षा से ही कत्थक सीखा और जब बंगलोर में थी, तो मैंने कत्थक और शामक डावर से आधुनिक नृत्य सीखा. जब मैं कौलेज में थी, तब मैं ड्रामैटिक एसोसिएशन का हिस्सा थी. हम लोग नाटक वगैरह में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते थे. लेकिन तब भी मुझे नृत्य का शौक था. जिन दिनों मेरी परीक्षाएं चल रही थीं, उन्ही दिनों वहां पर ‘विवा’ का एक बैंड की तरफ से कार्यक्रम हुआ था. चैनल वी पर 4 से 5 लड़कियों का बैंड हुआ करता था. वह लोग बंगलोर आए हुए थे. तीन दिन बाद ही मेरी मैथ्स@गणित की परीक्षा थी. इस बैंड के लोग पंपलेट बांट रहे थे. हमारे कौलेज की कई लड़कियों ने फार्म भरा, तो मैंने भी भर दिया. फिर मैं बैठकर पढ़ाई कर रही थी, कि अचानक मुझे फोन आया कि आप लक्की विनर हैं और हमें टीजीआई में मिलने के लिए बुलाया. वहां पर एक कार्यक्रम था. उन्होंने गाड़ी भेजी थी, मेरे पापा मेरे साथ गए थे. उस दिन मेरे पापा भीड़ में खड़े थे और मैं ‘विवा बैंड’ के साथ खड़ी थी. मेरे पापा की आंखों में उस वक्त खुशी की चमक देखकर मैंने सोच लिया कि मुझे इसी क्षेत्र में कुछ करना है. मेरे पापा ने सुना कि भीड़ में लोग कह रहे थे कि यह लड़की कितनी खुशनसीब है कि उन लोगों के साथ गई है. तब मेरे दिमाग में मैंने सोचा कि मैं ड्रामा में हूं, डांसर भी हूं. तो मैं अपनी डांस की व अभिनय की प्रतिभा का उपयोग कर नाम कमाउंगी. मेरा मानना है कि नृत्य में भी चेहरे पर भाव तो लाने ही होते हैं. यानी कि एक्टिंग व डांसिंग में समानता है. इस कारण मैं अभिनेत्री बन गयी.

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