तेजी से बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है. देश व समाज ने काफी प्रगति कर ली है. कई अत्याधुनिक मनोरंजन के साधन आ गए हैं. मगर इंसानी स्वभाव, उसके अंदर के लालच और उस लालच की वजह से उपजने वाली कुंठा आदि आज भी ज्यों का त्यों है. इसी मानवीय स्वभाव को हास्य व व्यंग के साथ फिल्म ‘‘2 बैंड रेडियो’’ में लेकर आ रहे हैं फिल्म निर्माता व अभिनेता राहत काजमी तथा निर्देशक सकी शाह.
बदले हुए वक्त का ही तकाजा है कि वर्तमान पीढ़ी एफएम रेडियो से वाकिफ है, मगर वह सत्तर के दशक के रेडियो की हकीकत से वाकिफ नही है. जबकि सत्तर के दशक में घर पर रेडियो बजाने के लिए स्थानीय पोस्ट आफिस से रेडियो का इस्तेमाल करने के लिए ‘रेडियो लाइसेंस’ लेना पड़ता था. 70 के दशक की ‘रेडियो लाइसेंस बुक’ आज संग्रहणीय मानी जाती है.
उल्लेखनीय है कि पोस्ट आफिस से रेडियो लाइसेंस बुक को हासिल करना उतना ही मुश्किल काम हुआ करता था, जितना कि आज के समय में अपने आटोमोबाइल के डीलर के लिए आरसी बुक पाना होता है. उसी ‘‘रेडियो लाइसेंस’’ के रोचक दौर को फिल्मकार राहत काजमी ने फिल्म ‘‘2 बैंड रेडियो’’ में जीवंत किया है. जिसका वर्ल्ड प्रीमियर ‘‘यू के एशियन फिल्म फेस्टिवल’’ में होगा.
फिल्मकार राहत काजमी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. उन्होंने सबसे पहले कश्मीर की पृष्ठभूमि में फिल्म ‘आइडेंटिटी कार्ड’’ का निर्माण व निर्देशन कर विश्व स्तर पर शोहरत बटोरी थी. इस फिल्म में इस बात का चित्रण था कि कश्मीर मे आईडेंटिटी कार्ड का जो प्रचलन है, उसके चलते वहां के निवासियों को किस तरह की समस्याओं से हर दिन जूझना पड़ता है.