1989 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से अभिनय की पढ़ाई कर मुंबई पहुंचे अभिनेता संजय मिश्रा ने काफी संघर्ष किया. कुछ टीवी सीरियलों में छोटे किरदार निभाकर अपने अभिनय की ऐसी पताका फहराई की 1995 से वह फिल्मों में व्यस्त हो गए. फिल्मों में हास्य कलाकार के रूप में उनकी पहचान बनीं. मगर वह फिल्म दर फिल्म अभिनय के नित नए आयाम रचते रहे.

2015 में आयी फिल्म ‘‘आंखों देखी’’ में गंभीर किरदार निभाकर अपने अभिनय को एक नया आयाम दिया. उसके बाद वह एक तरफ हास्य किरदार निभाते रहे तो दूसरी तरफ ‘कड़वी हवा’ सहित कुछ फिल्मों में गंभीर किरदार निभाकर लोगों को आश्चर्य चकित करते रहे. अब उन्होंने निर्देशक जसपाल सिंह संधू और राजीव बरनवाल की फिल्म ‘‘वध’’ में एक बुजुर्ग का किरदार निभाकर अपने अभिनय में एक नया अध्याय जोड़ा है.

संजय मिश्रा का दावा है कि वह इस किरदार के लिए बने ही नही है. अब तक इस तरह का किरदार निभाया भी नही है. मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘‘वध’’ में उनका किरदार शंभूनाथ मिश्रा ‘‘मनोहर कहानियां’’ पढ़ने का शौकीन है, जिस पत्रिका को पढ़ने का संजय मिश्रा को निजी जिंदगी में भी शौक रहा है.

 

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हाल ही में संजय मिश्रा से उनके घर पर हुई एक्सक्लूसिव बातचीत इस प्रकार रही. . .

आपका तीस वर्ष का एक लंबा कैरियर रहा है. इस पूरे करियर को आप किस तरह से देखते हैं.

-30 साल सिर्फ करियर ही नहीं था, जिंदगी भी थी. जो अपनी जिंदगी है,जिसमें दोस्त है, भाई है, मां है, बाप है, आप हंै, घर का किराया है, मकान में बाई को भी लगाना है. कैसे कैसे आप अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं और साथ में कैरियर भी चलता रहा है. लेकिन यह सच है कि हम कलाकारो कों ही नही हर इंसान को उसके कैरियर के माध्यम से ही पहचाना जाता है. लेकिन उसके बाद की जो जिंदगी होती है,वह इंसान जीता है. मुझे इन तीस वर्षों ने बहुत कुछ सिखाया. किसी से जुड़ा होना सिखाया. किसी से मिलना सिखाया. किसी से लड़ना सिखाया, किसी से प्यार करना सिखाया. आपने आपको पहचानना सिखाया.

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