मुंबई के धरावी इलाके के स्ट्रीट रैपर्स के संघर्ष की कहानी के साथ उनकी प्रेम कहानी को उकेरने वाली फिल्म ‘‘गली ब्वाय’’ में फिल्मकार जोया अख्तर ने मुस्लिम समाज व युवाओं को लेकर कुछ मुद्दे भी उठाए हैं, मगर फिल्म अपना असर छोड़ने में विफल रहती है. पश्चिमी सभ्यता में रचे बसे, क्लब संस्कृति का हिस्सा बन चुके अंग्रेजीदां दर्शकों को छोड़ इस फिल्म के साथ अन्य दर्शक खुद को जोड़ नहीं सकता. कहानी के स्तर पर भी फिल्म काफी कमतर है. फिल्म मुंबई के एक रैपर की सत्यकथा है, मगर फिल्मकार यह भूल गए कि रैपर्स संस्कृति से आम इंसान वाकिफ नही है.

gully boy

फिल्म‘‘गली ब्वाय’’की कहानी के केंद्र में मुंबई का धारावी इलाका और धरावी में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार का युवक मुराद (रणवीर सिंह) है. गरीबी और सामाजिक बहिष्कार से जूझते मुराद का सपना एक मशहूर रैपर बनने का है. वह अपने विचारों को कागज पर उतारता रहता है. पर वह अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान देता है. उसे धरावी के ही एक अन्य मुस्लिम परिवार की जिंदा दिल लड़की सफीना (आलिया भट्ट) से प्यार है. सफीना के पिता डाक्टर हैं और सफीना भी डाक्टरी की पढ़ाई कर रही है. सफीना का मानना है कि उसके लिए उसकी जिंदगी में सब कुछ सिर्फ मुराद है. इसी बीच मुराद के पिता आफताब (विजय राज) अपना दूसरा व्याह कर मुराद के लिए नई मां (अमृता सुभाष) भी ले आते हैं. फिर मुराद के पिता एक हादसे में चोटिल हो जाते हैं,तब मजबूरन मुराद को अपने पिता की जगह एक ड्रायवर के रूप में नौकरी करनी पड़ती है. मुराद और उसके पिता के बीच जमती ही नही है. मुराद की जिंदगी में बदलाव तब आता है, जब एक दिन वह एमसी शेर उर्फ श्रीकांत (सिद्धांत चतुर्वेदी) को कौलेज के लड़कों के साथ रैप करते देखता है. फिर मुराद,एमसी शेर से मिलता है. एमसी शेर, मुराद से कहता है-‘‘अगर दुनिया में सब कम्फर्टेबल होते तो रैप कौन करता.’’ उसके बाद मुराद व एमसी शेर एक साथ टीम बनाकर रैप करने लगते हैं. मुराद को रैपर के रूप में नया नाम ‘गली ब्वाय’मिलता है. फिर अमरीका से आई साई नामक म्यूजिक प्रोग्रामर मुराद से मिलती है और उसके साथ एक अलबम बनाने पर काम करती है, जिसके चलते मुराद व सफीना के बीच गलत फहमी भी पैदा होती है. अंततः मशहूर रैपर ‘नैस’भारत आने वाले होते हैं और तब एक प्रतिस्पर्धा होती है, जिसमें अंततः गली ब्वाय उर्फ मुराद विजेता बनते हैं.

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