देशभक्ति वाली फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ का शीर्षक फिल्म ‘राजी’ के लिए लिखे गए गुलजार के गाने की एक लाइन पर रखा गया है. फिल्म अंगरेजों की गुलामी से देश को आजाद कराने पर है. फिल्म की कहानी बताती है कि देश की आजादी में सिर्फ गांधी, नेहरू का ही योगदान नहीं है बल्कि यह आजादी हमें उन गुमनाम नायकों की हिम्मत और हौसलों से भी मिली है जिन्हें आज देश भूल चुका है. उन गुमनाम नायकों ने अपनेअपने इलाकों में अंगरेजों के अत्याचारों का मुकाबला किया, ठीक उसी तरह जैसे आजकल ‘आप’ के मुखिया अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं.

24 वर्षों पहले दिवंगत हुई कांग्रेस की एक नौजवान कार्यकर्ता उषा मेहता ने आजादी की इस लड़ाई को जारी रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज लोग भले ही उषा मेहता को भूल चुके हैं परंतु उस वक्त अंगरेजी शासन में बतौर जज जैसे ओहदे पर बैठे हरि मोहन (सचिन खेडेकर), जो अंगरेजों का गुणगान करते थकते नहीं थे, की बेटी उषा मेहता (सारा अली खान) देश की खातिर अपना घर छोड़ कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ती है. देर से ही सही, भारत सरकार ने 1998 में उषा मेहता को पद्म विभूषण से सम्मानित किया. फिल्म की कहानी 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की है, जब इस आंदोलन को दबाने के लिए अंगरेजी हुकूमत ने गांधी और नेहरू समेत कांग्रेस के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया था ठीक उसी प्रकार जैसे आजकल हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं. वे कांग्रेस के साथसाथ अन्य विपक्षी पार्टियों के लीडरों को ईडी का भय दिखा कर जेलों में ठूंस रहे हैं.

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