धर्मेंद्र और उस के बेटों की फिल्म ‘यमला पगला दीवाना-2’ उन की पिछली फिल्म का सीक्वल है. इस फिल्म में कुछ भी नया नहीं है. पूरी फिल्म मैड कौमेडी से भरी पड़ी है. सारे कलाकार पागलपंती करते नजर आते हैं. अपनी इस फिल्म के बारे में खुद धर्मेंद्र का कहना है कि यह फिल्म उन लोगों के लिए है जिन्हें पागलपन से परहेज नहीं है. अब भला ऐसी पागल बना देने वाली फिल्म देखने जाने की क्या तुक है? फिर भी अगर आप फिल्म देखने जाना चाहते हैं और इस तिगड़ी की पागलपंती को देखना चाहते हैं तो अपने दिमाग को घर पर रख कर जाएं.

पिछली फिल्म की कहानी में परमवीर (सनी देओल) अपने पिता और भाई को ढूंढ़ने कनाडा से वाराणसी आता है. जबकि इस बार वह स्कौटलैंड में है और आईपैड के जरिए अपने पिता व भाई से चैट करता है.

इस फिल्म की कहानी स्कौैटलैंड से शुरू होती है जहां सनी देओल की ऐंट्री होती है. अगले ही सीन में कैमरा बनारस के एक घाट का सीन दिखाता है जहां यमला बाबा का भेष धारण किए धरम सिंह (धर्मेंद्र) और उस के छोटे बेटे गजोधर (बौबी देओल) को लोगों को बेवकूफ बनाते हुए दिखाया जाता है. वहीं घाट पर गजोधर की मुलाकात लंदन के एक बिजनैसमैन सर योगराज खन्ना (अन्नू कपूर) की बेटी सुमन (नेहा शर्मा) से होती है. योगराज खन्ना को मालदार आसामी समझ यमला बाबा उसे चूना लगाने के बारे में सोचता है. वह भेष बदल कर खुद को ओबेराय सेठ बता कर योगराज का दिल जीत लेता है और गजोधर के साथ लंदन पहुंच जाता है. वहां वह अपने बड़े बेटे परमवीर को योगराज खन्ना के मैनेजर के रूप में देख कर चौंक जाता है. धरम सिंह सुमन की शादी गजोधर के साथ तय कर देता है लेकिन जैसे ही धरम सिंह को पता चलता है कि सुमन योगराज की सगी बेटी नहीं है बल्कि रीत (क्रिस्टीना अखीवा) उस की अपनी बेटी है तो वह गजोधर को?भेष बदल कर उसी के जुड़वां भाई के रूप में पेश करता है ताकि वह रीत की शादी उस से करा सके. अंत में झूठ का परदाफाश होता है और गजोधर को सुमन तथा परमवीर को रीत मिल जाती है.

फिल्म की इस कहानी में एक औरंगउटान भी है. इस जानवर ने दर्शकों को खूब हंसाया है और कमजोर कहानी को आगे बढ़ाया है.

पूरी फिल्म देओल तिगड़ी के कंधों पर टिकी है. धर्मेंद्र की मैड कौमेडी कुछ अच्छी है. सनी देओल ने जम कर ऐक्शन सीन दिए हैं. क्लाइमैक्स में सूमो पहलवानों से लड़ने में उस ने गजब की फुर्ती दिखाई है. अन्नू कपूर ने निराश किया है.

फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी अनुपम खेर और जौनी लीवर हैं. एक डौन की भूमिका में अनुपम खेर जोकर ज्यादा लगा है. जौनी लीवर भी दर्शकों को हंसाने में नाकाम रहा है. पूरी फिल्म में वह चीखताचिल्लाता नजर आया है. नेहा शर्मा और क्रिस्टीना अखीवा दोनों सुंदर लगी हैं, मगर क्रिस्टीना नेहा पर भारी पड़ी है.

फिल्म का निर्देशन सामान्य है. लगता है निर्देशन में देओल तिगड़ी ने अपनी मनमानी की है. पिछली फिल्म के मुकाबले संगीत कमजोर है. टाइटल गीत ही कुछ अच्छा बन पड़ा है. फिल्म के सैट और लोकेशनें अच्छी हैं. छायांकन काफी अच्छा है.

 

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