यह फिल्म हर किसी की समझ में आने वाली नहीं है. इस फिल्म में टाइम मशीन की कल्पना की गई है और कहा गया है कि इंसान चाहे तो समय से 1 या 2 दिन आगे चल सकता है. इसे समझाने के लिए निर्देशक ने टाइम ट्रैवल रिसर्च की बात की है कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है और खुद भी अपनी धुरी पर घूमती है, जिस से समय का पता चलता है. लेकिन जब कभी भूकंप आता है या सूनामी आती है तो समय का यह चक्र टूटता है. इस से समय के चक्र में कुछ सैकंड का अंतर आ जाता है. यही अंतर सालों बाद बढ़तेबढ़ते 12 घंटे तक का हो जाता है. यदि कोई व्यक्ति इस टाइम टूटने के दौरान पैदा हुआ हो तो वह टाइम ट्रैवल कर के 1 या 2 दिन आगे जा सकता है, उसे आगे होने वाली घटनाओं के बारे में पता चल जाता है.

भविष्य में झांकने की कल्पना करना सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन यह असंभव है. बौलीवुड में टाइम ट्रैवल पर कई फिल्में बन चुकी हैं. ‘श्री’ उन फिल्मों से बहुत पीछे है.

कहानी श्री (हुसैन कुवाजेरवाला) नाम के एक नौजवान की है जो एक टैलीकौम कंपनी में अकाउंटैंट है. एक दिन कंपनी का मालिक उसे एक औफर देता है जिस के बदले उसे 20 लाख रुपए देने तय होते हैं. बदले में उसे 12 घंटे देने हैं. वह तैयार हो जाता है. उसे कौफी में बेहोशी की दवा मिला कर पिलाई जाती है. जब उसे होश आता है तो देखता है कि उसे एक व्यक्ति ने कैद किया हुआ है. वह भाग निकलता है. तभी उसे पता चल जाता है कि कंपनी के मालिक ने उसे एक तकनीक के सहारे समय से 2 दिन आगे भेज दिया है. अब श्री के साथ समय की 2-2 घटनाएं, एक वर्तमान की और एक 2 दिन आगे की, चलने लगती हैं. उसे पता चल जाता है कि पुलिस कमिश्नर और वैज्ञानिक की हत्याएं होने वाली हैं. वह न सिर्फ आगे होने वाली घटनाओं को रोकता है बल्कि वापस वर्तमान में आ कर असली अपराधी को भी पकड़वाता है.

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