Indian Film Censorship : भारतीय फिल्में जब जाति, धर्म या सामाजिक न्याय जैसे संवेदनशील मुद्दों को छूती हैं तो सैंसर बोर्ड की भूमिका विवादों के केंद्र में आ जाती है. हाल के वर्षों में ‘फुले’, ‘संतोष’, ‘धड़क 2’ और ‘चल हल्ला बोल’ जैसी फिल्मों को सैंसरशिप या प्रतिबंध का सामना करना पड़ा, जबकि हिंसा और अश्लीलता से भरपूर फिल्में आसानी से प्रमाणन पा जाती हैं. यह सैंसर बोर्ड का राजनीतिकरण है. ऐसे में क्या फिल्म इंडस्ट्री को अपनी स्वयं की प्रमाणन व्यवस्था बनानी चाहिए?

हालिया रिलीज करण जौहर निर्मित फिल्म ‘धड़क 2’ सैंसर के चंगुल से बालबाल बची. सैंसर बोर्ड ने इस फिल्म को लंबे समय तक लटका कर रखा और उस वक्त कई संवाद व कई दृश्यों पर कैंची चलने की संभावनाओं की बात होती रही.

फिल्म की कहानी के अनुसार एक दलित लड़का अपने कालेज की ब्राह्मण लड़की से प्रेम करने लगता है. लड़की ही सब से पहले उस का साथ देती है. दोनों बांहों में बांहें डाल घूमने से ले कर चुंबन तक करते मिल जाते हैं. निश्चित रूप से यह फिल्म खासतौर पर तथाकथित उच्च जाति के अनेक लोगों की भावनाओं को आहत करती है. फिल्म का कथानक इसी तरह की भावनाओं को उभारता है.

ब्राह्मण लड़की अपनी बड़ी बहन की शादी में इस दलित लड़के को भी निमंत्रित करती है तब समारोह के बीच लड़की का पिता इस दलित लड़के को कोने में ले जा कर सम?ाता है कि उसे उन की बेटी से दूर रहना चाहिए. तभी लड़की का चचेरा भाई और उस के दोस्त वहां पहुंच कर इस लड़के की जबरदस्त पिटाई करने के साथ ही उन में से एक लड़का, इस दलित जाति के लड़के पर पेशाब भी कर देता है.

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