हिंदी फिल्मों में पहले पुरुष किरदार ही गालियां बकते थे लेकिन अब महिला किरदारों से गालियां बकवा कर या छिछोरे संवाद बुलवा कर फिल्म निर्देशक दर्शकों का टेस्ट बदलने की कोशिश कर रहे हैं. हाल ही में रिलीज फिल्म ‘फुकरे’ को ही देख लें. रिचा चड्ढा ने जम कर गालियां दी हैं.

इस से पहले ‘आमिर’ और ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी फिल्में बनाने वाले निर्देशक राजकुमार गुप्ता ने इस फिल्म को फनी बनाने के चक्कर में गोलगोल घुमाया है. फिल्म की कहानी में क्या होने वाला है, यह 10 मिनट में ही पता चल जाता है.

संजू (इमरान हाशमी) और नीतू (विद्या बालन) पतिपत्नी हैं. संजू तिजोरियां तोड़ने में माहिर है. पंडित (राजेश शर्मा) और इदरीस (नमित दास) उसे बैंक रौबरी का औफर देते हैं. तीनों बैंक का लौकर तोड़ कर करोड़ों रुपए ले उड़ते हैं. पंडित और इदरीस पैसे छिपाने के लिए सूटकेस संजू को दे देते हैं. संजू की याददाश्त चली जाती है. 3 महीने बाद जब पंडित व इदरीस अपना हिस्सा मांगते हैं तो संजू उन्हें नहीं पहचानता. पंडित व इदरीस संजू के घर डेरा जमा लेते हैं. संजू पैसों से भरे सूटकेस को ढूंढ़ने की कोशिश करता है परंतु उसे कुछ भी याद नहीं आता. अंत में डौन जैसा एक गुंडा पैसे न मिलने पर चलती लोकल टे्रन में पहले पंडित व इदरीस को मार डालता है, फिर संजू और नीतू को भी गोली मारता है. जातेजाते उस गुंडे के कानों में संजू के सैलफोन पर आ रही उस की मां की आवाज सुनाई पड़ती है कि बेटा, घर आ कर अपना सूटकेस ले जाओ. लेकिन तभी उस का पैर फिसलता है और संजू के हाथ में पकड़ा फोर्क उस के गले में घुस जाता है और वह मर जाता है. घायल अवस्था में भी संजू और नीतू मुसकरा देते हैं. यहीं फिल्म का द एंड हो जाता है. यानी नायक ने सभी किरदारों के साथसाथ दर्शकों को भी घनचक्कर बना दिया.

फिल्म की यह कहानी कहींकहीं आप को सिर धुनने पर मजबूर कर देगी. नायक का 2 गुंडों से पूरी फिल्म में पिटते रहना, इदरीस का अंडरवियर पहन कर घूमते रहना और फोन पर सैक्सी बातें कर उत्तेजना से भर जाना, करोड़ों की बैंक डकैती के बाद भी पुलिस का गायब होना, तिजोरी का आसानी से खुल जाना आदि बातें आप का सिर घुमा सकती हैं.

निर्देशन साधारण है. इमरान हाशमी ने किसर की इमेज से हट कर अभिनय किया है. विद्या बालन ने कौमेडी करने की कोशिश की है. गीतसंगीत साधारण है.

 

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