तलवार

यह फिल्म सन 2008 में हुए आरुषि हत्याकांड की गहराई से छानबीन करती नजर आती है. हालांकि घटना को घटे 7 साल बीत चुके हैं. आरुषि के मातापिता तलवार दंपती जेल में हैं. लोग इस हत्याकांड को लगभग भूल चुके हैं, फिर भी मेघना गुलजार की यह ‘तलवार’ पुलिस और जांच एजेसियों के काम करने के ढंग पर से पर्दा उठाती है. अकसर हमारे देश की पुलिस या तो बिना तहकीकात किए किसी को भी अंदर कर देती है या फिर केस की छानबीन करते हुए ऐसे लूपहोल्स छोड़ देती है कि अपराधी साफ बच निकलता है. पुलिस अधिकारी अपनी कुरसी बचाने के लिए अपने मन से अपराध का लेखाजोखा बना लेते हैं. ‘तलवार’ में मेघना गुलजार ने कब, क्या, कैसे हुआ, इसे सिलसिलेवार दिखाया है. उस ने एक तरह से दोबारा एकएक सीन का पोस्टमार्टम सा करने की कोशिश की है. उस ने सोए जिन्न को जगाने की कोशिश की है. जब यह केस सीबीआई भी नहीं सुलझा पाई, जांच एजेंसियों के पल्ले भी कुछ नहीं पड़ा तो फिर मेघना गुलजार को इसे पिक्चराइज करने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

इस फिल्म के लिए मेघना ने लोगों से डिबेटें कराईं और अखबार में खूब प्रचार किया लेकिन फिर भी क्या वह किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकी? क्या वह बता सकी कि असली हत्यारा कौन है? इस का जवाब है-नहीं. आज भी यह पता नहीं चल सका है कि 7 साल पहले हुए 2 कत्ल (एक आरुषि का, एक हेमराज का) किस ने किए थे. फिल्म की कहानी एक मातापिता रमेश टंडन (नीरज काबी) और नूतन टंडन (कोंकणा सेन) द्वारा अपनी बेटी श्रुति (आयशा परवीन) और नौकर खेमपाल की हत्या का केस सीबीआई को सौंपे जाने से शुरू होती है. इस का जिम्मा सीबीआई अफसर अश्विनी (इरफान खान) को सौंपा जाता है, जो अपनी पत्नी (तब्बू) से तलाक के केस में उलझा है. इस कहानी में सारी की सारी बातों को ठीक उसी तरह दिखाने की कोशिश की गई है जिस तरह घटनाएं घटी थीं और पुलिस रिकौर्ड में दर्ज हुई थीं. मसलन, तलवार दंपती के घर सफाई करने वाली मेड का पहले आरुषि की लाश को देखना, पुलिस का वहां पहुंचना, छत पर हेमराज की लाश का मिलना, आननफानन पुलिस का तलवार दंपती को कसूरवार साबित करना आदि. सीबीआई अफसर अश्विनी तेजतर्रार और अपनी सूझबूझ के लिए जाना जाता है. जांच में एसीपी वेदांत मिश्रा (सोहम शाह) उस का सहायक है. पूछताछ के लिए दोनों डाक्टर रमेश के कंपाउंडर कन्हैया (सुमित गुलाटी) को उठा लेते हैं और उस का नारको टैस्ट करते हैं. टैस्ट में पता चलता है कि उस ने और उस के दोस्त ने मिल कर श्रुति की हत्या की थी.

उधर अश्विनी का बौस घोषणा कर देता है कि केस सुलझ गया है. जांच की पूरी तसवीर बदल जाती है. कन्हैया और उस का दोस्त बेकसूर करार दिए जाते हैं और रमेश और नूतन को जेल भेज दिया जाता है. जांच एजेंसियों का मतभेद उभरता है और मामला उलझता चला जाता है, जो हकीकत में आज तक नहीं सुलझ पाया है. मेघना गुलजार ने घटनाओं को किसी चार्जशीट की तरह नया किया है. उस ने दिखाने की कोशिश की है कि सीबीआई अफसर अश्विनी किस तरह विभागीय प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या का शिकार होता है और नए जांच अधिकारी किस तरह उस की जांच को नए सिरे से नकार देते हैं. निर्देशिका ने न्यायिक प्रक्रिया को आंशिक रूप से ही छुआ है. फिल्म में दिखाई गई घटनाएं रहस्यमय ढंग से अपने रंग बदलती रहती हैं. निर्देशिका ने पूरा घटनाक्रम ज्यों का त्यों बयां किया है. फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह जांच अधिकारी सीबीआई अफसर अश्विनी को हटा कर जांच का रुख ही मोड़ देते हैं. फिल्म भले ही कातिल का पता नहीं बताती परंतु पुलिस की कार्यप्रणाली पर उंगली जरूर उठाती है कि हमारी पुलिस कितनी लापरवाह है और हमारी जांच एजेंसियां किस तरह चमचागीरी पसंद करती हैं. फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है.

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सिंह इज ब्लिंग

अक्षय कुमार की यह ऐक्शन कौमेडी फिल्म उसी की पिछली फिल्म ‘सिंह इज किंग’ जैसी है, मगर उस की सीक्वल नहीं है. निर्देशक प्रभुदेवा ने फिल्म में जो मसाला भरा है उस का जायका दर्शक पहले चख चुके हैं. उस ने अक्षय कुमार को ‘सिंह इज किंग’ के किरदार से थोड़ा हट कर दिखाने की कोशिश जरूर की है लेकिन लुक में यह किरदार वैसा ही लगा है. उस ने ऐक्शन सीन भी वैसे ही किए हैं जैसे प्रभुदेवा की पिछली फिल्म ‘राउडी राठौड़’ में किए थे. प्रभुदेवा ने अपनी इस फिल्म में एमी जैक्सन को बतौर नायिका लिया है. वह काफी सुंदर और सैक्सी लगी है, मगर उस का हिंदी में न बोल पाना अखरता है. हां, उस ने जबरदस्त ऐक्शन कर के दर्शकों को खुश जरूर कर दिया है. ऐक्शन सीन करते वक्त वह अक्षय कुमार पर भारी पड़ी है. उस ने अक्षय के किरदार रफ्तार सिंह से ज्यादा रफ्तार दिखाई है.

फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है. रफ्तार सिंह (अक्षय कुमार) पंजाब के एक गांव में रहता है. उसे अंगरेजी बिलकुल नहीं आती. हर वक्त वह दोस्तों के साथ मौजमस्ती करता रहता है. उस की हरकतों से तंग आ कर उस का पिता (योगराज सिंह) उसे अपने दोस्त कृपाल सिंह (प्रदीप रावत) के पास गोआ में नौकरी करने के लिए भेजता है. कृपाल सिंह का गोआ में कैसीनो है. उधर रोमानिया में एक माफिया डौन की बेटी सारा (एमी जैक्सन) पर एक अन्य डौन मार्क (के.के. मेनन) का दिल आ जाता है. वह उस से शादी करना चाहता है. सारा का पिता उसे अपने दोस्त कृपाल सिंह के पास गोआ भेज देता है. कृपाल सिंह सारा की जिम्मेदारी रफ्तार सिंह को सौंप देता है. रफ्तार सिंह मन ही मन सारा से प्यार करने लगता है. चूंकि सारा को हिंदी नहीं आती, इसलिए वह एक ट्रांसलेटर एमिली (लारा दत्ता) को रख लेता है ताकि वह सारा के दिल की बात जान सके लेकिन एमिली अकसर गलत ट्रांसलेट कर के उसे कन्फ्यूज करती है. रफ्तार जान जाता है कि सारा यहां अपनी मां को खोजने आई है. तभी एक दिन मार्क के गुंडे वहां पहुंच कर सारा और रफ्तार पर हमला कर देते हैं. रफ्तार सारा को ले कर अपने गांव पंजाब आ जाता है. रफ्तार के घर वाले सारा को रफ्तार की पसंद जान कर उस से बहू जैसा व्यवहार करते हैं. सारा वापस रोमानिया चली जाती है. वहां मार्क उस के पिता पर दबाव डालता है कि वह सारा की शादी उस से कर दे. तभी वहां सारा की मां को ले कर रफ्तार पहुंच जाता है. वह मार्क के आदमियों से निहत्था भिड़ जाता है और उन्हें खत्म कर मार्क को भी मार डालता है. अब सारा रफ्तार सिंह की हो जाती है. यह पूरी फिल्म प्रभु देवा के स्टाइल की है. बात चाहे ऐक्शन की हो या ऐक्ंिटग की या फिर गानों के स्टेटस की, प्रभुदेवा ने ऐसी कहानी का चुनाव किया है जिसे दर्शक पहले भी कई बार देख चुके हैं. फिल्म मनोरंजन करती है. अक्षय कुमार ने कौमेडी भी अच्छीखासी कर ली है. सिख के गैटअप में अक्षय कुमार जंचा भी है लेकिन जो कुछ है, सब जानापहचाना है. फिल्म का क्लाइमैक्स बचकाना है.

फिल्म का निर्देशन कुछ हद तक ठीक है. मध्यांतर से पहले अक्षय कुमार की कौमेडी दर्शकों को हंसाती है. अक्षय कुमार का शेर के साथ खुला घूमना और कौमेडी करना दर्शकों को काफी हंसाता है. उस का ट्रैक्टरों पर चढ़ कर नाचना, ऊंट को नचाना और दोस्तों के संग मस्ती करना दर्शकों को अच्छा लगता है लेकिन मध्यांतर के बाद फिल्म पंजाब और रोमानिया में जा कर कुछ ठंडी पड़ जाती है. लारा दत्ता की ऐक्ंिटग जबरदस्त है. उस ने दर्शकों को खूब हंसाया है. के.के. मेनन डौन कम जोकर ज्यादा लगा है. फिल्म में पंजाबी भाषा का इस्तेमाल ज्यादा किया गया है. वातावरण भी पंजाबी रखा गया है. गानों के बोल भी पंजाबी में हैं. गाने अलगअलग अंदाज में फिल्माए गए हैं. शुरुआती गाना ‘टुंगटुंग…’ मस्त है. प्रभुदेवा की कोरियोग्राफी भी अच्छी है. छायाकार ने रोमानिया की लोकेशनों को अच्छी तरह से एक्सप्लोर किया है.

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कैलेंडर गर्ल्स

इस फिल्म को देखते वक्त ऐसा लगा जैसे कोई फैशन शो देख रहे हैं. ग्लैमर की चकाचौंध, मौडलों के कौस्ट्यूम्स, उन के उभार देख कर दर्शक चकित रह जाते हैं. लेकिन जल्दी ही दर्शकों को इस चकाचौंध के पीछे की काली स्याही नजर आने लगती है. मधुर भंडारकर हमेशा से अपनी फिल्मों में अनछुए विषयों को दिखाता रहा है. चाहे उस की 2005 में आई फिल्म ‘पेज थ्री’ हो या 2006 में आई ‘कौर्पोरेट’, 2008 में आई ‘फैशन’ और 2012 में आई ‘हीरोइन’ हो. इन सभी फिल्मों में उस ने एक नया विषय ले कर दर्शकों को चौंकाया था. लेकिन इस बार उस की यह फिल्म मात्र फैशन परेड बन कर रह गई है 

फिल्म की कहानी 5 नई मौडलों की है. पांचों युवतियां महत्त्वाकांक्षी हैं और उन का सपना है कि वे कैलेंडर गर्ल बन कर ग्लैमर की दुनिया में नाम कमाएं और फिर बौलीवुड में एंट्री करें. मुंबई में एक नामी कंपनी का बिजनैस टाइकून (सुहेल सेठ) हर साल अपनी कंपनी के फैशन कैलेंडर के लिए युवतियों को चुनता है. इस बार कैलेंडर गर्ल के लिए हैदराबाद की नंदिता मेनन (आकांक्षा पुरी), लाहौर की रहने वाली लंदन से आई नाजनीन मलिक (अवनी मोदी), गोआ से आई शैरोन पिंटो (कायरा दत्त), रोहतक से आई मयूरी चौहान (रूही सिंह) और कोलकाता से आई पारोमा घोष (सतरूपा पयने) का चुनाव किया जाता है. ये पांचों युवतियां कैलेंडर के शूट के लिए मौरीशस जाती हैं और अपनेअपने सपनों को साकार करने में लग जाती हैं. कैलेंडर गर्ल बनने के बाद नाजनीन को एक फिल्म मिलतेमिलते रह जाती है. मजबूर हो कर उसे जिस्मफरोशी के धंधे में उतरना पड़ता है. पारोमा क्रिकेट के मैच फिक्ंिसग के धंधे में फंस जाती है और पकड़ी जाती है. मयूरी एक फिल्म साइन कर लेती है और शैरोन पत्रकारिता में अपना कैरियर बनाती है. नंदिता एक पैसे वाले युवक से शादी कर लेती है. तभी एक दिन नाजनीन ऐक्सीडैंट में मारी जाती है. सब के सपने अधूरे रह जाते हैं. फिल्म की इस कहानी का अंत क्या होगा, दर्शकों को इस का आभास पहले ही हो जाता है. मधुर भंडारकर ने अपनी इस फिल्म में दर्शकों को चौंकाने वाली कोई बात नहीं कही है. पटकथा पर और ज्यादा मेहनत की जरूरत थी. फिल्म में घिसीपिटी बातों का दोहराव है, मसलन, हाई सोसाइटी का खोखलापन, क्रिकेट और बौलीवुड का रिश्ता, जिस्मफरोशी, चेहरों पर ओढ़ी नकली मुसकान.

कलाकारों में सिर्फ मयूरी का किरदार प्रभावित करता है. गीतसंगीत के नाम पर मध्यांतर के ठीक बाद शैरोन की सहेली की शादी के दौरान इन पांचों युवतियों द्वारा परफौर्म किया एक डांस गीत कुछ अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है.

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