‘बौबी जासूस’ को देख कर आप को ज्यादा खुशी नहीं होगी. फिल्म के लीड किरदार में विद्या बालन का नाम देख कर दिल खुश हुआ था कि ‘डर्टी पिक्चर’, ‘कहानी’ और ‘डेढ़ इश्किया’ में वाहवाही बटोरने वाली विद्या बालन की प्रतिभा एक बार फिर से देखने को मिलेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिल्म के निर्देशक व पटकथा ने काफी निराश किया. हालांकि विद्या बालन ने पूरी तरह फिल्म को अपने कंधों का सहारा दिया है. लेकिन वह सफल नहीं हो सकी है. ‘बौबी जासूस’ एक साधारण फिल्म बन कर रह गई है.
‘बौबी जासूस’ पहली ऐसी फिल्म है जिस में जासूस का किरदार किसी महिला द्वारा किया गया है. उस ने फिल्म में भिखारी से ले कर वाचमैन और ड्राइवर तक के 12 गेटअप बदले हैं. सभी गेटअपों में उस ने अपनी छाप छोड़ी है. मगर बुरा हो फिल्म की पटकथा का, जिस ने सब गुड़गोबर कर के रख दिया.
फिल्म की कहानी हैदराबाद की तंग गलियों में रहने वाले परिवार की है. 30 साल की बौबी (विद्या बालन) उस परिवार की बेटी है. उस के परिवार वाले उस की शादी कर देना चाहते हैं परंतु बौबी पर जासूस बनने का जनून सवार है. वह पहले तो एक नामी डिटैक्टिव एजेंसी में नौकरी पाने की कोशिश करती है. नौकरी न मिलने पर वह अपनी डिटैक्टिव एजेंसी खोल लेती है.
शीघ्र ही उस की मुलाकात विदेश से हैदराबाद आए एक शेख अनीस शेख (किरण कुमार) से होती है. वह उसे एक लड़की को ढूंढ़ने का केस देता है. डील पूरी होने पर शेख उसे एक बड़ी रकम देता है, साथ ही अब की बार वह एक और लड़की को ढूंढ़ने का केस बौबी को देता है. बौबी का माथा ठनकता है. उसे पता चलता है कि वह लड़की तो घर से गायब है. बौबी उस शेख के पीछे पड़ जाती है. वह उस की ही जासूसी करनी शुरू कर देती है.
आखिरकार वह पता लगा लेती है कि शेख का मकसद क्या है. सालों पहले उस का परिवार उस से बिछुड़ गया था और शेख विदेश चला गया था. बौबी शेख के परिवार के लोगों को मिला कर खुश होती है. घर आने पर बौबी यह सब अपने पिता को बताती है, जिसे सुन कर बौबी से नफरत करने वाला पिता खुश होता है. वह बौबी की शादी उस से प्यार करने वाले तसव्वुर (अली फैजल) से करा देता है.
फिल्म की इस कहानी में ढेरों कमियां हैं. निर्देशक किरदारों को उभार पाने में असफल रहा है. अनीस शेख का किरदार नैगेटिव लगता है जबकि वह ऐसा है नहीं. लाला का किरदार भी उभर नहीं पाया है. लगता है निर्देशक ने फिल्म शुरू करने से पहले होमवर्क नहीं किया है.
मध्यांतर से पहले फिल्म कुछ हद तक दिलचस्प है. मध्यांतर के बाद फिल्म अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाती. फिल्म में विद्या बालन और अली फैजल के बीच रोमांस तो दिखाया गया है परंतु यह जोड़ी रोमांटिक वातावरण नहीं पैदा कर सकी है. अली फैजल का किरदार विद्या बालन के आगे बौना ही है. बौबी के पिता की भूमिका में राजेंद्र गुप्ता ने अपनी छाप छोड़ी ह फिल्म का गीतसंगीत पक्ष कमजोर है. शांतनु मोइत्रा का संगीत बेअसर है. फिल्म का छायांकन अच्छा है. हैदराबाद की भीड़ में कई दृश्य शूट किए गए हैं. जिस तरह विद्या बालन की फिल्म ‘कहानी’ कोलकातामयी लगी थी वैसे ही यह फिल्म हैदराबादमयी लगती है.